
हिन्दू धर्म एं पूर्णिमा तिथि का बहुत महत्व माना जाता है। पंचांग के अनुसार, साल में कुल 12 पूर्णिमा तिथियां पड़ती हैं। इन्हीं में से एक है ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा जो इस साल 22 जून, दिन शनिवार को पड़ रही है। ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी अपने अष्ट स्वरूपों के साथ विद्यमान होती हैं और जो भी कोई मां लक्ष्मी की श्रद्धापूर्वक आराधना करता है उसके जीवन में मां लक्ष्मी की भर-भरकर कृपा बरसती है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि मां लक्ष्मी के एक विशेष स्तोत्र का पाठ ज्येष्ठ पूर्णिमा पर अवश्य करना चाहिए। आइये जानते हैं इस बारे में विस्तार से।

सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि चंद्र सहोदरि हेममये । मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनी मंजुल भाषिणि वेदनुते ।
पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद-गुण वर्षिणि शान्तिनुते । जय जय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ।
अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये । क्षीर समुद्भव मङ्गल रुपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।
मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते । जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् ।
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जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि मन्त्र स्वरुपिणि मन्त्रमये । सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ।
भवभयहारिणि पापविमोचनि साधु जनाश्रित पादयुते । जय जय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदापालय माम् ।
जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये । रधगज तुरगपदाति समावृत परिजन मंडित लोकनुते ।
हरिहर ब्रम्ह सुपूजित सेवित ताप निवारिणि पादयुते । जय जय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम् ।
अयि खगवाहिनी मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये । गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वर भूषित गाननुते ।
सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते । जय जय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम् ।
जय कमलासनि सद-गति दायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये । अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे । जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम् ।
प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये । मणिमय भूषित कर्णविभूषण शान्ति समावृत हास्यमुखे ।
नवनिद्धिदायिनी कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते । जय जय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम् ।
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धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमी दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये । घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ।
वेद पुराणेतिहास सुपूजित वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते । जय जय हे कामिनि धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ।
अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि । विष्णुवक्षःस्थलारूढे भक्तमोक्षप्रदायिनी ।।
शङ्ख चक्र गदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः । जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलम शुभ मङ्गलम ।
। इति श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम सम्पूर्णम ।

शास्त्रों में बताया गया है कि ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन अष्टलक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करने से घर की दरिद्रता दूर हो जाती है और घर में साक्षात मां लक्ष्मी का वास स्थापित होता है।
मां लक्ष्मी की कृपा से घर में पैसों की कमी कभी नहीं। धन अलाभ के योग बनने लगते हैं। नौकरी हो या व्यापार, दोनों में तेजी आने लगती है। घर और व्यक्ति की प्रगति होती है।
आप भी इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से यह जान सकते हैं कि आखिर ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी के कौन से स्तोत्र का पाठ करना चाहिए और क्या है उसके लाभ एवं महत्व। अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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