
हिंदू धर्म के किसी भी पर्व की ही तरह देव दिवाली को भी विधि-विधान से मनाया जाता है। भक्तजन कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि को देव दिवाली के रूप में मनाते हैं। दिवाली के ठीक पंद्रह दिन बाद मुख्य रूप से काशी नगरी में देव दिवाली मनाई जाती है। इस पर्व की मान्यतानुसार इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करके देवताओं को मुक्ति दिलाई थी। तभी से इस दिन को देव दिवाली के रूप में न सिर्फ काशी बल्कि पूरे देश में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन सभी देवतागण काशी नगरी में प्रकट होते हैं और मनुष्यों के साथ दिवाली मनाते हैं। यह दिन न केवल प्रकाश और भक्ति का पर्व है, बल्कि देवताओं के विजय उत्सव का प्रतीक भी है। पहली बार देवताओं ने इस दिन काशी नगरी में देव दिवाली के दिन दीपदान किया था इसी वजह से इस दिन दीप दान करने की प्रथा भी है। इस साल यह पर्व 05 नवंबर, बुधवार के दिन मनाया जाएगा। अगर आप इस दिन पूजा के साथ कुछ विशेष मंत्रों का जाप भी करती हैं, तो आपको समस्त पापों से मुक्ति मिल सकती है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें ऐसे ही कुछ मंत्रों के बारे में।
देव दिवाली के दिन कुछ विशेष मंत्रों का जाप करना फलदायी माना जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा के साथ विष्णु जी और माता लक्ष्मी की पूजा करना फलदायी माना जाता है और साथ ही इन्हीं देवों के मंत्रों का जाप फलदायी माना जाता है।

आप देव दिवाली के दिन माता लक्ष्मी को अपने घर में आमंत्रित करने के लिए 'ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥' मंत्र का जाप करें।
यदि आप देव दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के साथ विष्णु जी का पूजन न करें तो पूजन को अपूर्ण माना जाता है। देव दिवाली के दिन आप विष्णु जी की पूजा के समय 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का 108 बार जाप करें और 'ॐ नमो नारायणाय नमः' मंत्र पढ़ें, तो जीवन में समृद्धि बनी रहती है।
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देव दिवाली के दिन भगवान शिव की पूजा का भी विशेष महत्व है क्योंकि इसी दिन शिव जी ने त्रिपुरासुर नमक राक्षस का वध किया था। इस दिन आप शिव पूजन के समय 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र के साथ 'ॐ श्री वर्धनाय नमः' मंत्र का जाप करती हैं तो आपकी मनोकामनाओं की मूर्ति होती है। इस मंत्र के जाप से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।

देव दिवाली का शाब्दिक अर्थ होता है 'देवताओं की दिवाली'और इस दिन का ज्योतिष में बहुत महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन देवता स्वयं पृथ्वी पर उतरकर गंगा स्नान करते हैं और दीप जलाते हैं। इसी दिन कार्तिक पूर्णिमा की तिथि भी होती है और इसे पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति का पर्व भी कहा गया है। मुख्य रूप से काशी में इस दिन का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। इस दिन काशी में गंगा किनारे हजारों दीपों की रोशनी जगमगाती है और मंत्रों की ध्वनि वातावरण में गूंजती है। देव दिवाली के पर्व के लिए भक्तों का उत्साह इस दिन को और ज्यादा दिव्यता से भर देता है। इस दिन लोग अपने घरों में भी दीपदान भी करते हैं।
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देव दिवाली पर दीपदान का विशेष महत्व है और इस दिन घर, मंदिर या गंगा किनारे घी या तिल के तेल के दीपक जलाना अत्यंत शुभ माना जाता है। यदि आप काशी नहीं जा सकते, तो घर के बाहर या बालकनी में दीप जलाएं। इस दिन तुलसी का पूजन करना भी बहुत शुभ माना जाता है और तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाने की सलाह दी जाती है। यदि आप गंगा या किसी जलाशय के किनारे दीपदान करके नदी में प्रवाहित करें तो इसके शुभ फल आपके जीवन में दिखाई देते हैं। देव दिवाली के दिन दान-पुण्य करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
देव दिवाली की पूजा में मंत्रों का जाप करने के अलावा इस दिन गरीबों, ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, तेल, दीपक और मिठाई का दान करने से अपार पुण्य मिलता है।
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