हिंदू धर्म में पितृपक्ष (Pitru Paksha) का विशेष महत्व है और इस अवधि में पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष की पूरे 16 दिन की अवधि में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और वंशजों से अपनी मुक्ति की कामना करते हैं। इन सभी दिनों में श्राद्ध करना बहुत शुभ माना जाता है और पितरों के नाम से तर्पण और दान भी किया जाता है। ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी बताते हैं कि वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और घर में खुशहाली आती है। हर साल पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद महीने की पूर्णिमा तिथि से होती है और इसका समापन अश्विन महीने की अमावस्या को होता है। इन सभी दिनों में अलग-अलग तिथि का श्राद्ध होता है और पितरों के निमित्त कर्म किए जाते हैं। इस साल पितृ पक्ष का आरंभ भाद्रपद पूर्णिमा यानी कि 7 सितंबर को हो रहा है और इसका समापन 21 सितंबर 2025 को होगा। ऐसे में श्राद्ध और तर्पण की तिथियों के बारे में आपको यहां विस्तृत जानकारी मिल सकती है। आइए यहां जानें पूर्णिमा से लेकर सर्व पितृ अमावस्या तक के श्राद्ध की सही तिथियों के बारे में।
2025 में पितृपक्ष कब से कब तक है?
हिंदू पंचांग के अनुसार साल 2025 में पितृपक्ष का आरंभ 7 सितंबर, रविवार को हो रहा है और इस दिन पूर्णिमा का श्राद्ध है। वहीं इसका समापन 21 सितंबर 2025, रविवार को सर्वपितृ अमावस्या के साथ होगा। अगर आप भी जानना चाहते हैं कि किस तिथि को कौन-सा श्राद्ध करना है, तो यहां पूरी लिस्ट देखें-
श्राद्ध तिथि |
दिनांक | दिन |
पूर्णिमा श्राद्ध | 7 सितंबर 2025 | रविवार |
प्रतिपदा श्राद्ध | 8 सितंबर 2025 | सोमवार |
द्वितीया श्राद्ध | 9 सितंबर 2025 | मंगलवार |
तृतीया व चतुर्थी श्राद्ध | 10 सितंबर 2025 | बुधवार |
भरणी व पंचमी श्राद्ध | 11 सितंबर 2025 | गुरुवार |
षष्ठी श्राद्ध | 12 सितंबर 2025 | शुक्रवार |
सप्तमी श्राद्ध | 13 सितंबर 2025 | शनिवार |
अष्टमी श्राद्ध | 14 सितंबर 2025 | रविवार |
नवमी श्राद्ध | 15 सितंबर 2025 | सोमवार |
दशमी श्राद्ध | 16 सितंबर 2025 | मंगलवार |
एकादशी श्राद्ध | 17 सितंबर 2025 | बुधवार |
द्वादशी श्राद्ध | 18 सितंबर 2025 | गुरुवार |
त्रयोदशी / मघा श्राद्ध | 19 सितंबर 2025 | शुक्रवार |
चतुर्दशी श्राद्ध | 20 सितंबर 2025 | शनिवार |
सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध | 21 सितंबर 2025 | रविवार |
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पितृपक्ष का महत्व क्या है?
- हिंदू धर्म में पितृपक्ष (Pitru Paksha) का विशेष महत्व है। यह समय पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए प्रमुख माना जाता है।
- आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान श्रद्धा और विधिपूर्वक किए गए कर्म व्यक्ति को समृद्धि प्रदान करने से साथ वंश की वृद्धि में भी सहायता करते हैं।
- श्राद्ध शब्द का अर्थ ही है श्रद्धा से किया गया कर्म इसलिए इस दौरान सभी कर्म पूरी श्रद्धा, नियम और मर्यादा के साथ करने चाहिए।
- पितृपक्ष के दौरान अभिजीत मुहूर्त में श्राद्ध करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है, क्योंकि यह समय पितरों की आत्मा की शांति के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
- यदि आप इस अवधि में पितरों के नाम का तर्पण करने के साथ घर की दक्षिण दिशा में दीपक जलाती हैं तो जीवन में उसके लाभ होते हैं और पूर्वजों का आशीर्वाद भी बना रहता है। पितरों की शांति के लिए इस दौरान दान-पुण्य करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
पितृपक्ष में श्रद्धा से किया गया हर कार्य न केवल पितरों को तृप्त करता है, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-शांति भी लाता है। इस समय अपने पितरों के लिए तर्पण आदि कर्म करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
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