4 अक्टूबर 2025, दिन शनिवार को हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि है। आज के दिन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि आज की तिथि मासिक शिवरात्रि के बाद आती है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि आज का दिन शनि प्रदोष व्रत के रूप में मनाया जाएगा। शनिवार के दिन त्रयोदशी तिथि का प्रदोष काल में पड़ना अत्यंत शुभ माना जाता है, इसलिए भक्त इस दिन भगवान शिव की पूजा करते हैं जिससे शनि दोषों में कमी आती है और दीर्घायु का वरदान मिलता है। इसके अलावा, एमपी, छिंदवाड़ा के ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ त्रिपाठी ने हमें बताया कि आज के दिन शिव मंत्रों का जाप करने के लिए और शनिदेव की पूजा के लिए कई शुभ मुहूर्तों का निर्माण हो रहा है जिनके बारे में जानने के लिए आप आज का पंचांग देख सकते हैं।
तिथि | नक्षत्र | दिन/वार | योग | करण |
अश्विन शुक्ल त्रयोदशी | शतभिषा (सुबह 08:01 बजे तक)/पूर्वा भाद्रपद | शनिवार | गण्ड | तैतिल |
प्रहर | समय |
सूर्योदय | सुबह 06:15 बजे |
सूर्यास्त | शाम 06:04 बजे |
चंद्रोदय | शाम 04:21 बजे |
चंद्रास्त | सुबह 04:03 बजे (अगले दिन) |
मुहूर्त नाम | मुहूर्त समय |
ब्रह्म मुहूर्त | सुबह 04:38 बजे से सुबह 05:27 बजे तक |
अभिजीत मुहूर्त | सुबह 11:46 बजे से दोपहर 12:33 बजे तक |
अमृत काल | देर रात 01:09 बजे से 02:41 बजे तक |
विजय मुहूर्त | दोपहर 02:08 बजे से 02:55 बजे तक |
गोधुली मुहूर्त | शाम 06:03 बजे से शाम 06:28 बजे तक |
निशिता काल | रात 11:45 बजे से रात 12:34 बजे तक |
मुहूर्त नाम | मुहूर्त समय |
राहु काल | सुबह 09:13 बजे से सुबह 10:41 बजे तक |
गुलिक काल | सुबह 06:16 बजे से सुबह 07:44 बजे तक |
यमगंड | दोपहर 01:39 बजे से दोपहर 03:07 बजे तक |
दुर्मुहूर्त: पहला भाग | सुबह 10:11 बजे से सुबह 10:58 बजे तक |
दुर्मुहूर्त: दूसरा भाग | शाम 04:28 बजे से शाम 05:15 बजे तक |
भद्रा | सुबह 06:11 बजे से सुबह 09:32 बजे तक |
4 अक्टूबर 2025, दिन शनिवार को हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है जिसे शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। यह व्रत अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है और जब यह तिथि शनिवार को पड़ती है तो इसे विशेष रूप से शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस दिन मुख्य रूप से भगवान शिव और शनि देव की पूजा की जाती है। यह व्रत शिव जी की कृपा और शनिदेव के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए रखा जाता है। इस तिथि पर कोई बड़ा त्यौहार नहीं है बल्कि धार्मिक कैलेंडर में यह दिन शिव पूजा और शनि शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
शाम को प्रदोष काल यानि सूर्यास्त के आस-पास के समय में शिव मंदिर जाकर शिवलिंग पर काले तिल मिलाकर जल अर्पित करें। इसके बाद, शिव चालीसा या महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करें। यह उपाय विशेष रूप से शनि प्रदोष पर रोगों से मुक्ति और मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है। शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का चौमुखी दीपक जलाएं। दीपक जलाने के बाद पीपल के पेड़ की सात बार परिक्रमा करें। यह उपाय शनि दोषों को शांत करने, साढ़ेसाती और ढैय्या के कष्टों को कम करने और जीवन में सुख-शांति लाने में सहायक है।
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