Ganpati Visarjan 2023: क्यों अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा का किया जाता है जल विसर्जन

इस साल गणेश विसर्जन 28 सितंबर को सुबह 06:11 मिनट से लेकर सुबह 07:40 मिनट कर सकते हैं। उसके बाद सुबह 10:42 -03:10 मिनट तक कर सकते हैं। साथ ही शाम 04: 41 मिनट से लेकर रात 09: 10 मिनट तक विसर्जन किया जा सकता है।

 

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10 दिनों के गणेश उत्सव में लोग अलग-अलग दिनों पर गणपति विसर्जन करते हैं। कई लोग 1 दिन तो कई लोग 5 दिनों में गणेश विसर्जन करते हैं। लेकिन अधिकतर लोग 10 दिनों बाद अनंत चतुर्दशी के अवसर पर ही गणेश विसर्जन करना पसंद करते हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि लोग 10 दिनों तक बप्पा को इतने प्यार से रखने के बाद आखिर उनका जल विसर्जन क्यों कर देते हैं। आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि आखिर क्यों अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन किया जाता है।

क्यों किया जाता हैजल विसर्जन (Why Ganesh Visarjan is done)

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना के लिए पहले गणेश जी की पूजा अर्चना की थी। उन्होंने महाभारत की रचना के लिए बप्पा का आह्वान किया था। महाभारत महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित मानी जाती है, लेकिन गणेश जी ने इसे लिपिबद्ध किया था।(हवन नियम)

दरअसल भगवान गणेश जी की लिखावट तेज और सुंदर थी, उनके जैसा लेखन कोई भी नहीं कर सकता था। इसलिए उन्होंने भगवान से इसकी मदद की गुहार लगाई। माना जाता है जब महर्षि ने भगवान गणेश का आह्वान करके उनसे महाभारत को लिपिबद्ध करने के लिए प्रार्थना की तो भगवान ने उनकी मांग स्वीकार कर ली। लेकिन गणेश जी ने इसके लिए उनके सामने एक शर्त रखी।

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भगवान गणेश ने रखी शर्त

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बप्पा ने कहा कि मैंने एक बार लिखना शुरू किया तो मैं रुक नहीं सकता, अगर कलम लिखना शुरू हुई, तो रुकेगी नहीं, अगर रूक गई तो मैं लिखूंगा नहीं। बप्पा की यह शर्त महर्षि ने मान ली। लेकिन उन्होंने भी कहा कि हो सकता है उनसे बोलते हुए कोई श्लोक गलत हो जाए। इसलिए आप भी श्लोक समझकर ही उसे लिखेंगे।

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10 दिनों में की गई महाग्रंथकी रचना

यह संभव है कि इस बात को बहुत कम लोग जानते होंगे कि इस महाग्रंथ को इन 10 दिनों में ही लिखा गया था। 10 दिनों तक लगातार भगवान गणेश लिखते रहे थे। इस दौरान उनका पानी पीना भी वर्जित था। लेकिन वह काफी थक गए थे।

उनकी थकान दूर करने के लिए। बप्पा के शरीर का तापमान बढ़ता देख महर्षि ने उनकी मदद के लिए उनके शरीर पर मिट्टी का लेप लगाया। उन्होंने भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की।

लेकिन कुछ समय बाद मिट्टी का लेप सूखने लगा और उनके शरीर में अकड़न आ गई। इसी के चलते गणेश जी को पार्थिव गणेश के नाम से भी जाना जाता है।(माथे पर तिलक के फायदे)

लेकिन 10 दिनों बाद अनंत चतुर्दशी पर जब लेखन कार्य संपन्न हुआ, तब भी बप्पा के शरीर का तापमान वैसा ही था। महर्षि वेदव्यास ने देखा कि गणपति का शारीरिक तापमान कम नहीं हो रही है, तो उन्होंने उन्हें ठीक करने के लिए और उनका तापमान और ना बढ़े इसलिए गणेश जी को पानी में डाल दिया।

इसलिए ही लोग भक्ति भाव से उनकी पूजा करके अनंत चतुर्दशी को विसर्जित करते हैं।

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