महिलाओं को हर महीने होने वाले पीरियड्स उनकी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा है। पीरियड्स समय पर होना महिलाओं की मेंस्ट्रुअल हेल्थ और मैरिटल लाइफ में उनकी प्रेग्नेंसी के लिहाज से बहुत मायने रखता है। लेकिन भारतीय समाज में पीरियड्स पर चर्चा करना कभी भी आम जिंदगी का हिस्सा नहीं रहा, क्योंकि इसे टैबू माना जाता रहा है। लेकिन आज के समय की बहुत से युवा इस सिचुएशन को बदलने के लिए अपनी तरफ से सार्थक प्रयास कर रहे हैं। इसमें झारखंड के एक युवाओं का खासतौर पर जिक्र किया जा सकता है, जो अपनी ग्रैफिटी को पीरियड्स का रंग देकर स्वच्छ भारत के मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं। इन युवाओं की ये 'स्वच्छ भारत आर्ट' टॉयलेट बनाने और कचरे का सही तरीके से निपटारा किए जाने की तरफ ध्यान आकर्षित करती है।
मेंस्ट्रुअल हेल्थ के बारे में लोग चर्चा करने से कतराते हैं और इसकी अहमियत समझने के बावजूद बात करने में बहुत सहज नहीं होते। इस चीज को भलीभांति समझते हुए इन युवाओं ने कला के माध्यम से इस अहम विषय पर अपनी क्रिएटिविटी जाहिर की है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि अभी भी भारत के कई हिस्से ऐसे हैं, जहां पर पीरियड्स को लेकर सार्वजनिक तौर पर चर्चा करना एक बड़ा टैबू माना जाता है। इसी वजह से मेंस्ट्रुअल हेल्थ को उतनी वरीयता नहीं मिल पा रही, जितनी इस विषय को दी जानी चाहिए।
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एनडीए सरकार की तरफ से चलाए गए स्वच्छ भारत अभियान जैसे राष्ट्रव्यापी कार्यक्रमों से भी मेंस्ट्रुअल हेल्थ जैसा मुद्दा गायब है। लोगों की इसी सोच ने झारखंड के युवाओं को अपनी तरह से इस विषय पर लोगों को सोचने के लिए मजबूर किया है।
झारखंड के 35 युवा गांव की दीवारों को पीरियड्स के रंग में रंगकर बिना कुछ बोले लोगों को मेंस्ट्रुअल हेल्थ के बारे में अवेयर कर रहे हैं। जेंडर राइट्स एक्टिविस्ट श्रीलेखा चक्रबर्ती चाय पर चर्चा की तर्ज पर #PeriodsPeCharcha कैंपेन चलाती हैं, ने दो इंडिपेंडेंट आर्टिस्ट्स श्रुति घोष और फ्रांसिस जेवियर के साथ मिलकर चार वर्कशॉप आयोजित कीं और 35 उत्साही लोगों का ग्रुप बनाया, जिन्हें खुद को ग्रैफिटी के जरिए एक्सप्रेस करने में महारत हासिल है।
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युवाओं का ग्रुप बनाने का एक मकसद ये भी था कि इसके जरिये स्थानीय लोगों को अभियान का हिस्सा बनाया जाए और इसके माध्यम से पीरियड्स को लेकर एक सार्थक चर्चा शुरू की जाए।
झारखंड में जमीन से जुड़े अभियानों में काम करने वाले एक्सपर्ट्स का मानना है कि मेंस्ट्रुअल हेल्थ महिलाओं के लिए एक अहम मुद्दा है और अभी तक यह सिर्फ पैमफ्लेट्स और गाइडलाइन्स तक ही सीमित है। आज के समय में मेंस्ट्रुअल हेल्थ और उसके व्यापक असर के बारे में खुलकर चर्चा होने की जरूरत है। इस पर NEEDS पिछले 20 सालों से यहां कई तरह के प्रोजेक्ट चला रहा है, जिनमें महिला अधिकार और महिला सशक्तीकरण पर सबसे ज्यादा जोर दिया जा रहा है। इस समूह ने देवघर में Marriage No Child’s Play प्रोजेक्ट पर भी काम किया था और इसके जरिए महिलाओं को लाइफ स्किल्स की ट्रेनिंग दी थी।
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