सदी की सबसे बड़ी फिल्मों में से एक मानी जाने वाली 'मुगल-ए-आजम' 1960 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म की कहानी जिल्लेइलाही कहे जाने वाले मुगल बादशाह अकबर और उनके बेटे शहजादे सलीम की कहानी थी। फिल्म में मोहब्बत और ताकत की एक अलग ही झलक दिखाई गई थी। कहानी से परे फिल्म में जिस शाही अंदाज में एक्टिंग की गई है उसे देखकर कोई भी समझ सकता है कि फिल्म को बनाने में कितनी मेहनत की गई थी।
इस फिल्म के ग्रैंड सेट्स को बनाने के लिए पुणे के मूर्तिकार बी.आर को लिया गया था। उनका पूरा नाम था अप्पासाहेब खेड़कर जिन्हें डायरेक्टर के. आसिफ ने बुला लिया था। इस फिल्म से पहले खेड़कर गणपति की मूर्तियां बनाया करते थे और डायरेक्टर के.आसिफ को बस उनका काम पसंद आ गया था।
इसके बाद खेड़कर ने पाकीजा जैसी अन्य महत्वपूर्ण फिल्मों के सेट्स भी बनाए। इस फिल्म के लिए शीश महल बनाना हो या फिर मधुबाला को एक पुतले का रूप देना हो। डायरेक्टर के.आसिफ ने इस फिल्म को रियलिस्टिक बनाने की पूरी कोशिश की थी। के.आसिफ ने इस फिल्म को बनाने में 16 साल लगा दिए थे।
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कैसे बन गई थीं मधुबाला बुत
इस फिल्म का एक डायलॉग है जहां मूर्तिकार कहता है कि वो ऐसा पुतला बनाएगा जिसके आगे सिपाही अपनी तलवार और शहनशाह अपना ताज उतारकर रख दे। इसके बाद आता है एक सीन जहां पुतला बनकर खुद मधुबाला खड़ी हो जाती हैं। उन्हें बिना हिले एक टक खड़े होना था।
इस सीन के लिए मधुबाला का मेकअप करना बहुत मुश्किल था। आर्टिस्ट्स को मधुबाला के लिए ऐसे ड्रेस बनाने थे जो ज्यादा से ज्यादा पत्थर के करीब लगे।
इसके लिए टीम ने बहुत मेहनत की और इस सीन को एकदम परफेक्ट बनाया गया।
उस वक्त मधुबाला के लिए मोटे से मोटा कपड़ा लाया गया ताकि वह मार्बल के टेक्सचर जैसा दिख सके, लेकिन फिर भी कुछ हो ना सका। इस सीन को पूरी तरह से सफल बनाने के लिए मधुबाला को रबर शीट्स से बनाई गई ड्रेस पहननी पड़ी। इसे पहनना कितना मुश्किल होगा यह तो आप समझ ही गए होंगे।
उनके चेहरे, बालों, आंखों तक में बहुत सारा मेकअप और केमिकल कोट्स लगाए गए। इतनी मेहनत के बाद जब असल में यह सीन फिल्माया गया, तो मधुबाला की ड्रेस का हर फोल्ड असल में एक बुत या कलाकृति जैसा लग रहा था। इंफ्लूएंसर मनीषा मलिक ने इसे बताते हुए एक वीडियो भी शेयर किया है।
सिर्फ इत्र के लिए तीन दिन तक रोक दी गई थी फिल्म की शूटिंग
फिल्म में एक सीन है जहां मधुबाला को इत्र से भरे तालाब के पास जाकर उसकी खुशबू को सूंघते हुए एक्सप्रेशन देना था। इस सीन के बारे में करण जौहर ने अपने पिता से सुना था और उन्होंने एक इंटरव्यू में उसका खुलासा भी किया था।
इस सीन के लिए के.आसिफ को सही एक्सप्रेशन चाहिए थे और वह मिल नहीं रहे थे। के.आसिफ ने एक अजीब सी मांग रख दी कि उस तालाब को असल में इत्र से भर दिया जाए। जब उनसे कहा गया कि यह मुमकिन नहीं है, तो के.आसिफ ने शूटिंग को तीन दिनों तक रोक दिया ताकि शूटिंग के लिए इत्र मंगवाया जा सके।
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के.आसिफ जितना चाहते थे उन्होंने इस फिल्म के साथ उतने एक्सपेरिमेंट किए और आखिर में फिल्म बनी और यह सदी की सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक हो गई। यही इकलौती ऐसी फिल्म है जिसे ब्लैक एंड व्हाइट से फिर कलर किया गया था और दोबारा थिएटर्स में रिलीज किया गया था।
फिल्म में जब दिलीप कुमार ने कहा था, 'क्या आपने इसलिए इतनी मिन्नतें करके मुझे परवर दिगार से मांगा था ताकि जिंदगी मेरी हो और मर्जी आपकी...' तब हम सभी ने एक नाराज बेटे का रूप देखा था। जब मधुबाला ने 'प्यार किया तो डरना क्या' पर अपनी मोहब्बत का ऐलान किया था तब थिएटर तालियों से गूंज उठा था।
यह फिल्म आज भी एक क्लासिक की तरह ही देखी जाती है।
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Image Credit: Sheemaro
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