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Dev uthani Ekadashi Vrat Katha 2025: हजार व्रतों के बराबर पुण्य देने वाली है देवउठनी एकादशी, इस व्रत कथा के पाठ से खुल सकते हैं सोए भाग्य

Dev Uthani Ekadashi Vrat ki Katha or Kahani 2025: हिंदू धर्म में कार्तिक महीने की एकादशी को सभी एकादशी तिथियों में श्रेष्ठ माना जाता है और इस दिन विष्णु जी की पूजा विधि-विधान से करने और देवउठनी एकादशी की कथा का पाठ करने से समस्त कष्टों से मुक्ति मिल सकती है।
Editorial
Updated:- 2025-11-01, 05:14 IST

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी कहा जाता है इसे देवोत्थान या प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। यह एकादशी दीपावली पर्व के पश्चात आती है और ऐसी मान्यता है कि इस दिन श्री हरि छीर सागर में चार महीने शयन करने के बाद योग निद्रा से जागृत होते हैं, इसी वजह से इस एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। उसी दिन से शादी- विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विधि विधान से की जाती है और देवउठनी एकादशी की व्रत कथा का पाठ किया जाता है। मान्यता है कि व्रत कथा का पाठ करने से व्यक्ति की मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। आइए आपको बताते हैं देवउठनी एकादशी की व्रत कथा के बारे में जिसका पाठ करना आपके लिए बहुत फलदायी और शुभ होगा।

देवउठनी एकादशी व्रत कथा (Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha 2025)

देवउठनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक राजा था उसके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। किसी भी एकादशी तिथि को उस राज्य में कोई भी अन्न नहीं बेचता था और सभी फलाहार का पालन करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाही और भगवान एक सुंदरी का रूप धारण करके सड़क पर बैठ गए। उसी समय राजा उधर से निकला और सुंदरी को देखकर चकित रह गया उसने पूछा हे सुंदरी तुम कौन हो और इस तरह यहां क्यों बैठी हो। तब स्त्री ने उत्तर दिया कि मैं निराश हूं और मेरा कोई सहारा नहीं है, मैं किससे सहायता मांगू।

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उस समय राजा उसके रूप पर मोहित हो गया और बोला तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रहो। तब सुंदरी बोली मैं तुम्हारी बात मानूंगी, लेकिन आपको पूरे राज्य का कार्यभार और अधिकार मुझे सौंपना होगा। राजा सुंदरी के रूप पर मोहित था अतः उसकी सभी शर्तें स्वीकार कर लीं। अगले दिन ही एकादशी थी रानी ने आदेश दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाए उसने घर में मांस मछली आदि पकवाई तथा परोस कर राजा से खाने के लिए आग्रह किया। यह देखकर राजा बोला रानी आज एकादशी है मैं तो केवल फलाहार ही करूंगा। तब रानी ने अपनी शर्त की याद दिलाई और बोली या तो खाना खाओ नहीं तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट दूंगी। राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी से कही तो बड़ी रानी बोली महाराज धर्म ना छोड़े बड़े राजकुमार का सिर दे दें। पुत्र तो फिर से मिल जाएगा पर धर्म नहीं मिलेगा।

इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेलकर आ गया मां की आंखों में आंसू देखकर वह रोने का कारण पूछने लगा तो मां ने सारी स्थिति बता दी। तब वह बोला मैं सिर देने के लिए तैयार हूं पिताजी के धर्म की रक्षा जरूर होगी। राजा दुखी मन से राजकुमार का सिर देने को तैयार हुआ तो रानी के रूप से भगवान विष्णु ने प्रकट होकर असली बात बताई और कहा क़ि राजन मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था और तुम इस कठिन परीक्षा में सफल हुए। भगवान ने प्रसन्न मन से राजा से वर मांगने को कहा तो राजा बोला आपका दिया सब कुछ है हमारा उद्धार करें। उसी समय वहां एक विमान उतरा राजा ने अपना राज्य पुत्र को सौंप दिया और विमान में बैठकर परमधाम को चला गया। ऐसी मान्यता है कि उड़ दिन देवउठनी एकादशी थी और जिस तरह से राजा को यह व्रत करके मोक्ष की प्राप्ति हुई थी उसी तरह आज भी जो देवउठनी एकादशी का व्रत करता है और व्रत कथा का पाठ करता है, उसे समस्त कष्टों से मुक्ति मिलने के साथ मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।

अगर आप भी देवउठनी एकादशी का व्रत करती हैं तो इस कथा का पाठ अवश्य करें। इससे आपको व्रत का पूर्ण फल मिल सकता है। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह के अन्य आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।

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