इस बात का इतिहास गवाह है कि प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक महिलाएं समाज में किसी न किसी स्तर पर अपना पूर्ण योगदान देती नजर आई हैं। फिर चाहे वह मुगल शासन हो या फिर आजादी की लड़ाई, महिलाओं ने नीति-निर्माण में अपनी अहम भूमिका अदा की है। हालांकि, जब हम आजादी की लड़ाई की बात करते हैं, तो ज्यादातर लोगों के दिमाग में महात्मा गांधी, भगत सिंह, नेहरू आदि के नाम आते हैं और आने भी चाहिए।
लेकिन बहुत कम लोग होंगे जिन्हें इस बात की जानकारी होगी कि इन महान वीरों के अलावा कुछ महिलाएं ऐसी भी थीं, जिन्होंने अपना पूर्ण योगदान आजादी की लड़ाई में दिया-जैसे रानी लक्ष्मी बाई। रानी लक्ष्मी बाई का इतिहास बहुत गौरवशाली रहा है, जिनके साहस की आज भी मिसाल दी जाती है, लेकिन क्या आपको रानी लक्ष्मी बाई और उनकी समाधि के बारे में पता है? अगर नहीं, तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको रानी लक्ष्मी बाई की समाधि के बारे में रोचक तथ्य बताते हैं।
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कौन थीं रानी लक्ष्मी बाई?
रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी के एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था, लोग उन्हें इसी नाम से पुकारा करते थे। लक्ष्मी बाई जब 4 साल की थीं तब उनकी मां का देहांत हो गया था। इसके बाद वह अपने पिता मोरोपंत के साथ बिठूर आ गई थीं।
मणिकर्णिका की परवरिश भी पेशवाओं के बीच हुई। इसलिए बचपन से ही मणिकर्णिका बहुत साहसी और तेज दिमाग की थीं। उनकी इसी काबिलियत के चलते झांसी के राजा गंगाधर राव ने उनसे विवाह कर लिया। विवाह के बाद उन्होंने मणिकर्णिका का नाम बदलकर लक्ष्मी बाई रख दिया था।
जानिए लक्ष्मी बाई की समाधि के बारे में
फूल बाग में रानी लक्ष्मी बाई की समाधि है। साथ ही, फूल बाग में झांसी, ग्वालियर की महान महिला योद्धा की स्मृति बनी हुई है। बता दें कि यह रानी लक्ष्मी बाई रखी हुई मूर्ति आठ मीटर ऊंची है। कहा जाता है कि रानी के अवशेषों को जलाने के बाद इसी समाधि में दफन किया गया था। तब से ही यह जगह झांसी की रानी समाधि के नाम से लोकप्रिय है। बता दें कि रानी लक्ष्मी बाई ने 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान ब्रिटिश राज के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। (ब्रिटिश साम्राज्य ने चुराई है दुनिया की ये बेशकीमती चीजें)
कैसी है वास्तुकला?
रानी की समाधि काफी बड़ी और खुली जगह पर बनाई गई है। समाधि के चारों और हरियाली है और समाधि के सामने लक्ष्मी बाई की बड़ी-सी मूर्ति भी डिजाइन की गई है। इसके अलावा, समाधि को चकोर आकार में पत्थरों की सहायता से बनाया गया है और समाधि के आसपास पौधे, देश का तिरंगा भी रखा गया है।
रानी लक्ष्मी बाई कब हुई थीं शहीद
वर्ष 1858 जून 18 को अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए रानी लक्ष्मी बाई शहीद हो गईं थीं। उन्होंने ने आखिरी सांस झांसी में नहीं बल्कि झांसी से कुछ दूर स्थित ग्वालियर में ली थी। अदम्य साहस की मूरत लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों के आगे न तो घुटने टेके थे और न ही शहीद होने के बाद अपने शव को उनके हाथ लगने दिया था। अपने देश को आजाद कराने के लिए रानी लक्ष्मी बाई ने जो बलिदान दिया था, जिसे आज भी याद किया जाता है। इसलिए आज भी उनकी समाधि ग्वालियर में आज भी मौजूद है।
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कैसे जाएं?
रानी लक्ष्मी बाई की समाधि अब ग्वालियर आने वाले पर्यटकों के लिए एक शानदार पर्यटन स्थल है। इसे दूर-दूर से लोग देखने आते हैं अगर आप भी इसे देखना चाहते हैं, तो आप फ्लाइट, ट्रेन, बस और अपने निजी साधन में से किसी का भी चुनाव कर सकते हैं।
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