
अक्सर ऐसा होता है कि रोजमर्रा की जिंदगी में व्यक्ति इतनी परेशानियों और जिम्मेदारियों से घिरा होता है कि उसके पास खुद केलिए भी समय नहीं होता। पारिवारिक रिश्ते, नौकरी या व्यापार, बच्चों की देखभाल, बुढ़ापे के लिए पैसों की बचत आदि गृहस्थ जीवन से जुड़ी इन्हीं सब चीजों के बीच व्यक्ति इतना उलझा रहता है कि जिस परिवार के लिए वो ये सब करता है उसी परिवार के साथ समय नहीं बिता पाता। धार्मिक ग्रन्थ एवं शास्त्र और उच्च कोटि के संतों का मानना है कि जीवन में इन्हीं सब चीजों से घिरे रहने के बाद भी पूजा-पाठ करते रहना चाहिए क्योंकि भक्ति ही वो साधन है जो व्यक्ति ओर उसके परिवार को हर संकट से बचाती है। हालांकि, यहां भी लोगों के बीक 2 मत हैं- पहला या तो गृहस्थी संभाल लो और दूसरा या फिर सब छोड़छाड़ कर भक्ति में लीन हो जाओ। अब सवाल ये उठता है कि क्या सब कामकाज छोड़कर, गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों को छोड़कर भक्ति करना सही है? आइये जानते हैं इस बारे में प्रेमानंद महाराज जी का क्या कहना है?
प्रेमानंद महाराज जी गृहस्थ भक्तों को स्पष्ट रूप से समझाते हैं कि कामकाज छोड़कर भक्ति करने का विचार प्रायः कामचोरी का एक रूप होता है न कि सच्ची वैराग्य भावना। महाराज जी कहते हैं कि जो लोग अपना सारा कामकाज छोड़कर सिर्फ भक्ति करना चाहते हैं वे वास्तव में कामचोर हैं और ऐसे लोग भक्त नहीं कहलाते हैं।

सच्ची भक्ति में परिश्रम और कर्तव्यनिष्ठा को त्यागने का विधान नहीं है। उनका मानना है कि भक्ति का सही मार्ग यह है कि आपको जो भी कार्य मिला है यानी कि अगर आपको गृहस्थ जीवन मिला है तो उसे शास्त्रों की आज्ञा के अनुसार करें, उसे करते हुए अधर्म का आचरण न करें और फिर उस कार्य के फल को भगवान को अर्पित कर दें।
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इस प्रकार, आपका हर कर्म ही भगवान की पूजा बन जाता है। महाराज जी बताते हैं कि अपने परिवार, माता-पिता और समाज के प्रति जो आपका कर्तव्य है वही आपका धर्म है। अगर आप इन धर्मयुक्त कर्मों को छोड़कर केवल भक्ति करने का बहाना करते हैं तो यह कुकर्म या पापाचरण माना जाता है जिससे आप भ्रष्ट होते चले जाते हैं।

वे कर्म के साथ-साथ नाम जप और सत्संग को निरंतर चलाने पर ज़ोर देते हैं। पवित्रता, सात्विक भोजन और ब्रह्मचर्य का संयम बनाए रखने से मन और विचार शुद्ध होते हैं जो भक्ति के लिए आवश्यक हैं। सार यह है कि श्री प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार, कर्म और भक्ति का संतुलन ही सही, अत्यंत पुण्यकर, लाभकारी और श्रेष्ठ मार्ग है।
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