Shani Pradosh Vrat Katha 2025: भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है शनि प्रदोष व्रत, जानें क्या है इसकी कथा

शनि प्रदोष व्रत 24 मई को है। इस दिन भगवान शिव का पूजन और व्रत करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। आइए, यहां ज्योतिषाचार्य से जानते हैं कि शनि प्रदोष व्रत की व्रत कथा क्या है।
Shani Pradosh vrat katha

हिंदू पंचाग की त्रयोदशी पर प्रदोष व्रत किया जाता है। जब यह व्रत शनिवार के दिन पड़ता है तो इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस बार कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी यानी 24 मई को शनि प्रदोष व्रत है। मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त शनि प्रदोष व्रत रखते हैं और भगवान शिव की पूजा-उपासना करते हैं उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान शिव की पूजा के साथ व्रत कथा का पाठ करना भी अहम माना गया है। शनि प्रदोष व्रत को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। यहां हमें ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने शनि प्रदोष व्रत की दो प्रचलित कथाओं के बारे में बताया है।

शनि प्रदोष व्रत की पहली कथा (Shani Pradosh Vrat Katha)

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एक नगर में एक प्रतिष्ठित सेठ अपने परिवार के साथ रहता था। ऐसे तो सेठ के पास धन-दौलत, ऐश्वर्य या किसी प्रकार की सुख-सुविधा की कमी नहीं थी। लेकिन, सेठ और उसकी पत्नी एक चीज को लेकर परेशान रहते थे और वह था संतान सुख। सेठ और सेठानी की यह परेशानी समय के साथ गहरी हो गई और एक दिन उन्होंने अपना सबकुछ सेवकों को सौंपकर तीर्थयात्रा पर जाने का फैसला किया।

सेठ और सेठानी ने तीर्थयात्रा पर निकलने का संकल्प लिया और सबकुछ पीछे छोड़कर निकल पड़े। तीर्थयात्रा के बीच में एक स्थान पर सेठ और सेठानी को एक शांत जगह पर महात्मा तपस्या में लीन दिखाई दिए। सेठ ने सोचा क्यों न महात्मा से आशीर्वाद लेने के बाद अपनी तीर्थयात्रा पर बढ़ें। इसके बाद सेठ और सेठानी हाथ जोड़कर महात्मा के सामने बैठ गए और उनकी तपस्या खत्म होने का इंतजार करने लगे। इसी तरह काफी समय बीत गया और जब महात्मा की तपस्या खत्म हुई तो उन्होंने अपने सामने सेठ-सेठानी को बैठे देखा।

सेठ-सेठानी ने महात्मा को प्रणाम किया और अपनी समस्या के बारे में बताया। तब महात्मा ने कहा कि वह उनकी समस्या को जानते हैं और फिर उपाय में शनि प्रदोष व्रत के बारे में बताया। महात्मा से शनि प्रदोष की व्रत कथा और पूजा-विधि जानने के बाद सेठ-सेठानी तीर्थयात्रा पर चले गए और लौटकर उन्होंने भक्ति भाव से शनि प्रदोष व्रत आरंभ किया। जिससे भगवान शिव प्रसन्न हुए और सेठ-सेठानी को पुत्र की प्राप्ति हुई।

शनि प्रदोष व्रत की दूसरी कथा

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एक समय की बात है एक निर्धन ब्राह्मणी थी, जो भिक्षा मांगकर अपना जीवन व्यतीत करती थी। एक दिन वह भिक्षा मांगकर अपनी कुटिया लौट रही थी, तब उसे रास्ते में दो नन्हें बालक मिले। बालकों को देखकर ब्राह्मणी परेशान हो गई और सोचने लगी कि इनके माता-पिता कौन हैं? ब्राह्मणी, दोनों बालकों को अपने साथ ले आई और कुछ समय बाद जब वह दोनों बड़े हो गए। तब एक दिन ब्राह्मणी, दोनों बालकों को अपने साथ ऋषि शांडिल्य के पास गई। जहां उसे ऋषि शांडिल्य से बालकों के माता-पिता के बारे में जानना चाहा।

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ऋषि शांडिल्य ने बताया कि दोनों बालक विदर्भ नरेश के राजकुमार हैं और एक आक्रमण में उनका राजपाट छिन गया है। तब ऋषि से ब्राह्मणी ने पूछा कि क्या कोई उपाय है जिससे इन दोनों का सम्मान और राजपाट वापस मिल जाए। तब ऋषि शांडिल्य ने दोनों बालकों को प्रदोष व्रत करने के लिए कहा।

दोनों बालकों ने भक्ति और भाव से प्रदोष व्रत किया। फिर एक दिन बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमति नाम की राजकुमारी से हुई। दोनों में प्रेम हो गया और फिर उन्होंने शादी का फैसला किया। राजकुमारी अंशुमति के पिता ने राजकुमारों का राजपाट दिलाने में मदद की। शनि प्रदोष व्रत और भगवान शिव की कृपा से राजकुमारों को उनका सबकुछ मिल गया और इसके बाद उन्होंने ब्राह्मणी को भी अपने दरबार में उच्च स्थान दिया।

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Image Credit: Freepik and Herzindagi

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FAQ

  • शनि प्रदोष व्रत करने से क्या होता है?

    शनि प्रदोष व्रत करने से शनि दोष और साढ़ेसाती के प्रभाव कम होते हैं और भगवान शिव को भी प्रसन्न किया जा सकता है।