हिंदू धर्म में चातुर्मास का समय आत्म-चिंतन, तपस्या और भक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान, नकारात्मक ऊर्जाओं के प्रभाव से बचने और शुभता को आकर्षित करने के लिए विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और पाठ किए जाते हैं। जिसमें से एक भगवान गणेश के स्तोत्र का पाठ करने का भी विधान है। आपको बता दें, भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और प्रथम पूज्य देव माना जाता है। कोई भी शुभ कार्य हो या किसी भी समस्या से मुक्ति पानी हो, गणेश जी का स्मरण सर्वप्रथम किया जाता है। चातुर्मास के दौरान भगवान गणेश का स्तोत्र का पाठ करने का विधान है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
चातुर्मास में करें भगवान गणेश के स्तोत्र का पाठ
प्रणम्य शिरसा देवं गौरी विनायकम् ।
भक्तावासं स्मेर नित्यमाय्ः कामार्थसिद्धये ॥1॥
प्रथमं वक्रतुडं च एकदंत द्वितीयकम् ।
तृतियं कृष्णपिंगात्क्षं गजववत्रं चतुर्थकम् ॥2॥
लंबोदरं पंचम च पष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेंद्रं धूम्रवर्ण तथाष्टमम् ॥3॥
नवमं भाल चंद्रं च दशमं तु विनायकम् ।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजानन् ॥4॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंघ्यंयः पठेन्नरः ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो ॥5॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान्मो क्षार्थी लभते गतिम् ॥6॥
जपेद्णपतिस्तोत्रं षडिभर्मासैः फलं लभते ।
संवत्सरेण सिद्धिंच लभते नात्र संशयः ॥7॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणे भ्यश्र्च लिखित्वा फलं लभते ।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥8॥
॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्टनाशनं नाम श्री गणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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चातुर्मास में गणेश स्तोत्र का पाठ करने का महत्व
मान्यता है कि इस पवित्र काल में गणेश स्तोत्र का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, और उनकी स्तुति से वे अपने भक्तों के मार्ग में आने वाली सभी अड़चनों को दूर करते हैं। व्यापार, शिक्षा या व्यक्तिगत जीवन में सफलता प्राप्त करने के इच्छुक लोगों के लिए यह पाठ विशेष फलदायी होता है। गणेश स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक शांति और एकाग्रता बढ़ती है। गणेश स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को बुद्धि, ज्ञान और समृद्धि की प्राप्ति होती है। गणेश स्तोत्र का पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जाएं दूर होती हैं और सकारात्मकता का संचार होता है।
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