महाभारत के अनुसार, कर्ण कुंती के पुत्र थे और जब सूर्य ने कुंती को वरदान दिया तो मंत्र से उन्हें पुत्र रूप में कर्ण की प्राप्ति हुई थी। उस वक्त कुंती अविवाहित थीं, इसलिए उन्होंने कर्ण का त्याग कर दिया और बाद में उन्हें एक रथचालक ने पाला था। इस कारण से उन्हें सूत पुत्र भी कहा जाता था। महाभारत युद्ध के दौरान कृष्ण जी पांडवों की तरफ से थे तो वहीं कर्ण कौरवों की तरफ से थे, लेकिन फिर भी श्रीकृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार क्यों किया था? आइए आपको बताते हैं।
कैसे हुई थी कर्ण की मृत्यु?
एक बार कर्ण अपने रथ से कहीं जा रहा था, तभी उसके रथ से एक बछिया की मौत हो गई और उस दौरान एक साधु ने कर्ण को श्राप दिया कि जिस तरह रथ से बछिया की मौत हुई है, उसी तरह तुम्हारी भी मौत होगी। साधु ने कहा कि युद्ध के दौरान उसके रथ का पहिया धरती निगल लेगी और वह ही उसकी मौत का कारण बनेगा।(युधिष्ठिर ने क्यों दिया था अपनी ही मां कुंती को श्राप)
महाभारत युद्ध के दौरान कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस गया था और तभी अर्जुन ने अपना दिव्यास्त्र निकाला और कर्ण पर वार कर दिया। जिस प्रकार साधू ने श्राप दिया था उसी तरह कर्ण की मृत्यु हुई थी।
क्यों किया था श्री कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार?
कर्ण को दानवीर माना जाता था और भगवान कृष्ण ने कर्ण के अंतिम समय में उसकी परीक्षा ली। उन्होंने कर्ण से दान मांगा तब कर्ण ने दान में अपने सोने का कवछ तोड़कर भगवान कृष्ण को अर्पण कर दिया। इस दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने कर्ण को वरदान मांगने को कहा। कर्ण ने वरदान रूप में अपने साथ हुए अन्याय को याद करते हुए भगवान कृष्ण के अगले जन्म में उसके वर्ग के लोगों को सुखी जीवनदान देने को कहा और दूसरे वरदान रूप में भगवान कृष्ण का जन्म अपने राज्य लेने को मांगा। इसके बाद उन्होंने कहा कि तीसरे वरदान आप मुझे दीजिए कि मेरा अंतिम संस्कार ऐसा कोई करे जो पाप मुक्त हो।
भगवान कृष्ण ने सभी वरदान कर्ण के स्वीकार कर लिए लेकिन तीसरे वरदान के बारे में वह सोचने लगे कि भला ऐसा कौन है जो पाप मुक्त हो। वरदान देने के वचन बद्धता थी इसलिए कर्ण का अंतिम संस्कार भगवान कृष्ण ने अपने ही हाथों से किया था।इसे जरूर पढ़ें: Weapons Of Arjuna: इन भयंकर अस्त्रों के कारण धनुर्धर अर्जुन ने जीता था महाभारत युद्ध
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