Why Do we put grass during eclipse

First Lunar Eclipse 2024: ग्रहण के दौरान दूर्वा का क्या है महत्व?

हिंदू धर्म में दूर्वा को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यह विशेष रूप से भगवान गणेश को बेहद प्रिय है। उनकी पूजा बिना दूर्वा के अधूरी मानी जाती है। 
Editorial
Updated:- 2024-02-16, 17:11 IST

(why do we put grass during eclipse) हिंदू धर्म में दूर्वा को बहुत पवित्र माना गया है। पूजा-पाठ और मांगलिक कार्यों में इसका विशेष महत्व है। इस पवित्र घास का इस्तेमाल भगवान गणेश की पूजा विशेष रूप से किया जाता है। इसके बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है। ऐसे में ग्रहण के दौरान कुश और तुलसी सभी चीजों में रखी जाती है। ताकि शुद्ध और पवित्र रहें, लेकिन क्या आप जानते हैं कि दूर्वा को भी बेहद शुद्ध माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि ग्रहण काल में उसे खाने में रखने से पवित्र रहता है। अब ऐसे में दूर्वा का ग्रहण के दौरान क्या महत्व है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं। 

सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना है। जिसका ज्योतिष में विशेष महत्व है। वहीं इस साल का पहला चंद्र ग्रहण दिनांक 25 मार्च को है। ज्योतिष में ग्रहण को लेकर कई मान्यताएं हैं। इस दौरान पूजा-पाठ करने की मनाही होती है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य (सूर्यदेव मंत्र) ग्रहण के दौरान कुछ भी खाना और पीना वर्जित माना जाता है। क्योंकि इसकी अशुभ किरणों से भोजन जहरीली हो जाती है। इस दौरान घर से बाहर निकलने की भी मनाही होती है। 

ग्रहण के दौरान दूर्वा का इस्तेमाल क्यों किया जाता है?  (Why is Durva used during eclipse?)

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ग्रहण के दौरान वातावरण नकारात्मक हो जाता है। इसलिए खासतौर पर गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर निकलने की मनाही होती है। इस दौरान मंदिर भी ग्रहण के दौरान बंद कर दिए जाते हैं। वहीं ग्रहण काल में दूर्वा घास का इस्तेमाल किया जाता है। दूर्वा घास को ग्रहण के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए उत्तम माना गया है। इसलिए दूर्वा को ग्रहण लगने से पहले खाने और पानी वाले पदार्थ में रख दिया जाता है। इतना ही नहीं, मंदिर में भी प्रतिमा को सुरक्षित रखने के लिए दूर्वा को रखा जाता है। 

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चंद्र ग्रहण के दौरान वातावरण हानिकारक ऊर्जा का संचार करता है। इसलिए इसे सुरक्षित रखने के लिए हर खाद्य और पेय पदार्थ में दूर्वा (दूर्वा अर्पित करने की विधि) रखा जा सकता है। ग्रहण के बाद दूर्वा घास के बिना कोई भी भोजन को दूषित माना जाता है और इसका असर सेहत पर भी अशुभ पड़ता है। 

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जानें कैसे हुई दूर्वा की उत्पत्ति? (how Durva originated?)

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दूर्वा की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। इसलिए इसे इतना पवित्र माना गया है।  पौराणिक कथा में सरयू नदी में जब मां सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ का श्राद्ध किया था, तब दूर्वा साक्षी बनी थी। तभी से मां सीता ने दूर्वा को साक्षी पर अमर और हमेशा हरे-भरे रहने का वरदान दिया था। इतना ही नहीं भगवान गणेश (भगवान गणेश मंत्र) को भी दूर्वा बेहद प्रिय है। 

 

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Image Credit- Freepik

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