story and significance of maa vindhyavasini temple

यहां दिखते हैं देवी की प्रतिमा पर चोट के निशान, जानें क्या है इस जगह का रहस्य

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझकर कन्या को पत्थर पर पटका तब वह हाथ से छूटकर आकाश में चली गईं और विंध्याचल पर्वत पर आकर प्रतिष्ठित हुईं।
Editorial
Updated:- 2025-12-24, 16:09 IST

उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में गंगा के पावन तट पर स्थित विंध्याचल धाम न केवल एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है बल्कि यह करोड़ों भक्तों की आस्था का अटूट केंद्र भी है। विंध्याचल पर्वत श्रृंखला पर विराजमान मां विंध्यवासिनी के बारे में मान्यता है कि वे आदि शक्ति का पूर्ण स्वरूप हैं, जहां साक्षात निवास करती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझकर कन्या को पत्थर पर पटका तब वह हाथ से छूटकर आकाश में चली गईं और विंध्याचल पर्वत पर आकर प्रतिष्ठित हुईं। इस स्थान को लेकर कई रहस्य और कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से एक सबसे भावुक कर देने वाला रहस्य मां की प्रतिमा पर मौजूद चोट के निशान हैं जो आज भी भक्तों के मन में श्रद्धा और कौतूहल पैदा करते हैं। आइये जानते हैं इस बारे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से।

प्रतिमा पर चोट के निशान का रहस्य

विंध्याचल मंदिर के गर्भगृह में मां विंध्यवासिनी की जो दिव्य प्रतिमा है वह स्वयंभू मानी जाती है। भक्त जब बहुत करीब से दर्शन करते हैं तो उन्हें मां के श्री मुख और विग्रह पर कुछ हल्के चोट या खरोंच के निशान दिखाई देते हैं। इन निशानों के पीछे प्राचीन पौराणिक कथा जुड़ी हुई है।

significance of maa vindhyavasini temple

माना जाता है कि जब अत्याचारी कंस ने उस दिव्य कन्या को मारने का प्रयास किया था और उन्हें शिला पर पटका था तो उस प्रहार के भौतिक निशान देवी ने अपने विग्रह पर स्वीकार कर लिए। यह इस बात का प्रतीक माना जाता है कि देवी ने कष्ट को सहा ताकि संसार का कल्याण हो सके और कंस के विनाश की घोषणा की जा सके।

यह भी पढ़ें: घर हो या मंदिर, ठाकुर जी के दर्शन कभी भी सामने से क्यों नहीं करने चाहिए?

विंध्याचल पर्वत का आध्यात्मिक महत्व

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, विंध्याचल पर्वत को अत्यंत जागृत स्थान माना गया है। यह दुनिया का इकलौता ऐसा स्थान है जहां 'त्रिकोण यंत्र' की पूजा होती है। यहां मां  विंध्यवासिनी (मां लक्ष्मी) पर्वत के ऊपर मां अष्टभुजा (महासरस्वती) और मां काली (महाकाली) के रूप में विराजमान हैं।

रहस्य यह भी है कि मां विंध्यवासिनी यहां से कभी कहीं नहीं जातीं। वे अनंत काल तक यहीं निवास करती हैं। इसी कारण इस क्षेत्र को 'सिद्धपीठ' कहा जाता है जहां की गई साधना कभी विफल नहीं होती। 

यह भी पढ़ें: Indore के इस मंदिर में क्यों बनाया जाता उल्टा स्वास्तिक? जानें क्या है मान्यता

भक्तों की आस्था और अनुभव

मंदिर का रहस्य केवल निशानों तक सीमित नहीं है बल्कि यहां की ऊर्जा भी अद्भुत है। कहा जाता है कि विंध्यवासिनी मंदिर में देवी की प्रतिमा के दर्शन मात्र से भक्तों के हृदय का भारीपन दूर हो जाता है।

story of maa vindhyavasini temple

यहां दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु बताते हैं कि मां के चेहरे के भाव दिन के अलग-अलग समय पर बदलते रहते हैं जैसे कभी वे अत्यंत सौम्य लगती हैं तो कभी उनमें एक दिव्य तेज और गंभीरता दिखाई देती है। रात के समय होने वाली आरती और श्रृंगार के दौरान ये निशान और भी स्पष्टता से महसूस किए जा सकते हैं जो भक्तों को द्वापर युग की उस घटना की याद दिलाते हैं।

अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

image credit: herzindagi 

यह विडियो भी देखें

Herzindagi video

Disclaimer

हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, compliant_gro@jagrannewmedia.com पर हमसे संपर्क करें।

;