
देव दीपावली का पर्व हिंदू धर्म में विशेष रूप से मनाया जाता है और इस दिन को देवताओं की दिवाली के रूप में पूरे देश में धूमधाम से मनाते हैं। इसे हिंदू धर्म की उन विशेष तिथियों में से एक माना जाता है, जिसे वाराणसी सहित पूरे देश में अत्यंत भव्यता और आस्था के साथ मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। देव दिवाली के पावन अवसर पर लोग दीपदान करते हैं और देवताओं का पूजन करते हैं। मुख्य रूप से वाराणसी के गंगा घाटों पर इस दिन हजारों दीयों की रोशनी जगमगाती है और ऐसा दिव्य दृश्य बनता है, जैसे धरती पर स्वयं स्वर्ग उतर आया हो। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देव दीपावली पर गंगा स्नान, दीपदान और ईश्वर की आराधना करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में हर प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं। इस तिथि को विशेष रूप से पूर्वजों की मुक्ति, धन-समृद्धि की प्राप्ति और पापों के क्षय का दिन माना जाता है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें कि इस साल कब मनाई जाएगी देव दिवाली, पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है और इस दिन का महत्व क्या है।
हर साल कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि को देव दिवाली का पर्व मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि 05 नवंबर को मनाई जाएगी और इसी दिन देव दिवाली मनाई जाएगी। इस दिन कशी नगरी को दीपों से सजाया जाएगा और देवतागण भी कशी नगरी में उतरकर दिवाली मनाएंगे।

देव दिवाली का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है और इस पर्व का वाराणसी नगरी में अलग धूम होती है। आइए जानें इस दिन का शुभ मुहूर्त क्या है-
देव दिवाली के दिन को अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक माना जाता है। यह पर्व कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है और मान्यता है कि इसी दिन देवताओं ने भगवान शिव की त्रिपुरासुर पर विजय का उत्सव मनाया था। इसी वजह से पूरी कशी नगरी में आज भी इस दिन को दिवाली की तरह मनाया जाता है और इसे 'देवताओं की दिवाली' कहा जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दीपदान और भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि देव दिवाली पर किए गए कर्म, दान और पूजा साधारण दिनों की तुलना में कई गुना फल देते हैं। देव दिवाली को पूर्वजों की आत्मा की शांति का दिन भी माना जाता है और उनकी मुक्ति के उपाय भी आजमाए जाते हैं। इस दिन घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाना बहुत शुभ माना जाता है और जलाशयों जैसे नदी के आस-पास भी दीपदान किया जाता है।

देव दिवाली पर दीपदान करने के पीछे गहरा आध्यात्मिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। इसी विजय के उपलक्ष्य में देवताओं ने दिवाली की तरह दीप प्रज्वलित करके उत्सव मनाया था। तभी से इस दिन दीपदान करने को बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन दीपदान करने से समस्त नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
हिंदू धर्म में देव दिवाली का महत्व बहुत ज्यादा है और इस दिन को देवताओं की दिवाली के उत्सव के रूप में काशी ही नहीं पूरे देश में मनाया जाता है। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह के अन्य आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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