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Pongal Festival 2024: कब और कैसे शुरू हुई पोंगल मनाने की परंपरा? जानें इससे जुड़ी रोचक बातें

Pongal 2024: पोंगल मुख्य रूप से दक्षिण भारत का प्रमुख त्यौहार है। इस दिन नंदी देव की पूजा करने का भी विधान है। आइए जानते हैं इस दिन क्यों की जाती है बसव बैल की पूजा।
Editorial
Updated:- 2024-01-15, 17:21 IST

Pongal 2024: सुख-समृद्धि का प्रतीक पोंगल, दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला खास पर्व हैं, जिसे 4 दिनों तक बड़े धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाता है। यह त्यौहार हर साल जनवरी माह के माध्य में यानी मकर संक्रांति के दिन से लेकर चार दिनों तक अलग-अलग रुप में मनाया जाता है। साउथ के लोग पोंगल के पहले दिन को भोगी पोंगल, दूसरे दिन सूर्य पोंगल, तीसरे दिन मट्टू पोंगल और चौथे दिन कानुम पोंगल रुप में मनाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, इसी दिन से दक्षिण भारत के नव वर्ष की शुरुआत होती है। चार दिवसीय पोंगल का त्यौहार मुख्य रुप से कृषि और भगवान सूर्य से संबंधित है। इस दौरान सूर्यदेव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पोंगल त्यौहार मनाए जाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं। दरअसल, इस त्यौहार का संबंध भगवान शिव और श्री कृष्ण से भी जुड़ा हुआ है। इतना ही नहीं पोंगल के इस खास अवसर पर नंदी देव की भी विधि अनुसार पूजा की जाती है। तो चलिए जाने माने ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी के अनुसार जानते हैं पोंगल पर्व और इसकी पूजा से जुड़े रोचक तथ्य।

पोंगल पर्व में क्यों की जाती है नंदी की पूजा

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पोंगल पर्व का तीसरा दिन मट्टू पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इसमें मुख्य रूप से बैल और गायों की पूजा की जाती है। बैलों को भगवान शिव की सवारी नंदी का प्रतीक माना जाता है और उनकी पूजा का विधान है। इस दिन घर के पशुओं को घंटियों, मकई के ढेरों और मालाओं से सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।मान्यता है कि भगवान शिव ने एक बार अपने एक बैल बसव को नश्वर लोगों के लिए एक संदेश के साथ पृथ्वी पर भेजा था, जिसमें उनसे प्रतिदिन तेल मालिश करने और स्नान करने और महीने में एक बार भोजन करने को कहा था। हालांकि इस समय बसव ने गलती से घोषणा कर दी कि शिव ने लोगों को प्रतिदिन भोजन करने और महीने में एक बार तेल से स्नान करने के लिए कहा है। क्रोधित होकर, शिव भगवान ने बसव को यह श्राप देते हुए हमेशा के लिए पृथ्वी(सूर्य देव के मंत्र) पर निर्वासित कर दिया कि लोगों को अधिक भोजन पैदा करने में मदद करने के लिए उसे खेतों में हल चलाना होगा। इसलिए इस दिन का संबंध पशुओं से है। इस दिन नंदी जी की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि उन्हें बैलों में सबसे श्रेष्ठ माना जाता है और उनसे अपनी अच्छी फसल का आशीर्वाद लेने के लिए पूजन का विधान है।

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भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है पोंगल की कहानी

Pongal festival story related to nandi puja

हर्ष और उल्लास का पर्व पोंगल की कहानी भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी हुई है। इसके अनुसार, एक बार इंद्रदेव को अपने ऊपर घमंड आ गया था कि उनके बिना खेती करना संभव नहीं है। उन्हें ऐसा लगता था कि अच्छी फसल के लिए लोग उनकी पूजा करते हैं ताकि अच्छी बारिश हो। पर, जब इसके बारे में श्रीकृष्ण को पता चला तो उन्होंने सभी ग्वालों को इंद्रदेव की पूजा करने से मना कर दिया। इस बात को जानकर इंद्रदेव बेहद क्रोधित हो उठे और द्वारका नगरी पर तीन दिनों तक लगातार बारिश की। इतनी बारिश से वहां रहने वाले ग्वालों पर संकट आ गया। इंद्रदेव के इस रवैये को देख श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत ही उठा लिया। तब जाकर इंद्रदेव(सूर्य देव की आरती) का अभिमान चूर-चूर हो गया और उन्होंने बारिश रोक दी। यही नहीं, इसके बाद इंद्रदेव ने नई फसल भी उगाई। मान्यता है कि तभी से तमिलनाडू में पोंगल का त्योहार मनाने की परंपरा शुरू हुई। 

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