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Maha Kumbh 2025: कैसे समुद्र मंथन से निकला अमृत कलश बना कुंभ का कारण, यहां पढ़ें विस्तार से

पंचांग के हिसाब से 13 जनवरी 2025 से प्रयागराज में महाकुंभ शुरू होने जा रहा है। क्या आप जानते हैं कि कुंभ मेले का इतना बड़ा आयोजन क्यों होता है? इसका सीधा संबंध समुद्र मंथन की कहानी से है। आइए जानते हैं कि कैसे समुद्र मंथन से निकले अमृत ने कुंभ मेले को जन्म दिया।
Editorial
Updated:- 2025-01-08, 16:22 IST

कुंभ मेला भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है और इसे दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम भी माना जाता है। हर बारह साल में आयोजित होने वाला यह मेला चार पवित्र स्थानों - प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। 13 जनवरी 2025 से प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन किया जा रहा है, जिसका समापन 26 फरवरी 2025 को होगा। इस दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाने आते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुंभ मेले की शुरुआत कैसे हुई और आखिर क्यों इन्हीं चार स्थानों पर आयोजित होता है कुंभ मेला? आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

कुंभ मेले का आयोजन क्यों होता है?

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कुंभ मेले के आयोजन के पीछे कई मान्यताएं और ऐतिहासिक तथ्य हैं। लेकिन सबसे प्रचलित मान्यता समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ी है। ऐसा कहते हैं कि देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र को मंथन किया था। इस मंथन से 14 बहुमूल्य रत्न निकले थे, जिनमें अमृत कलश भी शामिल था। असल में, समुद्र मंथन का मुख्य उद्देश्य ही अमृत प्राप्त करना था। भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर समुद्र से बाहर निकले।

अमृत कलश को पाकर देवता और दानव आपस में लड़ने लगे। इस बीच, दानवों से बचाने के लिए इंद्र के पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर भागने लगे। दानवों ने भी उनका पीछा किया। भागते-भागते जयंत के हाथ से अमृत कलश से कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिर गईं। प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक। मान्यता है कि यही कारण है कि इन चारों स्थानों को धरती का सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। कुंभ के दौरान इन नदियों का जल अमृत के समान पवित्र हो जाता है।

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प्रयागराज में पूर्ण कुंभ का महत्व

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पूर्ण कुंभ मेला एक विशाल धार्मिक समागम है जो हर 12 वर्ष में एक बार भारत के पवित्र शहर प्रयागराज में आयोजित होता है। इसे कुंभ मेले का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण रूप माना जाता है। यह मेला गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदी के संगम पर होता है, जिसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है। हिंदू धर्म में इस संगम को बेहद पवित्र माना जाता है। पूर्ण कुंभ का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति है। मान्यता है कि यहां स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और व्यक्ति मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ता है। इतना ही नहीं, नागा साधुओं और विभिन्न अखाड़ों का पूर्ण कुंभ में विशेष योगदान होता है।

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Image Credit- HerZindagi

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