हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा विधिवत रूप से करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल की पूजा विधिवत रूप से करता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। साथ ही सौभाग्य में भी वृद्धि होती है। अब ऐसे में जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग लगाने की मान्यता है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार जानते हैं।
जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण को क्यों लगाया जाता है छप्पन भोग?
भगवान कृष्ण को माखन-मिश्री बहुत प्रिय था। छप्पन भोग में विभिन्न प्रकार के मिष्ठान, व्यंजन और फल शामिल होते हैं, जो उनकी इस मिष्ठान प्रेम को दर्शाते हैं। छप्पन भोग को सृष्टि के छप्पन अक्षरों का प्रतीक माना जाता है। यह मान्यता है कि इन व्यंजनों के माध्यम से भगवान कृष्ण को संपूर्ण सृष्टि अर्पित की जाती है।
भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं। भगवान विष्णु को समस्त भोगों का भोगी माना जाता है। छप्पन भोग के माध्यम से उनका पूजन किया जाता है। छप्पन भोग बनाने और परोसने की रीतियां विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग होती हैं। यह स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को दर्शाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ब्रजवासी स्वर्ग के राजा इंद्र की पूजा के लिए एक बड़ा आयोजन कर रहे थे। तब छोटे कृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि यह आयोजन क्यों किया जा रहा है। तब नंद बाबा ने कहा कि इस पूजा से देवराज इंद्र बेहद प्रसन्न होंगे और अच्छी वर्षा करेंगे। नन्हें कृष्ण ने कहा कि बारिश तो स्वयं इंद्र का काम है और हम इनकी पूजा क्यों करें। अगर पूजा करनी है, तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। क्योंकि इससे फलों और सब्जियों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही जानवरों को भी चारा मिलता है। तब भगवान श्रीकृष्ण की बात सभी को पसंद आई और सभी लोगों ने इंद्र की जगह गोवर्धन की पूजा करने लगे। इंद्रदेव ने इसे अपने अपमान समझ लिया और वह बेहद क्रोधित हुए। क्रोधित इंद्रदेव ने ब्रज में खूब कहर बरपाया और खूब बारिश करवाई।
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इससे पूरे शहर में हर तरफ पानी ही पानी नजर आने लगा। ऐसा दृश्य देखकर सभी ब्रजवासी डर गए। तब श्रीकृष्ण ने सभी को बचाने के लिए कहा कि सभी गोवर्धन पर्वत की शरण में आ जाओ। वहीं हमें इन सभी प्रकोप से बचाएंगे। भगवान कृष्ण ने पूरे गोवर्धन पर्वत को अपने बाएं हाथ की उंगली से उठा लिया। इससे उन्होंने पूरे ब्रज की रक्षा की।
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वहीं भगवान श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक बिना कुछ खाए गोवर्धन पर्वत को उठाए रहें। कुछ देर बाद जब इंद्रदेव शांत हुए, तो उन्होंने आठवें दिन बारिश बंद करवाई। उसके बाद सभी ब्रजवासी पर्वत से बाहर आ गए। सब समझ गए कि कान्हा ने सात दिनों से कुछ भी नहीं खाया है। तभी मां यशोदा से पूछा कि वह अपने लाला को कैसे खाना खिलाती हैं। तब सबने बताया कि वह अपने कान्हा को दिन में आठ बार भोग कराती हैं। इस प्रकार सभी ने कुछ छप्पन भोग यानी कि हर दिन 8 व्यंजन तैयार किए और श्रीकृष्ण को खिलाया। इस प्रकार कान्हा को 56 भोग खिलाने का परंपरा शुरू हुई।
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Image Credit- HerZindagi
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