हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा का विशेष महत्व है। मां चंद्रघंटा को शक्ति और शांति का प्रतीक माना जाता है। मां चंद्रघंटा की पूजा करने से भक्तों को भय से मुक्ति मिलती है। यह पूजा आत्मविश्वास और साहस को बढ़ाती है। मां चंद्रघंटा की पूजा से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यह पारिवारिक जीवन में खुशहाली लाती है। ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी जातक की कुंडली में मंगलदोष है तो माता चंद्रघंटा की पूजा करने से लाभ हो सकता है। अब ऐसे में जो भक्त इस दिन माता की पूजा कर रहे हैं तो उन्हें व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से मां चंद्रघंटा की व्रत कथा के बारे में जानते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन मिलता है, जिनमें से प्रत्येक का अपना विशेष महत्व है। मां दुर्गा का पहला रूप शैलपुत्री है, जो हिमालय की पुत्री मानी जाती हैं। इनका शांत और सौम्य स्वरूप प्रकृति की सुंदरता और शक्ति का प्रतीक है।
मां दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है, जो भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करती हैं। इनका यह रूप तपस्या, त्याग और समर्पण का प्रतीक है। जब मां ब्रह्मचारिणी अपनी तपस्या से भगवान शंकर को प्रसन्न कर लेती हैं, तो उनका विवाह होता है और वे आदिशक्ति के रूप में प्रकट होती हैं।
विवाह के पश्चात, मां दुर्गा का तीसरा रूप चंद्रघंटा के रूप में प्रकट होता है। यह रूप शक्ति, वीरता और न्याय का प्रतीक है। मां चंद्रघंटा का अवतार तब हुआ जब संसार में दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था। उस समय, महिषासुर नामक एक भयंकर दैत्य देवताओं से युद्ध कर रहा था। महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था और स्वर्ग लोक पर राज करने की इच्छा रखता था।
जब देवताओं को महिषासुर की दुष्ट इच्छा का पता चला, तो वे भयभीत हो गए और भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास सहायता के लिए पहुंचे। देवताओं की प्रार्थना सुनकर, तीनों देवताओं को क्रोध आया और उनके मुख से एक दिव्य ऊर्जा निकली। इस ऊर्जा से एक तेजस्वी देवी का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्हें मां चंद्रघंटा के रूप में जाना गया।
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मां चंद्रघंटा को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने अपना तेज और तलवार और सिंह प्रदान किया। इन दिव्य अस्त्रों और वाहन के साथ, मां चंद्रघंटा ने महिषासुर के विरुद्ध युद्ध किया और उसका वध करके देवताओं की रक्षा की।
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मां चंद्रघंटा का यह रूप बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह हमें यह भी सिखाता है कि जब हम अन्याय के विरुद्ध खड़े होते हैं, तो दिव्य शक्तियां हमारी सहायता करती हैं। मां चंद्रघंटा की पूजा करने से भक्तों को शक्ति, साहस और शांति प्राप्त होती है।
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Image Credit- HerZindagi
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