भारत में भगवान शिव के अनगिनत मंदिर हैं और प्रत्येक की अपनी अलग कहानी और रहस्य है। ऐसे ही रहस्यों से भरा है भगवान शिव का एक अनोखा मंदिर, जो कि रुद्रप्रयाग में स्थित है। इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर माता पार्वती के साथ सात फेरे लिए थे। इस जगह पर जल रहे अग्निकुंड को भी इस बात का प्रतीक माना जाता है। भोलेनाथ की इस मंदिर में लोगों की खूब आस्था है। पूरे साल देश-विदेश से लोग बड़ी संख्या में बाबा के दर्शन करने आते हैं। यही नहीं यहां जोड़े शादी करने के लिए भी आते हैं, ताकि उनको भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद मिल सके। आइए इसी के साथ अब हम आपको रुद्रप्रयाग के इस मंदिर के बारे में विस्तार से बताते हैं।
भगवान शिव के इस खास मंदिर का नाम त्रियुगीनारायण है, जो कि उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ ब्लॉक में स्थित है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना त्रेता युग में हुई थी। यही नहीं इस मंदिर का खास संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से भी जुड़ा हुआ है।
माता पार्वती राजा हिमावत की पुत्री थी और भोलेनाथ को वो अपने पति के रूप में पाना चाहती थी। इसके लिए माता पार्वती ने कठोर तप भी किया था। इसके बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और उनका माता पार्वती के साथ विवाह हुआ। किंवदंती है कि त्रियुगीनारायण मंदिर में ही भगवान शिव और माता पार्वती ने सात फेरे लिए थे। उनके विवाह के दौरान जलाई गई अग्नि आज भी इस मंदिर में जल रही है। पौराणिक कथा के अनुसार, शिव-पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु माता पार्वती के भाई बनकर उनके विवाह में शामिल हुए थे और सभी रीतियों का पालन किया था। इस दौरान ब्रह्मा जी पुरोहित बने थे। इसलिए विवाह के स्थान को ब्रह्म शिला भी कहा जाता है, जो कि त्रियुगीनारायण मंदिर के ठीक सामने स्थित है।
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कहा जाता है कि विवाह से पहले देवी-देवताओं के स्नान के लिए यहां तीन जल कुंड का निर्माण किया गया था, जिन्हें रूद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड के नाम से जाना जाता है। इन तीनों कुंड में सरस्वती कुंड से पानी आता है। धार्मिक मान्यता है कि सरस्वती कुंड की उत्पत्ति भगवान विष्णु की नासिका से हुई थी। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि इस कुंड में स्नान करने से जातकों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
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पुराणों के अनुसार, त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेता युग से ही अस्तित्व में है। पौराणिक कथा के हिसाब से, इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिए थे। इसलिए, इस जगह पर भगवान विष्णु को वामन देवता के रूप में पूजा जाता है।
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Image credit- Herzindagi, instapage(iamfromuk)
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