भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा वर्ष में केवल एक बार आयोजित होती है और यह एक ऐसा विशेष अवसर होता है, जब भगवान स्वयं मंदिर से बाहर निकलकर अपने भक्तों के बीच आते हैं। इस दौरान ऐसा माना जाता है कि भगवान अपने भक्तों की प्रार्थनाएं सीधे सुनते हैं और उनके दुख-सुख में सहभागी बनते हैं। रथ यात्रा के समय कई अनूठी परंपराएं और रीति-रिवाज निभाए जाते हैं, जिनमें से एक बेहद रोचक और रहस्यमयी परंपरा भगवान पर चढ़ें पय पदार्थ 'अधारा पान' की हैं। जिसका भोग पहले भगवान जगन्नाथ स्वंय करते हैं और फिर इसे फेंक दिया जाता है।
सुनने में यह बात जरूर अजीब लग सकती है कि भगवान का पवित्र प्रसाद फेंका जाता है और उससे भी अधिक आश्चर्य की बात यह है कि इस प्रसाद को कोई भी खा नहीं सकता। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर उस प्रसाद में ऐसा क्या खास होता है, जो उसे ग्रहण करना वर्जित होता है।
दरअसल, यह पेय पदार्थ एक विशेष कर्मकांड या परंपरा का हिस्सा होता है। मान्यता है कि यह प्रसाद भगवान को समर्पित कर देने के बाद उन्हें अर्पित कर दिया जाता है, जो यात्रा में अदृश्य रूप से हिस्सा लेते हैं। यह प्रतीक होता है उन शक्तियों का जिन्हें सामान्य मनुष्य नहीं संभाल सकता। इसलिए इसे न तो किसी को स्पर्श करने दिया जाता है, न ही सेवन करने की अनुमति होती है। तो चलिए आज हम आपको इस खास तरह के प्रसाद के बारे में बताते हैं।
'अधारा पान' क्या होता है?
रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ को कई तरह के प्रसाद चढ़ते हैं, मगर एक खास तरह पय पदार्थ भी उनहें चढ़ाया जाता है, जो दूध से तैयार किया जाता है। इसमें कई तरह के फल और मिठास के लिए चीनी भी डाली जाती है। यह सफेद रंग का खीर जैसा पय पदार्थ होता है। जगन्नाथ पुरी के असम यात्री निवास के संचालक एंव श्री मंदिर के पंडे माधव जी बताते हैं, "हम इसे भगवान का प्रसाद नहीं मानते हैं। यह एक तरह का पय पदार्थ होता है, जो आम भक्तों के लिए नहीं होता है। इस पय पदार्थ में दूध, चीनी, तुलसी, केला कपूर, काली मिर्च, दालचीनी सहित बहुत सारी जड़ी बूटियां होती हैं। जब भगवान मंदिर से बाहर निकलकर अपने रथ पर सावार होते हैं, तब मिट्अी बर्तन में यह पय पदार्थ बलराम, सुभद्रा और जगन्ना थी मुर्तियों के होंठों पर लगाया जाता है और फिर इस बर्तन को रथ पर ही तोड़ते हुए सड़क पर फैला दिया जाता है। मगर यह रस्म एक अनुष्ठान है। इसे आप भगवान का प्रसाद नही समझ सकते। यह अनुष्ठाान के बाद ही रथ आगे बढ़ता है।"
किस के लिए होता है 'अधारा पान' ?
अधारा पान क्योंकि प्रसाद नहीं माना जाता है इसलिए इसका वितरण कभी भी जगन्नाथ जी के भक्तों में नहीं किया जाता है। माधव जी बताते हैं, "भगवान की रथ यात्रा में सभी लोग शामिल होते हैं। इसमें न केवल मनुष्य बल्कि देवता और भूत पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाएं भी हिस्सा लेती हैं। भगवान की यात्रा सफल रहे और किसी भी प्रकार का कोई हादसा न हो, इसलिए भूत पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं को शांत करने के लिए इस पय पदार्थ को भगवान के अधरों यानी होंठों से लगाकर जमीन पर फैला दिया जाता है।" ऐसे में अगर आपको सड़क पर फैला इस तरह का पय पर्दाथ नजर आए, तो भूल से भी आपको उसका सेवन नहीं करना चाहिए। यह अनुष्ठान हमेशा सूर्य के ढलने के बाद किया जाता है और इस अनुष्ठान के पहले पुजारी सोष उपचार पूजा भी करते हैं। उसके बाद ही यह पय पदार्थ भगवान के होंठों से छुआया जाता है।
कैसे किया जाता है 'अधारा पान' अनुष्ठान ?
माधव जी बताते हैं, "यह बहुत बड़ा अनुष्ठान होता है। इस तीन दिन तक किया जाता है। इसमें पय पदार्थ को प्रत्येक भगवान के रथ में 3 मिट्ठी के बर्तनों में भरकर रखा जाता है। इस पय पदार्थ को बनाने वाले लोग भी खास होते हैं। इन्हें महासूरा सेवक कहा जाता है। इनका काम इस पय पदार्थ को पूरी भक्ती से बनाना होता है। यह अनुष्ठान हमेशा यात्रा के 10वें, 11वें और 12वें दिन होता है। यह नीलाद्री बिजे यानी रथ यात्रा उत्सव का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान से पहले होता है। " इस अनुष्ठाान के दौरान रथ के ऊपर से ही मिट्टी के बर्तनों को तोड़ा जाता है, ताकि सभी अदृश्य देवता और क्रूर आत्माएं भी इसका पान कर लें और शांत हो जाएं।
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