is it right to leave all work and focus on devotion

क्या कामकाज सब छोड़कर भक्ति करना सही है? जानें इसका उत्तर

लोगों के बीक 2 मत हैं- पहला या तो गृहस्थी संभाल लो और दूसरा या फिर सब छोड़छाड़ कर भक्ति में लीन हो जाओ। अब सवाल ये उठता है कि क्या सब कामकाज छोड़कर, गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों को छोड़कर भक्ति करना सही है?
Editorial
Updated:- 2025-11-18, 13:59 IST

अक्सर ऐसा होता है कि रोजमर्रा की जिंदगी में व्यक्ति इतनी परेशानियों और जिम्मेदारियों से घिरा होता है कि उसके पास खुद केलिए भी समय नहीं होता। पारिवारिक रिश्ते, नौकरी या व्यापार, बच्चों की देखभाल, बुढ़ापे के लिए पैसों की बचत आदि गृहस्थ जीवन से जुड़ी इन्हीं सब चीजों के बीच व्यक्ति इतना उलझा रहता है कि जिस परिवार के लिए वो ये सब करता है उसी परिवार के साथ समय नहीं बिता पाता। धार्मिक ग्रन्थ एवं शास्त्र और उच्च कोटि के संतों का मानना है कि जीवन में इन्हीं सब चीजों से घिरे रहने के बाद भी पूजा-पाठ करते रहना चाहिए क्योंकि भक्ति ही वो साधन है जो व्यक्ति ओर उसके परिवार को हर संकट से बचाती है। हालांकि, यहां भी लोगों के बीक 2 मत हैं- पहला या तो गृहस्थी संभाल लो और दूसरा या फिर सब छोड़छाड़ कर भक्ति में लीन हो जाओ। अब सवाल ये उठता है कि क्या सब कामकाज छोड़कर, गृहस्थ जीवन की जिम्मेदारियों को छोड़कर भक्ति करना सही है? आइये जानते हैं इस बारे में प्रेमानंद महाराज जी का क्या कहना है?  

क्या कामकाज छोड़कर भक्ति करना सही है? 

प्रेमानंद महाराज जी गृहस्थ भक्तों को स्पष्ट रूप से समझाते हैं कि कामकाज छोड़कर भक्ति करने का विचार प्रायः कामचोरी का एक रूप होता है न कि सच्ची वैराग्य भावना। महाराज जी कहते हैं कि जो लोग अपना सारा कामकाज छोड़कर सिर्फ भक्ति करना चाहते हैं वे वास्तव में कामचोर हैं और ऐसे लोग भक्त नहीं कहलाते हैं।

kya kaam kaaj chhod kar bhakti karna sahi hai

सच्ची भक्ति में परिश्रम और कर्तव्यनिष्ठा को त्यागने का विधान नहीं है। उनका मानना है कि भक्ति का सही मार्ग यह है कि आपको जो भी कार्य मिला है यानी कि अगर आपको गृहस्थ जीवन मिला है तो उसे शास्त्रों की आज्ञा के अनुसार करें, उसे करते हुए अधर्म का आचरण न करें और फिर उस कार्य के फल को भगवान को अर्पित कर दें। 

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इस प्रकार, आपका हर कर्म ही भगवान की पूजा बन जाता है। महाराज जी बताते हैं कि अपने परिवार, माता-पिता और समाज के प्रति जो आपका कर्तव्य है वही आपका धर्म है। अगर आप इन धर्मयुक्त कर्मों को छोड़कर केवल भक्ति करने का बहाना करते हैं तो यह कुकर्म या पापाचरण माना जाता है जिससे आप भ्रष्ट होते चले जाते हैं।

kya kaam kaaj chhod kar bhakti karni chahiye

वे कर्म के साथ-साथ नाम जप और सत्संग को निरंतर चलाने पर ज़ोर देते हैं। पवित्रता, सात्विक भोजन और ब्रह्मचर्य का संयम बनाए रखने से मन और विचार शुद्ध होते हैं जो भक्ति के लिए आवश्यक हैं। सार यह है कि श्री प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार, कर्म और भक्ति का संतुलन ही सही, अत्यंत पुण्यकर, लाभकारी और श्रेष्ठ मार्ग है। 

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भगवान का नाम कब नहीं लेना चाहिए?
अगर आप शौच, शरीर भाव जैसी क्रियाएं क्र रहे हैं तब भगवान का नाम जाप नहीं करना चाहिए।
भगवान की पूजा करने के बाद सबसे पहले क्या करना चाहिए।
भगवान की पूजा करने के बाद सबसे पहले किसी जरूरतमंद को कुछ दान करना चाहिए।
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