
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है। इस दिन तुलसी माता और शालिग्राम भगवान की पूजा कर उनका विवाह कराया जाता है। तुलसी विवाह के दिन व्रत कथा पढ़ना भी बहुत शुभ और लाभकारी माना जाता है। तुलसी विवाह की कथा केवल एक पौराणिक कहानी नहीं है बल्कि यह वैवाहिक जीवन की पवित्रता, त्याग और अटूट प्रेम का प्रतीक है। इस कथा को सुनने या पढ़ने से घर में सुख-शांति आती है और पति-पत्नी के रिश्ते में मधुरता बनी रहती है। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं तुलसी विवाह की व्रत कथा के बारे में विस्तार से।
बहुत समय पहले जालंधर नाम का एक बहुत ही शक्तिशाली और अहंकारी असुर हुआ करता था। उसका विवाह वृंदा नाम की एक परम पतिव्रता और भगवान विष्णु की महान भक्त स्त्री से हुआ। वृंदा के अटूट सतीत्व के कारण जालंधर को कोई भी देवता या मनुष्य पराजित नहीं कर सकता था और इसी शक्ति के कारण वह बहुत अत्याचारी बन गया था। उसके अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवी-देवताओं ने मिलकर भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे जालंधर के आतंक को समाप्त करें।
जालंधर को हराने का एकमात्र उपाय यह था कि उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग हो जाए। इसलिए, भगवान विष्णु ने विवश होकर एक छल किया। उन्होंने अपनी माया से जालंधर का रूप धारण किया और वृंदा के पास पहुंचे। वृंदा अपने पति के रूप में भगवान विष्णु को देखकर उन्हें पहचान नहीं पाई और उनका पतिव्रत धर्म भंग हो गया। वृंदा का सतीत्व भंग होते ही जालंधर की सारी शक्ति खत्म हो गई और वह युद्ध में मारा गया।
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जब वृंदा को इस छल का पता चला कि उसके सामने जालंधर के रूप में स्वयं भगवान विष्णु थे तो वह अत्यंत क्रोधित हुई और उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर यानी शिला बन जाने का शाप दे दिया। भगवान विष्णु उसी क्षण पत्थर के बन गए जिसे आज 'शालिग्राम' के नाम से जाना जाता है। पूरी सृष्टि में हाहाकार मच गया तब देवी-देवताओं ने वृंदा से प्रार्थना की। बाद में, वृंदा ने अपना शाप वापस ले लिया और अपने पति जालंधर की राख के साथ स्वयं को सती कर लिया।
वृंदा जिस स्थान पर सती हुई, वहां भगवान विष्णु ने कहा कि 'हे वृंदा! तुम अपने पवित्र प्रेम और त्याग के कारण मुझे लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय हो गई हो। अब तुम 'तुलसी' के रूप में मेरे साथ सदा के लिए निवास करोगी।' भगवान विष्णु ने यह भी कहा कि उनके शालिग्राम रूप का विवाह हर साल कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी के बाद द्वादशी तिथि पर तुलसी के साथ ही किया जाएगा और तुलसी के बिना भगवान विष्णु कोई भी प्रसाद स्वीकार नहीं करेंगे। तभी से तुलसी विवाह की परंपरा शुरू हुई और यह कथा वैवाहिक जीवन में प्रेम, त्याग और अमरता का संदेश बनी।
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तुलसी विवाह के दिन इस कथा को सुनने और भगवान शालिग्राम तथा तुलसी माता का विवाह कराने से वैवाहिक जीवन में चमत्कारी लाभ मिलते हैं। यह पूजा करने से पति-पत्नी के रिश्ते में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहता है। इससे आपसी मनमुटाव, झगड़े और तनाव दूर होते हैं और घर में प्रेम, सुख-शांति तथा सामंजस्य स्थापित होता है। जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित हैं उन्हें संतान प्राप्ति का आशीर्वाद भी मिलता है और अविवाहित कन्याओं को योग्य तथा मनचाहा जीवनसाथी मिलता है। इस अनुष्ठान को पूरे विधि-विधान से करने पर 'कन्यादान' करने के समान महान पुण्य फल प्राप्त होता है।

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