pitru paksha mein akal mrityu ka shradh kaise kare

Pitru Paksha Akal Mrityu: अकाल मृत्यु वाले लोगों का श्राद्ध सामान्य श्राद्ध से कैसे अलग है? जानें सही विधि

अगर आपके घर में किसी की अकाल मृत्यु हुई है तो उनका श्राद्ध करने से पहले सही विधि और नियम जान लें। इससे आपको दोष भी नहीं लगेगा और पितरों को मुक्ति भी प्राप्त होगी।  
Editorial
Updated:- 2025-09-10, 15:14 IST

हिन्दू धर्म शास्त्रों में कई प्रकार के श्राद्ध का वर्णन मिलता है जिनमें से एक है अकाल मृत्यु का श्राद्ध। ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता होगा कि अकाल मृत्यु क्या होती है और इसका श्राद्ध कैसे किया जाता है। अक्सर लोग इसे सामान्य श्राद्ध की तरह ही मानते हैं। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि अकाल मृत्यु और सामान्य श्राद्ध में क्या अंतर है और कैसे किया जाता है अकाल मृत्यु का श्राद्ध।

क्या होती है अकाल मृत्यु?

अकाल मृत्यु का सीधा-साधा मतलब है समय से पहले या असमय हुई मौत। यह ऐसी मृत्यु होती है जो प्राकृतिक कारणों से नहीं बल्कि अचानक किसी दुर्घटना, आत्महत्या, हत्या या किसी गंभीर बीमारी के कारण होती है। कुंडली में अकाल मृत्यु का योग बनना इसे ही कहते हैं।

गरुड़ पुराण में इसे बहुत महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि ऐसी मृत्यु में आत्मा अपना पूरा जीवनकाल नहीं जी पाती। माना जाता है कि अकाल मृत्यु के बाद आत्मा को तुरंत मोक्ष नहीं मिलता और वह तब तक भटकती रहती है जब तक उसका निर्धारित जीवनकाल पूरा नहीं हो जाता।

akal mrityu ke shradh ka tarika

क्या होता है अकाल मृत्यु का श्राद्ध?

अकाल मृत्यु का श्राद्ध उन लोगों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु किसी दुर्घटना, आत्महत्या, या किसी अन्य असमय कारण से हो जाती है। यह सामान्य श्राद्ध से अलग होता है क्योंकि इसका उद्देश्य आत्मा को असमय मृत्यु के कारण हुई पीड़ा से मुक्ति दिलाना और शांति प्रदान करना है।

इस श्राद्ध में कुछ विशेष पूजा-पाठ और दान-पुण्य किए जाते हैं ताकि आत्मा को भटकना न पड़े और उसे मोक्ष मिल सके। सही विधि के जरिए परिवार के लोग अपने पितरों को सम्मान देते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। अकाल मृत्यु के श्राद्ध से जुड़े नियम और समय भी है।

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कब किया जाता है अकाल मृत्यु का श्राद्ध?

अकाल मृत्यु का श्राद्ध मुख्य रूप से पितृ पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि जिनकी मृत्यु समय से पहले या किसी दुर्घटना के कारण हुई हो उनकी आत्मा को शांति दिलाने के लिए यह तिथि सबसे शुभ होती है। इसी तिथि पर श्राद्ध से मुक्ति मिलती है।

अगर किसी वजह से चतुर्दशी को श्राद्ध न कर पाएं तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन भी अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। यह दिन उन सभी पितरों के लिए होता है जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो इसलिए इस दिन अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध करना भी उचित माना जाता है।

akal mrityu ke shradh ke niyam

कैसे किया जाता है अकाल मृत्यु का श्राद्ध?

श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद, घर के पूजा स्थल या किसी साफ-सुथरी जगह पर पितरों के नाम से तर्पण और पिंडदान करना चाहिए। पिंडदान के लिए चावल, जौ और काले तिल मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें जल में प्रवाहित करते हैं।

श्राद्ध के दिन किसी योग्य ब्राह्मण को घर पर बुलाकर भोजन कराना बहुत शुभ माना जाता है। भोजन में खीर, पूरी, दाल, चावल और अन्य सात्विक व्यंजन शामिल होने चाहिए। भोजन कराने के बाद, ब्राह्मण को क्षमता अनुसार दक्षिणा, वस्त्र और कुछ दान-पुण्य की चीजें भेंट करनी चाहिए।

ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद, किसी ज़रूरतमंद व्यक्ति या किसी गरीब को भी भोजन कराना चाहिए। इसके अलावा, वस्त्र, अन्न या पैसे का दान भी बहुत लाभकारी होता है। श्राद्ध के दौरान, पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और उनसे आशीर्वाद मांगना चाहिए।

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क्या है अकाल मृत्यु और सामान्य श्राद्ध में अंतर?

अकाल मृत्यु का श्राद्ध और सामान्य श्राद्ध में मुख्य अंतर यह है कि सामान्य श्राद्ध किसी व्यक्ति की मृत्यु तिथि पर उसकी आत्मा की शांति और परिवार पर उसके आशीर्वाद के लिए किया जाता है, जबकि अकाल मृत्यु का श्राद्ध उन लोगों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु का समय तय न हो।

अकाल मृत्यु के श्राद्ध का विशेष उद्देश्य आत्मा को अचानक और पीड़ादायक मृत्यु से मिली तकलीफ से मुक्ति दिलाना होता है, ताकि वह भटकने के बजाय मोक्ष प्राप्त कर सके जबकि सामान्य मृत्यु वाले लोगों का श्राद्ध इसलिए किया जाता है ताकि उनका आशीर्वाद मिल सके और दोष न लगे।

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FAQ
क्या पितृपक्ष में तुलसी तोड़ सकते हैं?
पितृपक्ष के दौरान तुलसी की पत्तियां नहीं तोड़नी चाहिए।
पितृपक्ष के दौरान क्या दान करना चाहिए?
पितृपक्ष के दौरान काले तिल का दान करना सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है।
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