जीवन के हर दुख से निजात पाने के लिए सावन दुर्गाष्टमी पर पढ़ें ये व्रत कथा, बरसेगी मां दुर्गा की कृपा

हिंदू धर्म में सावन महीने में पड़ने वाली मासिक दुर्गाष्टमी व्रत का विशेष विधान है। अब ऐसे में इस दिन जो महिलाएं व्रत रख रही हैं, वह व्रत कथा जरूर पढ़ें। आइए इस लेख में व्रत कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं। 
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सावन दुर्गाष्टमी का महत्व सामान्य दुर्गाष्टमी से भी अधिक माना जाता है। सावन मास में भगवान शिव और माता पार्वती दोनों का ही आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस विशेष दिन पर मां दुर्गा की पूजा करने से न केवल शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है, बल्कि जीवन में सुख-समृद्धि और शांति भी आती है। जो भक्त संतानहीन हैं, उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है. विवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत अखंड सौभाग्य का प्रतीक है और कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर प्राप्त होता है। अब ऐसे में मासिक दुर्गाष्टमी के दिन जो महिलाएं व्रत रख रही हैं, वह कथा जरूर पढ़ें। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

सावन मासिक दुर्गाष्टमी के दिन जरूर पढ़ें व्रत कथा

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय पृथ्वी पर महिषासुर नामक एक अत्यंत शक्तिशाली राक्षस का आतंक बहुत बढ़ गया था। उसने अपनी कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर लिया था कि कोई भी देवता, दानव या पुरुष उसे पराजित नहीं कर सकता। इस वरदान के कारण वह अत्यंत अहंकारी हो गया और तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। उसने स्वर्ग पर भी अपना अधिकार जमा लिया और देवताओं को निष्कासित कर दिया।

महिषासुर के अत्याचारों से त्रस्त होकर सभी देवता भगवान विष्णु, भगवान शिव और ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे अपनी रक्षा की गुहार लगाई। देवताओं की करुण पुकार सुनकर त्रिदेवों को बहुत क्रोध आया। उनके क्रोध से एक अलौकिक तेज उत्पन्न हुआ, जिसने एक दिव्य नारी का रूप धारण कर लिया। यह दिव्य नारी कोई और नहीं, बल्कि आदिशक्ति माँ दुर्गा थीं।

सभी देवताओं ने मां दुर्गा को अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। भगवान शिव ने उन्हें अपना त्रिशूल दिया, भगवान विष्णु ने चक्र, इंद्रदेव ने वज्र, ब्रह्मा जी ने कमंडल, और अन्य देवताओं ने भी अपने दिव्य अस्त्र भेंट किए। माँ दुर्गा ने इन सभी अस्त्रों को धारण कर महिषासुर का वध करने का संकल्प लिया।

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माँ दुर्गा अपने सिंह पर सवार होकर महिषासुर से युद्ध करने के लिए निकलीं। महिषासुर ने अपनी मायावी शक्तियों का प्रयोग करते हुए अनेक रूप बदले, कभी भैंसे का, कभी हाथी का, तो कभी अन्य भयानक जानवरों का। लेकिन माँ दुर्गा ने अपने पराक्रम और दिव्य शक्तियों से उसके सभी छल-कपटों को विफल कर दिया। अंत में, माँ दुर्गा ने अपने त्रिशूल से महिषासुर का वध कर दिया और देवताओं तथा पृथ्वीवासियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई।

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जिस दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया, वह अष्टमी तिथि थी। तभी से इस दिन को दुर्गाष्टमी के रूप में मनाया जाने लगा और माँ दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाने लगी। सावन मास की दुर्गाष्टमी का व्रत रखने से भक्तों को माँ दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है और उनके जीवन से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं।

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Image Credit- HerZindagi

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