
साल 2025 में देवउठनी एकादशी 1 नवंबर, शनिवार को मनाई जाएगी। हिंदू धर्म में इस तिथि का बहुत बड़ा महत्व है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु अपनी चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं, जिसे चातुर्मास का समापन माना जाता है। भगवान के जागने के साथ ही सृष्टि में सभी तरह के मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन और गृह प्रवेश फिर से शुरू हो जाते हैं जिन पर पिछले चार महीनों से रोक लगी हुई थी। इसलिए इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन तुलसी माता की पूजा करना भी अत्यंत शुभ फलदायी माना जाता है जिससे घर में सुख-समृद्धि आती है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं देवउठनी एकादशी के दिन कैसे जगाएं देवी देवताओं को और क्या है संपूर्ण पूजा विधि।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता तुलसी की पूजा का विशेष विधान है। इस पूजा के लिए सामग्री बहुत ही सरल और आसानी से मिलने वाली होती है, लेकिन हर सामग्री का अपना धार्मिक महत्व होता है।
सबसे पहले भगवान विष्णु या शालिग्राम की मूर्ति और तुलसी का पौधा लें। चौकी या आसन, पीला कपड़ा और एक कलश रखें। पूजा के लिए घी का दीपक, धूप, अगरबत्ती और माचिस तैयार रखें।

रोली तुलसी को लगाने के लिए, पीला चंदन विष्णु को लगाने के लिए, अक्षत, हल्दी, पंचामृत और पीले या लाल रंग के फूल रखें। पूजा में भगवान को अर्पित करने के लिए पान का पत्ता, सुपारी, लौंग, इलायची और दक्षिणा भी अनिवार्य रूप से रखें।
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भगवान विष्णु को अर्पित करने के लिए मौसमी फल बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, खासकर जो इस कार्तिक मास में मिलते हैं। इसमें गन्ना, सिंघाड़ा, शकरकंद, आंवला, बेर, सीताफल, और केला शामिल होते हैं।
भगवान के भोग के लिए बेसन के लड्डू, बर्फी या साबूदाने की खीर जैसी सात्विक मिठाई तैयार करें। इस दिन चावल का उपयोग वर्जित होता है, इसलिए चावल से बनी खीर नहीं बनानी चाहिए। सामग्री के तौर पर तुलसी दल अवश्य शामिल करें।
सबसे पहले घर के आंगन या पूजा स्थान पर फर्श को साफ करके गेरू और चावल के आटे या हल्दी के घोल से एक चौक बनाया जाता है। इस चौक पर भगवान विष्णु के चरण चिह्न बनाए जाते हैं जिन्हें पूजा पूरी होने तक किसी कपड़े से ढककर रखा जाता है।
इसके बाद, सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें। इसके बाद मन में भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए गंगाजल से पूजा स्थल को पवित्र करें। पूजा के लिए एक चौकी स्थापित करें और उस पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें।

इसके पश्चात, भगवान विष्णु का अभिषेक करें। फिर उन्हें नए वस्त्र पहनाकर, चंदन लगाकर और सुंदर फूलों से उनका श्रृंगार करें। भगवान को माला, कलावा और नैवेद्य अर्पित करें। साथ ही मौसमी फल भी चढ़ाएं। भगवान विष्णु के भोग को शुद्धता से रखें।
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पूजा के दौरान, भगवान विष्णु को मीठे का भोग लगाएं और उनके द्वादशाक्षर मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करें। अंत में, उनके सामने धूप और घी का दीपक जलाकर आरती गाएं और जोर-जोर से घंटी और शंख बजाकर भगवान विष्णु को योगनिद्रा से जगाएं।
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