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Chhath Puja Kharna 2025: खरना पर क्यों रखा जाता है निर्जला व्रत? जानें विधि, नियम और महत्व

Chhath Puja Kharna: छठ पूजा के दूसरे दिन खरना होता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं। इसलिए इस दिन को संयम और ईश्वर की भक्ति का प्रतीक माना जाता है। आर्टिकल में जानते हैं इस दिन के विधि, नियम और महत्व क्या है? 
Editorial
Updated:- 2025-10-26, 05:33 IST

Chhath Puja Kharna: छठ पूजा हिंदू धर्म का सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस दिन भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा होती है। चार दिन चलने वाला इस पर्व के दूसरे दिन खरना होता है। इस दिन को सबसे ज्यादा पवित्र दिन माना जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। फिर शाम को पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं, खरना की विधि, नियम और महत्व किया है। इसकी सारी जानकारी ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमारे साथ शेयर की है।

खरना व्रत निर्जला क्यों रखा जाता है?

खरना के दिन निर्जला व्रत रखने का मुख्य कारण शारीरिक और मानसिक शुद्धि है, जो व्रती को अगले 36 घंटे के कठोर व्रत के लिए तैयार करती है। यह व्रत यह दर्शाता है कि व्रती ने अब सभी सांसारिक सुखों को त्याग कर कठोर तपस्या के मार्ग पर कदम रखा है। इससे सूर्यदेव से व्रती अपने घर और संतान की सुख की कामना करती है। इस दिन भोजन में भी रोटी और गुड़ की खीर बनाई जाती है। फल के रूप में केला रखा जाता है। इसे छठी मैया और सूर्य देव को भोग लगता है।

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खरना की पूजा विधि

  • खरना का व्रत पूरे दिन रखा जाता है, जिसका पारण शाम को प्रसाद ग्रहण करने के बाद होता है।
  • इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं।
  • शाम को साफ-सुथरे और पवित्र स्थान पर मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी का प्रयोग करके गुड़ और अरवा चावल की खीर तैयार की जाती है। साथ में, शुद्ध गेहूं के आटे और गुड़ से रोटी बनाई जाती है।
  • जब खाना तैयार हो जाता है, तो इसे केले के पत्तों में 11 जगह पर निकाला जाता है।
  • इसके बाद यह प्रसाद सबसे पहले सूर्य देव और छठी मैया को अर्पित किया जाता है। इसके लिए एक दीपक जलाकर, जल का छिड़काव कर, विधिवत पूजा की जाती है।
  • व्रती सबसे पहले यह खीर और रोटी खुद ग्रहण करती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इसे अंधेरा होने से पहले खाया जाता है।
  • इसके बाद इसे प्रसाद के रूप में सबको खिलाया जाता है।

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खरना के क्या होते हैं नियम?

  • व्रती को प्रसाद ग्रहण करते समय एकांत में रहना होता है और किसी की आवाज नहीं सुननी होती है। ऐसा इसलिए ताकि व्रत में शुद्धता बनी रहे।
  • खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद, अगले दिन के संध्या अर्घ्य और उसके बाद अगले दिन सुबह के उषा अर्घ्य तक, व्रती का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
  • प्रसाद बनाने के लिए केवल गंगाजल और गाय का दूध ही इस्तेमाल किया जाता है। इससे ही पूरा खाना तैयार किया जाता है।

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खरना का क्या होता है महत्व?

  • धार्मिक मान्यता है कि खरना का प्रसाद ग्रहण करने से शरीर और मन के सभी पाप धुल जाते हैं और कई सारे रोगों से मुक्ति मिलती है।
  • यह दिन व्रती के कठिन संकल्प को मजबूत करता है और उसे अगले दो दिनों के लिए मानसिक रूप से तैयार करता है।
  • खरना के प्रसाद का कुछ हिस्सा दूसरे दिन के संध्या अर्घ्य के लिए भी रखा जाता है, जो प्रसाद की पवित्रता और निरंतरता को दर्शाता है।

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खरना के पूजा नियम, विधि और महत्व के बारे में पंडित जी ने विस्तार से बताया है। आप भी इसे जरूर जानें, ताकि आप भी व्रत को अच्छे से कर सके।

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Image Credit- Freepik/ herzindagi

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