margashirsha amavasya 2025 pitru sukt stotra

आज Margashirsha Amavasya की रात Pitru Dosha से मुक्ति के लिए जलाएं ये दीया और करें इस स्तोत्र का पाठ

जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है जिसके कारण जीवन में आर्थिक परेशानियां, विवाह में देरी, संतान बाधा या लगातार स्वास्थ्य समस्याएं आती हैं उनके लिए मार्गशीर्ष अमावस्या की रात अत्यंत महत्वपूर्ण है। 
Editorial
Updated:- 2025-11-20, 15:25 IST

मार्गशीर्ष अमावस्या का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह तिथि पूरी तरह से पितरों को समर्पित होती है। अमावस्या की रात को पितृलोक और पृथ्वी के बीच की दूरी सबसे कम मानी जाती है जिससे इस समय किए गए उपाय और श्राद्ध सीधे पितरों को प्राप्त होते हैं। जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है जिसके कारण जीवन में आर्थिक परेशानियां, विवाह में देरी, संतान बाधा या लगातार स्वास्थ्य समस्याएं आती हैं उनके लिए यह रात अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दोष से मुक्ति और अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें 2 उपाय बताए हैं जो दिया जलाने और एक स्तोत्र का पाठ करने से जुड़े हैं।

मार्गशीष अमावस्या के दिन पितृ दोष से मुक्ति के लिए जलाएं दीया 

मार्गशीर्ष अमावस्या की रात को पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए यह उपाय सूर्यास्त के बाद करना चाहिए जिसके तहत क मिट्टी का दीया लें। इसमें सरसों का शुद्ध तेल डालें। यह तेल पितरों को शांति प्रदान करने वाला माना जाता है। दीये में बत्ती लगाने के लिए रुई की बत्ती के बजाय लाल रंग के कलावे की बत्ती का उपयोग करें।

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यह दीया आपको अपने घर की दक्षिण दिशा में जलाना है। हिंदू धर्म में दक्षिण दिशा को यम और पितरों की दिशा माना जाता है। आप इसे घर के मुख्य द्वार के बाहर दक्षिण दिशा में, या घर के अंदर किसी दक्षिण-मुखी कोने में रख सकते हैं। सूर्यास्त के बाद या रात को लगभग 8 बजे से 10 बजे के बीच यह दीया जलाएं।

दीया जलाते समय हाथ जोड़कर अपने सभी पितरों का ध्यान करें। मन ही मन उनसे अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगे और उनसे अपने परिवार को सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देने की प्रार्थना करें। इस दीये को तब तक जलने दें जब तक तेल समाप्त न हो जाए।

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मार्गशीष अमावस्या के दिन पितृ दोष से मुक्ति के लिए करें स्तोत्र पाठ 

दीया जलाने के बाद, उसी स्थान पर बैठकर या पूजा कक्ष में पितृ सूक्त स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। पाठ शुरू करने से पहले हाथ में थोड़ा जल लेकर संकल्प लें कि आप यह पाठ पितृ दोष से मुक्ति और अपने पितरों की शांति तथा मोक्ष के लिए कर रहे हैं। 

पितृ सूक्त स्तोत्र का पाठ सीधे पितृ देवताओं और पूर्वजों को समर्पित होता है। यह स्तोत्र आपकी श्रद्धा और प्रेम को पितरों तक पहुंचाता है। इसका पाठ करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आपको पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

इस स्तोत्र का पाठ करने से पितरों को शांति मिलती है, जिससे वे प्रसन्न होकर अपनी संतानों को धन, स्वास्थ्य, अच्छी संतान और सभी तरह की खुशियां प्रदान करते हैं। पाठ के बाद, अपने सभी पितरों से परिवार को सुख-समृद्धि देने का निवेदन करें।

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पितृ सूक्त स्तोत्रं

उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥

अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥

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ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥ 

त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥

त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥

त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥

बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥

आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥

उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥

आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥

अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥

येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥ 

अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥

आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥

आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥

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image credit: herzindagi 

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FAQ
मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन क्या दान करें?
मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन चावल, गेहूं और काले तिल का दान करें।
मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन किस मंत्र का जाप करें?
मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन 'नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:' मंत्र का जाप करें।
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