Significance Of Shradh By Women: हिंदू धर्म में श्राद्ध कर्म को अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण संस्कार माना गया है। किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसे पितृलोक में स्थान देने और उसकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध व पिंडदान किया जाता है। परंपरागत रूप से यह कार्य घर के पुरुष सदस्य, जैसे पुत्र, भाई, पिता या पौत्र आदि द्वारा किया जाता है।
लेकिन वर्तमान समय में जब संयुक्त परिवारों की संख्या घटती जा रही है और परिवार छोटे होते जा रहे हैं, तो ऐसे में कई बार श्राद्ध करने के लिए कोई पुरुष सदस्य उपलब्ध नहीं होता। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या महिला, विशेषकर पत्नी, अपने पति का श्राद्ध कर सकती है?
इस विषय पर हमने छिंदवाड़ा के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित जी से बात की। उन्होंने स्पष्ट किया कि, "पत्नी को अपने पति का श्राद्ध करने का पूरा अधिकार है। सामान्य रूप से यह कार्य परिवार के पुरुष सदस्यों द्वारा किया जाना चाहिए, क्योंकि श्राद्ध को वंश परंपरा से जोड़कर देखा जाता है। जैसे पिता का श्राद्ध पुत्र करे, पुत्र का श्राद्ध उसका पुत्र या भाई करे, यह आदर्श परंपरा मानी गई है।"
लेकिन जब परिवार में कोई पुरुष सदस्य उपस्थित न हो, तो ऐसी स्थिति में महिला, विशेष रूप से पत्नी, अपने पति का श्राद्ध कर्म कर सकती है। शास्त्रों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि महिलाएं भी पितरों के प्रति कर्तव्य निभा सकती हैं, विशेषकर तब जब उनके अलावा और कोई उत्तराधिकारी न हो। यह एक धार्मिक और भावनात्मक कर्तव्य है, जिसे पत्नी द्वारा निभाना पूरी तरह से स्वीकार्य और पुण्यदायक माना गया है।
जिस प्रकार से किसी मृत्य व्यक्ति का श्राद्ध एक पुरुष द्वारा किया जाता है, ठीक उसी प्रकार से एक महिला भी अपने किसी भी पूर्वज का श्राद्ध कर सकती हैं। पति की मृत्यु की बाद यदि बेटा, पोता या घर में कोई अन्य पुरुष सदस्य नहीं है, तो वह खुद भी पति का श्राद्ध कर्म कर सकती है। पंडित जी कहते हैं, "गृहिणी, अपने पितरों का श्राद्ध और तर्पण कर सकती है। विधि में भी कोई अंतर नहीं होता है, जल में तिल और कुश डालकर पितरों का आह्वान, पिंडदान तथा ब्राह्मण भोजन, यह सभी कुछ एक महिला कर सकती है। "
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यदि पत्नी श्रद्धा भाव से अपने पति का श्राद्ध करती है, तो वह भी पितरों को उतनी ही तृप्ति प्रदान करता है जितना किसी पुरुष सदस्य द्वारा किया गया श्राद्ध।
श्राद्ध का मुख्य उद्देश्य केवल कर्मकांड निभाना नहीं, बल्कि पितरों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता और सम्मान प्रकट करना होता है। इसलिए जब परिवार में कोई पुरुष सदस्य उपस्थित न हो, तो पत्नी द्वारा विधिपूर्वक और सच्चे मन से किया गया श्राद्ध भी पूर्ण फलदायी होता है और पितृगण संतुष्ट होते हैं।
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पंडित जी कहते हैं, "हिंदू शास्त्रों में श्रद्धा और भावना को सर्वोपरि माना गया है। श्राद्ध केवल एक परंपरा या कर्मकांड नहीं, बल्कि यह पितरों के प्रति सम्मान, कृतज्ञता और आत्मिक संबंध की अभिव्यक्ति है। जब किसी परिवार में पुरुष सदस्य अनुपस्थित हों, तो ऐसी स्थिति में पत्नी द्वारा पति का श्राद्ध करना न केवल शास्त्रसम्मत है, बल्कि पूर्ण रूप से स्वीकार्य और फलदायक भी है।"
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गरुड़ पुराण तथा अन्य धर्मग्रंथों में यह स्पष्ट रूप से वर्णित है कि स्त्री भी विधिपूर्वक तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन जैसे श्राद्ध कर्म कर सकती है। यदि पत्नी सच्चे मन से श्रद्धा और नियमपूर्वक यह कर्तव्य निभाती है, तो वह भी अपने पति की आत्मा की शांति के लिए उतना ही प्रभावी होता है, जितना कि किसी पुरुष द्वारा किया गया श्राद्ध। यह लेख पसंद आया हो तो इसे शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी धर्म से जुड़े लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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