हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, नवरात्रि के समापन के बाद माता रानी का विसर्जन किया जाता है। नवमी तिथि के दिन हवन करने के बाद से ही माता रानी को पवित्र जल मिज प्रवाह करने की तैयारियां शुरू हो जाती हैं जिसके बाद दशमी तिथि पर माता रानी को सिर पर रखकर पवित्र जल के पास ले जाया जाता है और फिर उनकी प्रतिमा को विसर्जित कर दिया जाता है। मां दुर्गा के विसर्जन से जुड़े कुछ नियम भी हैं जिनका पालन आवश्यक माना गया है। इन्हीं में से एक यह नियम भी है कि मां दुर्गा को कभी भी गुरुवार के दिन विदा नहीं किया जाता है, लेकिन इस साल दशमी तिथि यानी दशहरा 2 अक्टूबर, गुरुवार के दिन पड़ रहा है। ऐसे में इस बार गुरुवार को मां दुर्गा का विसर्जन करना सही है या गलत और क्या है विसर्जन का शुभ मुहूर्त, आइये जानते हैं इस बारे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से विस्तार में।
शास्त्रों के अनुसार, देवी का विसर्जन तो दशमी तिथि पर ही होना चाहिए। इस साल मुहूर्त भी इसी दिन का बन रहा है, लेकिन आप एक काम कर सकते हैं। आप नवमी तिथि की शाम को माता की आरती करें और फिर माता को उनके स्थान से उठाकर किसी और स्थान पर विराजित कर दें।
ऐसा करना इस बात का प्रतीक होगा कि माता रानी को आपने उनके स्थान से हटाकर विसर्जन की प्रक्रिया गुरुवार के बजाय बुधवार को ही आरंभ कर दी और बस गुरुवार के दिन आप उन्हें पवित्र नदी में बहा आएंगे। दशमी के दिन 2 मुहूर्त बन रहे हैं माता रानी के विसर्जन के लिए।
पहला मुहूर्त है 2 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 14 मिनट से शाम 6 बजकर 6 मिनट तक का और दूसरा मुहूर्त है दोपहर 1 बजकर 21 मिनट से दोपहर 3 बजकर 44 मिनट तक का। दूसरा मुहूर्त सबसे ज्यादा शुभ है क्योंकि इसमें किया गया विसर्जन आपके घर में अपार सुख-समृद्धि लाएगा।
नवरात्रि के अंतिम दिन दशमी तिथि यानी दशहरा पर विसर्जन किया जाता है। विसर्जन से पहले, देवी की प्रतिमा या घट स्थापना को अंतिम बार स्नान कराकर, सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाए जाते हैं।
इस दिन सुबह ही देवी की विधिवत पूजा करें। उन्हें खीर, पूरी, हलवा या अपनी इच्छा अनुसार विदाई का विशेष भोग लगाएं। इस दौरान हवन करना और कन्या पूजन करना भी विसर्जन विधि का ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
देवी को चढ़ाई गई सभी श्रृंगार सामग्री को किसी विवाहित महिला को भेंट करना बहुत शुभ माना जाता है। पूजा के बाद हाथ में फूल और अक्षत लेकर देवी से क्षमा प्रार्थना करें। मन ही मन कहें कि जाने-अनजाने में पूजा-पाठ में कोई कमी रह गई हो तो माता उसे स्वीकार करें और आपको आशीर्वाद दें।
इस दौरान आप एक श्लोक या सरल वाक्य बोल सकते हैं: 'हे मां, नौ दिनों तक आपने मेरे घर को अपनी उपस्थिति से पवित्र किया। अब मैं आपको ससम्मान विदा करती हूं और प्रार्थना करती हूं कि आप अगले वर्ष फिर से हमारे घर पधारें।'
इस भाव के साथ जिस चौकी पर घट या प्रतिमा रखी है, उसे हल्का सा हिलाया जाता है। यह क्रिया देवी को विदा करने का संकेत होती है। कलश (घट) के जल को घर के सभी हिस्सों में छिड़कें। यह जल बहुत पवित्र होता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
बचा हुआ जल तुलसी के पौधे को छोड़कर किसी अन्य पौधे की जड़ों में डाल दें। कलश के ऊपर रखे नारियल को फोड़कर परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद के रूप में बांट दें। सुपारी और सिक्कों को संभालकर तिजोरी या धन स्थान पर रख दें, इसे शुभ माना जाता है।
जवारों को संभालकर निकालें। इनका कुछ हिस्सा धन स्थान पर रखें और बाकी पवित्र नदी या जल में प्रवाहित कर दें या किसी मंदिर में अर्पित कर दें। अगर मिट्टी की प्रतिमा स्थापित की गई है, तो उसे सम्मान के साथ किसी पवित्र नदी, तालाब या कुंड में प्रवाहित करें।
ध्यान रहे कि प्रतिमा को सीधा पानी में फेंकने के बजाय, उसे धीरे से जल में विसर्जित करें। अगर प्रतिमा जल विसर्जन योग्य नहीं है (जैसे धातु की) या जल स्रोत उपलब्ध नहीं है, तो घर में ही एक साफ़ पानी के टब में विसर्जित कर दें और बाद में जल को पौधों में डाल दें।
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विसर्जन के समय मन में यह भाव रखें कि आप देवी को अपने घर से विदा नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्हें अगले वर्ष फिर से पधारने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।
पूजा में उपयोग किए गए फूल, माला और अन्य सामग्री को नदी में प्रवाहित करने के बजाय, उन्हें जमीन में दबा देना या किसी पवित्र स्थान पर रखना बेहतर माना जाता है।
विसर्जन के बाद घर आकर हाथ-पैर धोएं और बड़ों का आशीर्वाद लें। इस दिन शमी वृक्ष की पूजा करना और अपनों को शमी पत्र भेंट करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
लोक मान्यताओं और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, गुरुवार विद्या, ज्ञान और धार्मिकता के कारक ग्रह बृहस्पति का दिन माना जाता है। ऐसे में नवरात्रि के दौरान पड़ने वाले गुरुवार के दिन माता का विसर्जन करने से घर की सुख-समृद्धि, ज्ञान और सौभाग्य भी घर से बाहर चला जाता है।
असल में, नवरात्रि के दौरान देवी जिस वार को आती हैं और जिस वार को जाती हैं उसका अपना एक अलग महत्व होता है। गुरुवार को खाली वार माना जाता है इसलिए इस दिन किसी भी प्रकार के ऐसे कार्य करने की मनाही होती है जो विशेष पूजा-पाठ या धार्मिक कार्य से जुड़े हुए हों।
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