दिल्ली के गाज़ीपुर इलाके में कभी गए हैं आप? यहां एक पहाड़ है जिसकी ऊंचाई कुछ समय पहले कुतुब मीनार से भी ज्यादा हो गई थी। इसको लेकर बाकायदा रिपोर्ट भी जारी की गई थी। ये पहाड़ है गाज़ीपुर का कचरे का पहाड़। वैसे तो ये दूर से देखने में बहुत ही अलग लगता है, लेकिन पास जाते ही इसकी बदबू और आस-पास की गंदगी देख किसी का भी मन खराब हो सकता है। ऐसे में यहां के आस-पास के इलाकों में रहने वाली महिलाएं और कई लोग इस पहाड़ के आस-पास ही अपना काम करते हैं। कचरा उठाने वाले लोगों की जिंदगी बहुत ही अलग होती है और सेहत से लेकर हाइजीन तक की समस्याएं बहुत होती हैं।
अब एक दूसरी तस्वीर के बारे में सोचिए जहां बड़े पांच सितारा होटल में आप जाते हैं तो सब कुछ साफ और चमकदार दिखता है। Hyatt Centric एक ऐसा ही 5 सितारा होटल है जहां आपको हाई क्लास सर्विस के साथ कुछ स्टोर्स भी दिखेंगे। इनमें से एक स्टोर ऐसा है जहां हैंड मेड बैग्स बिकते हैं। इन बैग्स को बनाने की कहानी बहुत दिलचस्प है जो गाज़ीपुर की कचरा उठाने वाली महिलाओं द्वारा बनाए गए हैं। ये एक सोशल आउटरीच प्रोग्राम के तहत हुआ है जिसे Gulmeher ने शुरू किया था।
Gulmeher ऑर्गेनाइजेशन ने ऐसी ही जगहों पर काम करने वाली महिलाओं के लिए एक आउटरीच प्रोग्राम चलाया। 4000-6000 रुपए महीने कमाने वाली महिलाओं को एक बेहतर जिंदगी देने के लिए शुरू किया गया ये प्रोग्राम काफी खास है।
हमने गुलमेहर के डायरेक्टर अनुराग कश्यप से बात की और इस प्रोग्राम के बारे में और जानने की कोशिश की। इस प्रोग्राम से 350 घरों की महिलाओं को फायदा पहुंचा है।
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सवाल: अपने सुई-धागा प्रोग्राम के बारे में कुछ बताएं?
जवाब: 'इस प्रोग्राम में हमने वेस्ट पिक करने वाली महिलाओं को ट्रेनिंग दी है, उन्हें सक्षम बनाने की कोशिश की है जिससे वेस्ट समझे जाने वाले कपड़ों से बैग्स और कुछ अन्य प्रोडक्ट्स बनाए जा सकें। अधिकतर होटल्स या किसी बड़े ऑर्गेनाइजेशन में पर्दे, चादरें और टेबल क्लॉथ आदि में थोड़ा सा कुछ डिफेक्ट आ जाए तो उसे बेकार समझा जाता है। ऐसे कपड़ों को लेकर उन्हें बैग्स में बदलने का काम इस प्रोग्राम के जरिए किया जाता है। 2013 में इसकी शुरुआत में इसमें कचरा उठाने वाली महिलाओं को शामिल किया गया था। अब इस प्रोग्राम से कई अन्य महिलाएं भी जुड़ गई हैं।'
सवाल: किसी ऐसी महिला की कहानी क्या आप हमसे शेयर कर सकते हैं जिसकी जिंदगी में इस प्रोग्राम से बदलाव आया हो?
जवाब: 'कुसुम लता के बारे में आपको बताते हैं। कुसुम लता गुलमेहर की उन महिलाओं में से एक थीं जिन्होंने गुलमेहर ज्वाइन किया था और वो कचरा उठाने का काम नहीं करती थीं। कुसुम को इसके बारे में सेंटर मैनेजर कमला जोशी से पता चला था। कमला जी की वजह से ही कुसुम अपने घर वालों को यहां काम करने के लिए मना पाईं। कुसुम चाहती थीं कि वो अपने परिवार के लिए एक्स्ट्रा इनकम ला सकें। कुछ ही समय में कुसुम ने काफी काम सीख लिया और कुछ ही समय में कुसुम को नौकरी भी मिल गई। अब वो 8000 रुपए महीने तक कमा पाती हैं। गुलमेहर में काम करने पर उन्हें घर के काम और अपनी जॉब को लेकर समय मैनेज करने में शुरू में दिक्कत हुई, लेकिन बाद में सब कुछ बेहतर हो गया।'
'इसी तरह से मुख्तारून भी हमारे इस प्रोग्राम से 2013 से जुड़ी हुई हैं जो गुलमेहर में कई बार बेस्ट आर्टिस्ट अवॉर्ड जीत चुकी हैं। इसी के साथ, वो अपने साथियों को ट्रेनिंग भी देती हैं।'
सवाल: ये प्रोग्राम किस तरह से महिलाओं की जिंदगी में बदलाव ला रहा है?
