(Chaitra navratri 2024 kalash sthapana significance) हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह का आरंभ दिनांक 09 अप्रैल को हो रहा है और इसका समापन 17 अप्रैल को होगा। नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना का विधान है। इसका पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है। कलश स्थापना के बिना नवरात्रि के 9 दिनों की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है। यह कलश पहले दिन से लेकर 9वें दिन तक रखा जाता है। फिर दशमी तिथि के दिन उसका विसर्जन किया जाता है। अब ऐसे में सवाल यह है कि नवरात्रि में कलश स्थापना क्यों की जाती है। विधि क्या है और कलश स्थापना का मुहूर्त क्या है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
हिंदू धर्म में कलश को मातृ शक्ति, त्रिदेव, त्रिगुणात्मक शक्ति का प्रतीक माना जाता है। जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव के अतिरिक्ति सभी देवी-देवताओं का वास होता है। चैत्र नवरात्रि की पूजा से पहले कलश स्थापना करते हैं। ऐसा करने से सभी देवी-देवता उस पूजा और व्रत के साक्षी बन जाते हैं।
कलश स्थापना के समय उनका आह्वान किया जाता है और उन्हें स्थान दिया जाता है। फिर आदिशक्ति मां दुर्गा का आह्वान करते हैं। उनकी प्रतिमा स्थापना करने के बाद पूजा आरंभ करते हैं। कलश को तीर्थ की प्रतीक माना जाता है। कलश के मुख को विष्णु, कंठ को शिव और मूल में ब्रह्म देव का वास होता है। कलश में भरा जल पवित्रता, शीतलता और स्वच्छता का प्रतीक माना जाता है।
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दिनांक 9 अप्रैल को चैत्र नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करने के लिए मिट्टी या धातु के कलश का उपयोग करें। और उसे माता की चौकी के पास स्थापित करें। कलश में सप्तमृतिका यानी कि सात प्रकार की मिट्टी और सप्तधान्य यानी कि सात प्रकार के अनाज, पंच रत्न, फूल, द्रव्य आदि डालकर उसमें जल भर देते हैं। उसके बाद ऊपर उसके बाद मिट्टी का एक बर्तन रखें।
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उसमें चावल भर दें और एक नारियल को चुनरी में लपेटकर कलश के ऊपर रखें। वह नारियल त्रिगुणात्मक शक्ति महासरस्वती, महाकाली और महालक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। उसके बाद गणेश और गौरी की पूजा करें फिर मां दुर्गा का आह्वान भी करें।
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