Magh Purnima 2024: माघ पूर्णिमा के दिन पढ़ें ये व्रत कथा, सभी कष्ट हो सकते हैं दूर

हिंदू धर्म में सभी पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सभी देवता गंगा नदी में निवास करते हैं। 

 
Magh Purnima vrat katha

(Magh purnima vrat katha) सनातन धर्म में पूर्णिमा तिथि को सभी देवताओं की विशेष तिथि मानी जाती है। वहीं माघ के महीने की पूर्णिमा को बेहद महत्वपूर्ण और शुभ माना जाता है। इस पूरे माघ मास में देवी-देवता मनुष्य रूप में धरती पर आते हैं और गंगा में निवास करते हैं।

इस दिन गंगा में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। इतना ही नहीं इस दिन स्नान और दान का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन स्वयं भगवान विष्णु गंगा नदी में विद्यमान होते हैं। इसलिए गंगा स्नान को मोक्षदायी माना गया है।

पूर्णिमा का व्रत रखने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और सभी पाप नष्ट हो सकते हैं। अब ऐसे में व्रत सुनने और पढ़ने का विशेष महत्व है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से व्रत कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं।

माघ पूर्णिमा के दिन पढ़ें ये व्रत कथा (magh purnima vrat katha 2024)

Magh Purnima

एक ऐसी प्रचलित है कि कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वो अपना जीवन भिक्षा लेकर ही यापन करता था। ब्राह्मण और उसकी पत्नी का कोई संतान नहीं था। एक दिन ब्राह्मण की पत्नी नगर को गर्भवती होने का वरदान दिया। पश्चात एक दिन ब्राह्मण की पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई, लेकिन लोगों ने उसे बांझ कहकर ताने मारे और भिक्षा देने से मना कर दिया। इससे वो बहुत दुखी हुई। तब किसी ने उससे 16 दिन मां काली की पूजा करने को कहा।

ब्राह्मण दंपत्ति ने सभी नियमों का पालन करके मां काली का 16 दिनों तक पूजन किया। 16वें दिन पूजा करने के बाद मां काली उनसे बेहद प्रसन्न हुईं और वह प्रकट होकर ब्राह्मणी को गर्भवती होने का वरदान दिया। साथ ही यह भी कहा कि तुम पूर्णिमा को एक दीपक (दीपक जलाने के नियम) जलाओ और हर पूर्णिमा पर ये दीपक बढ़ाती जाना। जब तक कम से कम 32 की संख्या न हो जाएं। साथ ही दोनों दांपत्यों को पूर्णिमा का व्रत रखने को भी कहा।

magh purnima large

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ब्राह्मण दंपत्ति ने माता के कहे अनुसार ही पूर्णिमा को दीपक जलाना शुरू कर दिया और दोनों पूर्णिमा को व्रत रखने लगे। इसी बीच ब्राह्मणी गर्भवती भी हो गई और कुछ समय बाद उसने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम देवदास रखा, लेकिन देवदास अल्पायु था। देवदास जब बड़ा हुआ, तो उसे अपने मामा के पढ़ने के लिए काशी भेजा गया।

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काशी में उन दोनों के साथ एक दुर्घटना घटी। जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह हो गया। कुछ समय बाद उसके मृत्यु के क्षण नजदीक आने लगे, लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति ने उस दिन पुत्र प्राप्ति के लिए पूर्णिमा का व्रत रखा था, जिस कारण काल चाहकर भी उसका कुछ न बिगाड़ सका और उसे जीवनदान मिला। इस तरह पूर्णिमा के दिन व्रत रखने से व्यक्ति को सभी संकटों से छुटकारा मिल सकता है और सभी मनोकामनाएं (मनोकामना पूर्ति मंत्र) भी पूरी हो सकती है।

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Image Credit- Freepik

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