महाभारत में कर्ण हमेशा युद्धस्थल को छोड़कर क्यों भाग जाता था, जानें वजह

कर्ण, महाभारत के सबसे निपुण धनुर्धारियों में से एक थे, लेकिन उनका जीवन दुखों से भरा था। वह पांडवों में सबसे बड़े थे, परंतु कुंती ने उन्हें यह सच कभी नहीं बताया। जिसके कारण उन्हें जीवन भर अपमान और उपेक्षा झेलनी पड़ी। युद्ध के मैदान में, अर्जुन उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी थे। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं कि कर्ण हमेशा युद्धस्थल को छोड़कर क्यों भाग जाते थे।
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महाभारत के युद्ध में कर्ण का किरदार अत्यंत महत्वपूर्ण है। कुंती के सूर्य पुत्र होने के बावजूद, उन्हें सूतपुत्र के रूप में जीवन जीना पड़ा। अधिरथ और राधा ने कर्ण का पालन-पोषण किया। कर्ण अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने अपने कवच-कुंडल और अंतिम समय में सोने का दांत भी दान में दे दिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था कि सच्चा दान निष्काम भाव से किया जाना चाहिए। दान में किसी प्रकार का स्वार्थ या अपेक्षा छिपी हो तो वह व्यर्थ हो जाता है। क्या आप जानते हैं कर्ण हमेशा युद्ध के दौरान युद्धस्थल को छोड़कर क्यों चला जाता था। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

युद्ध के दौरान युद्धस्थल को छोड़कर कर्ण क्यों भागे?

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महाभारत के अनुसार, कर्ण सूर्यपुत्र थे और उनके दिव्य कवच कुंडल था। जिसके कारण कोई भी दिव्यास्त्र के बिना उनका वध नहीं कर सकता था। आपको बता दें, ब्राह्मण वेश घारण करके कर्ण ने कई दिव्यास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था, लेकिन जब उनकी असली पहचान पता चली तब उनकी शिक्षा अधूरी रह गई। उसके बाद कर्ण को दुर्योधन ने अंगदेश का राजा घोषित कर दिया। जिससे दुर्योधन से मित्रता करने के बाद कर्ण की पूरी जिंदगी बदल गई।
उसके बाद युद्ध के दौरान कर्ण ने अर्जुन को युद्ध भूमि में चुनौति दी, लेकिन कर्ण राजवंश से न होने के चलते उसके सम्मान को ठेस पहुंची। वहीं घोषयात्रा के दौरान कर्ण चित्रसेन से हारकर युद्ध भूमि को छोड़कर चले गए। जो उनकी जीवन की सबसे बड़ी हार हुई।
वहीं अज्ञातवास के आखिरी दिन विराट युद्ध में कर्ण और कौरव सेना को अर्जुन ने अकेला हराया और यह भी कर्ण की सबसे बड़ी पराजय थी।

कर्ण को क्यों कहा जाता है दानवीर

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भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कर्ण को सबसे महान दानी माना था। अर्जुन इस प्रशंसा से असहमत थे और उन्होंने कृष्ण से पूछा, 'हे कृष्ण, सभी कर्ण की इतनी प्रशंसा क्यों करते हैं?' कृष्ण ने तब एक अद्भुत चमत्कार दिखाया। उन्होंने दो विशाल पर्वतों को सोने में बदल दिया और अर्जुन से कहा, 'इस सोने को गांव वालों में बाँट दो।' अर्जुन ने गांववालों को बुलाया और पर्वतों को काटने लगे, लेकिन थक गए। तब कृष्ण ने कर्ण को बुलाया और सोना बाँटने को कहा। कर्ण ने बिना एक पल की देरी के कहा, 'यह सारा सोना गांववालों का है, वे इसे आपस में बाँट लें।' कृष्ण मुस्कुराए और बोले, 'देखो, कर्ण कभी अपने स्वार्थ के बारे में नहीं सोचता। यही कारण है कि उसे सबसे बड़ा दानी कहा जाता है।

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Image Credit- HerZindagi

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