कहते हैं न कि जहां तक ज्ञान का समुद्र है वहां तक विज्ञान है और जहां से रहस्य एवं चमत्कार शुरू हो जाएं तो वहां दैवीय लीला का वास स्थापित है। इसी बात को सार्थक करता है पूरी का जगन्नाथ मंदिर जिससे जुड़े कई रहस्य आज भी अनसुलझे और विज्ञानिकों के भी समझ से परे हैं। ऐसा ही एक रहस्य है जगन्नाथ मंदिर के पास स्थित समुद्र का। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि जब तक कोई भी व्यक्ति मंदिर के बाहर होता है तब तक समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई देती रहती है, लेकिन जैसे ही मंदिर में परेश करते हैं वैसे ही समुद्री लहरों की आवाज आनी बंद हो जाती है। तो चलिए जानते हैं कि आखिर क्यों जगन्नाथ मंदिर में समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई नहीं देती है।
जगन्नाथ मंदिर में क्यों नहीं सुनाई देती समुद्री लहरों की आवाज?
जगन्नाथ मंदिर में समुद्री लहरों की आवाज न सुनाई देने के पीछे एक प्रमुख पौराणिक कथा देवी सुभद्रा से जुड़ी है जो भगवान जगन्नाथ की बहन हैं। कथा के अनुसार, देवी सुभद्रा को समुद्र की तेज आवाज से परेशानी होती थीं और वे चाहती थीं कि मंदिर के अंदर शांति और एकांत बना रहे ताकि भक्त बिना किसी व्यवधान के भगवान के दर्शन और पूजा कर सकें।
अपनी बहन की इस इच्छा का सम्मान करते हुए भगवान जगन्नाथ ने स्वयं ऐसी व्यवस्था की कि जैसे ही कोई भक्त सिंह द्वार यानी कि मुख्य प्रवेश द्वार से मंदिर के भीतर प्रवेश करता है, समुद्र की गर्जना पूरी तरह से शांत हो जाती है। यह एक दिव्य चमत्कार माना जाता है जो यह दर्शाता है कि भगवान अपने भक्तों और प्रियजनों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए किसी भी नियम को बदल सकते हैं।
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एक और मान्यता यह है कि भगवान हनुमान को इस मंदिर की रक्षा का दायित्व सौंपा गया है। यह कहा जाता है कि हनुमान जी ने अपनी शक्ति से समुद्र की आवाज को मंदिर के भीतर आने से रोक दिया था, ताकि भगवान जगन्नाथ अपनी निद्रा में किसी भी प्रकार के व्यवधान के बिना विश्राम कर सकें और भक्तों को शांत वातावरण में दर्शन दे सकें। तभी से मंदिर में प्रवेश करते ही समुद्री लहरों की आवाज सुनाई नहीं देती है।
ज्योतिष में मंदिरों को सकारात्मक ऊर्जा और आध्यात्मिक शांति का केंद्र माना जाता है। यह माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति किसी पवित्र स्थान पर प्रवेश करता है तो उसे बाहरी दुनिया के शोरगुल और नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति मिलती है। जगन्नाथ मंदिर का शांत वातावरण इस विचार को पुष्ट करता है कि यह स्थान बाहरी प्रभावों से अछूता है और यहां केवल दैवीय ऊर्जा का अनुभव किया जा सकता है।
कुछ आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार, मंदिर की वास्तुकला और उसके भीतर स्थापित देवताओं की ऊर्जा का संतुलन इस प्रकार से किया गया है कि यह बाहरी ध्वनियों और कंपन को अवशोषित कर लेता है। यह एक प्रकार का ऊर्जा कवच बनाता है जो मंदिर के भीतर एक शांत और पवित्र वातावरण बनाए रखता है। यह संतुलन ज्योतिषीय रूप से भी शुभ माना जाता है।
ज्योतिष और आध्यात्मिकता दोनों में ही यह माना जाता है कि कुछ स्थानों पर इतनी अधिक दैवीय ऊर्जा होती है कि वे प्राकृतिक नियमों को भी प्रभावित कर सकते हैं। जगन्नाथ मंदिर को एक अत्यंत शक्तिशाली और पवित्र स्थान माना जाता है जहां भगवान स्वयं विराजमान हैं। ऐसे में, समुद्री लहरों की आवाज का सुनाई न देना उस स्थान की दैवीय शक्ति और चमत्कारी प्रभाव का ही एक प्रमाण माना जाता है।
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image credit: herzindagi
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