kab devi devtaon ki murti ki pran pratishtha nahi hoti hai

कब देवी-देवताओं की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती है?

शास्त्रों में ऐसा बताया गया है कि बिना किसी भी देवी-देवता की प्राण प्रतिष्ठा किये पूजा करने से वह दोषपूर्ण हो जाती है और साथ ही, पूजा स्थल शुद्ध एवं पवित्र नहीं बन पाता है।  
Editorial
Updated:- 2025-01-15, 17:01 IST

धर्म शास्त्रों में ऐसा माना गया है कि जा भी किसी भी देवी-देवता को घर में या मंदिर में लेकर आएं तो पूजा आरंभ करने से पहले उनकी प्राण प्रतिष्ठा अवश्य करें। ऐसा करना इसलिए आवश्यक होता है क्योंकि इससे मूर्ति में देवी-देवता का साक्षात वास स्थापित होता है और वह एक सामान्य मूर्ति से दिव्य प्रतिमा का रूप ले लेती है। वहीं, एक परिस्थिति ऐसी भी है जब देवी-देवताओं की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा नहीं करनी पड़ती है या यूं कहें कि नहीं की जाती है। आइये जानते हैं इस बारे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से विस्तार से।

कब नहीं होती है देवी-देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा? (Kab Nahi Hoti Hai Devi Devtaon Ki Murti Ki Pran Pratishtha)

kab devi devtaon ki pran pratishtha nahi hoti hai

शास्त्रों में ऐसा बताया गया है कि बिना किसी भी देवी-देवता की प्राण प्रतिष्ठा किये पूजा करने से वह दोषपूर्ण हो जाती है और साथ ही, पूजा स्थल शुद्ध एवं पवित्र नहीं बन पाता है। वहां नकारात्मक ऊर्जा संचारित रहती है, लेकिन अगर मूर्ति प्रागट्य है तब प्राण प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

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शास्त्रों में बताय आज्ञा है कि जब किसी भी देवी या देवता की प्रतिमा बनाई न गई हो यानी कि किसी मनुष्य द्वारा उसका निर्माण न हुआ हो बल्कि वह स्वयं से प्रकट हुई हो तब उस प्रतिमा में पहले से ही उन देवी या देवता का वास स्थापित होता है। ऐसे में उस प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता नहीं।

kab devi devtaon ki pran pratishtha nahi ki jati hai

उदाहरण के तौर पर, ब्रज क्षेत्र के जो 7 ठाकुर जी हैं वह स्वयं से प्रकट हुए हैं, उनकी प्रतिमाएं किसी मनुष्य द्वारा नहीं बनाई गई हैं। ऐसे में उन्हें मंदिर में कभी भी प्राण प्रतिष्ठित नहीं किया गया। ब्रज के 7 ठाकुरजियों को मंदिर में सिर्फ विराजित किया गया। स्वयं प्रागट्य प्रतिमाएं अपने आप में चमत्कारी होती हैं।

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स्वयं प्रागट्य प्रतिमा होने के अलावा, तब भी किसी भी देवी-देवता की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जाती है जब मूर्ति को स्थापित करने का स्थान शुद्ध न हो। अगर किसी ऐसे मंदिर में आप प्राण प्रतिष्ठा कर रहे हैं जो खंडित है या जिसका निर्माण पूरा नहीं हुआ है तो वह भी गलत होगा। इससे दोष लग सकता है।

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image credit: herzindagi 

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