जवाब: 'देखिए अगर इनकम की बात करें तो बहुत ज्यादा अंतर शायद आपको न दिखे क्योंकि ये पहले भी 4000-6000 रुपए कमाती थीं और अब 8000-9000 कमाती हैं, लेकिन इनकी लाइफस्टाइल में अंतर आया है। इन्हें पीएफ से लेकर बैंक अकाउंट तक बहुत सारी सुविधाएं मिली हैं। इसी के साथ, इन्हें एक तय इनकम मिल रही है। पहले ये लोग अपना अगला दिन भी प्लान नहीं कर सकती थीं कि उन्हें अगले दिन पैसे मिलेंगे या नहीं अब ये अगला साल भी प्लान कर सकती हैं। इनमें से कई महिलाएं हैं जिन्होंने अपने घरों में टॉयलेट भी बनवा लिया है। ये महिलाएं पहले अपने पति या बेटे पर निर्भर रहती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है। इनमें से कई हैं जिन्होंने अपनी बेटियों की शादी के लिए पैसे जोड़े हैं। तो धीरे-धीरे हर किसी की जिंदगी में बदलाव आ रहा है। ये पहले कचरा उठाया करती थीं अब स्टाइलिश हैंडमेड बैग्स बनाती हैं।'
सवाल: कचरा उठाने वाली महिलाओं की सेहत बहुत खराब रहती है, ऐसे में गुलमेहर के प्रोग्राम से उन्हें कितना फायदा पहुंचा है?
जवाब: 'जहां तक सेहत का सवाल है तो पहले इन महिलाओं को स्किन इन्फेक्शन से लेकर शरीर में अन्य बीमारियों तक कई सारी समस्याएं होती थीं। पर गुलमेहर में आने के बाद से हाइजीन से जुड़ी समस्याएं कम हुई हैं। इनका रेगुलर चेकअप हमेशा होता है और इन महिलाओं का ध्यान भी रखा जाता है। किसी को अगर सेहत से जुड़ी कोई समस्या होती है तो उन्हें सही असिस्टेंस भी दिया जाता है। जैसे-जैसे लोगों का जिंदगी जीने का तरीका बदलता है वैसे-वैसे उनकी सेहत पर भी इसका असर होता है।' महिला सशक्तिकरण से जुड़े ऐसे प्रोग्राम्स कई लोगों की जिंदगी पर असर डालते हैं।
सवाल: इस पूरे प्रोग्राम को शुरू करने में सबसे बड़ी दिक्कत क्या आई थी?
जवाब: 'सबसे बड़ा टास्क था इन्हें ट्रेन करने का। महिलाओं को सिलाई सिखाना तो फिर भी आसान था, लेकिन इन्हें ट्रेंड्स के हिसाब से प्रोडक्ट तैयार करना सिखाना और भी ज्यादा मुश्किल। अभी भी डिजाइनर उन महिलाओं को बताता है कि किस तरह से बैग डिजाइन किया जाता है। कोई नया काम शुरू करना मुश्किल तो होता है, लेकिन धीरे-धीरे वो सेट हो जाता है। हमारे जो भी प्रोडक्ट्स बनते हैं वो पर्यावरण के हिसाब से होते हैं और प्लास्टिक का उपयोग नहीं होता। हम ईको फ्रेंडली प्रोडक्ट्स बनाने के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं और 5 जून को वर्ल्ड एनवायरनमेंट डे पर हम एक खास प्रोग्राम भी कर रहे हैं। इसके बारे में जानकारी आपको Gulmeher-Blossoming Lives की आधिकारिक वेबसाइट पर मिल जाएगी।'
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कहां से खरीदे जा सकते हैं ये प्रोडक्ट्स?
ये आपको गुलमेहेर की वेबसाइट के अलावा, Hyatt Centric Janakpuri के एक खास स्टोर में भी मिल जाएंगे। हयात के बारे में जानने के लिए ये वीडियो देखा जा सकता है।
इस तरह की कई कहानियां हमें ये बताती हैं कि छोटी-छोटी शुरुआत बहुत बड़ा बदलाव ला सकती है। गुलमेहर के इस प्रोग्राम ने कई घरों को रौशन किया है और उनकी जिंदगी बदली है।
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