भगवान गणेश ने कलम या मोरपंख नहीं इस एक चीज से लिखी थी महाभारत की गाथा, जानकर आप भी रह जाएंगी दंग

महाभारत कोई सामान्य रचना नहीं है। यह महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित एक ऐसा महाकाव्य है जिसे स्वयं भगवान गणेश ने ऐसी चीज से लिखा है। जिसे जानकर आप भी दंग रह जाएंगे। आइए इस लेख में विस्तार से इस कथा के बारे में जानते हैं।
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महाभारत हिंदू धर्म का एक ऐसा महाकाव्य है जो धर्म, नीति, ज्ञान और जीवन के रहस्यों के बारे में बताता है। यह महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित एक ऐसी कृति है जिसे समझना हर किसी के लिए आसान नहीं है। इसके हर एक शब्द अलग मतलब है। महाभारत में कई ऐसी चीजें हैं तो आज भी लोगों के हृदय में रहस्यों से भरी हुई है। आपको बता दें, महाभारत केवल युद्ध का वर्णन नहीं करता, बल्कि जीवन के हर पहलू पर प्रकाश डालता है। परिवार, मित्रता और शत्रुता के रिश्ते कितने गहरे और कितने प्रपंच हो सकते हैं। इसके बारे में भी महाभारत ने व्यक्ति को सिखाया है।

अब ऐसे में ये तो थी महाभारत की बात। लेकिन जिसने और जिसके द्वारा यह महाभारत की महागाथा लिखी गई है। इसकी कथा बड़ी दिलचस्प है। क्या आपमें से कोई जानता है कि महाभारत न कोई किसी कलम से लिखी गई है और न ही किसी पंख से लिखी गई है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं कि भगवान गणेश ने महाभारत की गाथा किस चीज से लिखी थी?

गणेश जी के टूटे हुए दांत से हुई महाभारत की रचना

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कथा के अनुसार, महर्षि वेदव्यास ने जब महाभारत की रचना का संकल्प लिया, तो उन्हें एक ऐसे लेखक की आवश्यकता थी जो उनके तीव्र गति से प्रवाहित होने वाले विचारों और श्लोकों को उतनी ही तेजी से अनुवाद कर सके। उन्होंने ब्रह्मा जी से इस समस्या का समाधान पूछा। ब्रह्मा जी ने उन्हें भगवान गणेश का स्मरण करने की सलाह दी, क्योंकि गणेश जी को बुद्धि और ज्ञान का देवता माना जाता है। वेदव्यास जी ने गणेश जी का आह्वान किया और उनसे महाभारत लिखने का अनुरोध किया। गणेश जी, जो अपनी चतुराई और विद्या के लिए जाने जाते हैं, इस कार्य के लिए तैयार हो गए, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी।

उन्होंने कहा, मैं यह ग्रंथ लिखूंगा, लेकिन मेरी कलम एक पल के लिए भी नहीं रुकनी चाहिए। यदि मैं एक क्षण के लिए भी रुका, तो मैं लिखना बंद कर दूंगा। वेदव्यास जी ने गणेश जी की शर्त मान ली, लेकिन उन्होंने भी अपनी एक शर्त रख दी। उन्होंने कहा, हे गणपति आप मेरी बात समझकर ही लिखिएगा। यदि कोई श्लोक आपको समझ न आए, तो आप उसे तब तक मत लिखिएगा जब तक आप उसका अर्थ न समझ लें। गणेश जी इस बात पर सहमत हो गए।

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महाभारत की रचना शुरू हुई। महर्षि वेदव्यास अपनी तपस्या के बल पर श्लोकों का प्रवाह इतनी तेजी से कर रहे थे कि सामान्य व्यक्ति के लिए उन्हें लिखना असंभव था। गणेश जी भी पूरी एकाग्रता के साथ लिख रहे थे। लेकिन एक समय ऐसा आया जब गणेश जी की कलम टूट गई। यह एक ऐसी स्थिति थी जहां गणेश जी अपनी शर्त के अनुसार रुक नहीं सकते थे और वेदव्यास जी की शर्त भी थी कि उन्हें समझकर ही लिखना है। ऐसे में, गणेश जी ने एक अद्भुत निर्णय लिया। उन्होंने तुरंत अपना एक दांत तोड़ दिया और उसे कलम के रूप में उपयोग करना शुरू कर दिया। इस प्रकार, उन्होंने बिना रुके महाभारत लिखना जारी रखा।

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वेदव्यास जी भी अपनी शर्त के अनुसार बीच-बीच में कुछ ऐसे श्लोक बोलते थे जिनका अर्थ समझने में गणेश जी को थोड़ा समय लगता था। इस अंतराल का उपयोग वेदव्यास जी स्वयं अगले श्लोकों के बारे में सोचने के लिए करते थे और गणेश जी उस श्लोक का अर्थ समझने में व्यस्त रहते थे। इस तरह महर्षि वेदव्यास के मुख से निकले ज्ञान और भगवान गणेश की अद्भुत लेखन से महाभारत जैसे विशाल और पवित्र ग्रंथ की रचना हुई थी।

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Image Credit- HerZindagi

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