हैरानी की बात है! कृष्ण मंदिर में नंदी, जानें कहां है ये स्थान और कैसे आई शिव जी की सवारी यहां

क्या आपने कभी ये सोचा है कि नंदी जी किसी कृष्ण मंदिर में भी हो सकते हैं। जी हां, एक ऐसा मंदिर है जहां नंदी शिव जी के साथ नहीं बल्कि कृष्ण भगवान के साथ विराजित हैं और भी खड़ी मुद्रा में।  
where nandi statue is in lord krishna temple

नंदी जी को भगवान शिव का वाहन और उनका परम प्रिय माना जाता है। यही कारण है कि जहां-जहां शिवलिंग स्थापित हैं, वहां-वहां नंदी की प्रतिमा भी मौजूद है। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि शिवालय में नंदी का होना न सिर्फ भगवान शिव के प्रति नंदी की भक्ति को दर्शाता है बल्कि भगवान शिव तक लोगों की प्रार्थनाएं भी नंदी महाराज ही पहुंचाते हैं, लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि नंदी जी किसी कृष्ण मंदिर में भी हो सकते हैं। जी हां, एक ऐसा मंदिर है जहां नंदी शिव जी के साथ नहीं बल्कि कृष्ण भगवान के साथ विराजित हैं और भी खड़ी मुद्रा में। आइये जानते हैं इस अनूठे मंदिर और इससे जुड़ी कहानी के बारे में विस्तार से ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से।

कहां है श्री कृष्ण के मंदिर में नंदी?

मध्य प्रदेश के उज्जैन में महर्षि सांदीपनि आश्रम नामक एक स्थान है जहां श्री कृष्ण ने अपनी शिक्षा पूरी की थी। इस स्थान पर न सिर्फ श्री कृष्ण का मंदिर है बल्कि इस मंदिर में नंदी जी भी विराजमान हैं। इस अनोखी घटना के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है।

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माना जाता है कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण, उनके बड़े भाई बलराम और परम मित्र सुदामा ने उज्जैन स्थित महर्षि सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा ग्रहण की थी। इस आश्रम में भगवान कृष्ण ने मात्र 64 दिनों में 16 कलाओं और 64 विद्याओं का ज्ञान प्राप्त किया था।

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जब भगवान कृष्ण इस आश्रम में विद्या ग्रहण कर रहे थे तब एक दिन कार्तिक मास की बैकुंठ चतुर्दशी के शुभ अवसर पर अवंतिका यानी कि उज्जैन के राजा महाकाल यानी कि भगवान शिव स्वयं उनसे मिलने के लिए गुरु सांदीपनि के आश्रम में पधारे।

भगवान शिव और भगवान श्री कृष्ण दोनों को एक साथ देखकर नंदी महाराज जो भगवान शिव के प्रिय वाहन हैं, उनके सम्मान में खड़े हो गए। तभी से इस मंदिर में नंदी की प्रतिमा खड़े हुए स्वरूप में स्थापित है।

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यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान शिव के वाहन नंदी खड़े हुए स्वरूप में हैं और जो भगवान शिव और भगवान कृष्ण के मिलन और गुरु-शिष्य परंपरा के प्रति सम्मान को दर्शाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से श्री कृष्ण और शिव जी की एक साथ कृपा मिलती है।

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image credit: herzindagi

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FAQ

  • महाकालेश्वर में भगवान शिव को चढ़ने वाली भस्म कैसे बनती है?

    महाकाल की भस्म को कपिला गाय के गोबर से तैयार किया जाता है। गोबर के उपलों में शमी, पीपल, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर मिलाया जाता है।