
एकादशी तिथि का व्रत हिंदू धर्म में सबसे पवित्र और फलदायी व्रतों में से एक माना जाता है। यह दिन पूरी तरह से सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है और इसका मुख्य उद्देश्य इंद्रियों पर नियंत्रण करके मन को शुद्ध करना तथा आत्मिक उन्नति प्राप्त करना है। यह व्रत व्यक्ति को मोह-माया के बंधन से मुक्त कर मोक्ष की ओर ले जाता है। एकादशी का नियमित पालन करने वाले भक्त के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है और उन्हें सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, साल में 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं। वहीं, अगर अधिक मास लग जाए तो 26 एकादशी तिथियां आती हैं। इन्हीं में से एक है सफला एकादशी जो पौष माह के कृष्ण पक्ष में आती है। आइये जानते हैं वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से कि इस साल कब पड़ रही है सफला एकादशी, क्या है इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व?
पौष कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि का आरंभ 14 दिसंबर 2025 को रविवार के दिन शाम 06 बजकर 50 मिनट पर होगा। वहीं, इसका समापन 15 दिसंबर 2025 को सोमवार के दिन रात 09 बजकर 21 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि अनुसार, सफल एकादशी 15 दिसंबर को मनाई जाएगी।
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सफला एकादशी के दिन पवित्र स्नान के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 22 मिनट से 06 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। वहीं, भगवान विष्णु की पूजा के लिए अभिजित मुहूर्त बन रहा है जो दोपहर के समय 12 बजकर 01 मिनट से 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में विष्णु पूजन लाभकारी सिद्ध होगा।

इसके अलावा, विजय मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 05 मिनट से 02 बजकर 46 मिनट तक रहेगा जिसे सफलता दिलाने वाला माना जाता है। इस मुहूर्त में आप किसी भी शुभ काम को कर सकते हैं जैसे कि दान-धर्म आदि। वहीं, गोधूलि मुहूर्त शाम 05 बजकर 28 मिनट से 05 बजकर 56 मिनट तक रहेगा जो संध्या पूजन के लिए उत्तम है।
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सफला एकादशी का महत्व स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। इस एकादशी को सभी कार्यों में सफलता प्रदान करने वाली माना जाता है। इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति के सभी अटके हुए या असफल कार्य सफलतापूर्वक पूरे हो जाते हैं।

यह एकादशी भक्तों को उनके पिछले जन्मों और वर्तमान जन्म के पापों से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है। जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से यह व्रत करता है, उसे जीवन में यश, समृद्धि और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्यफल प्राप्त होता है।
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