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सावन मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत कब रखा जाएगा? जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व

हिंदू धर्म में मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत मां दुर्गा को समर्पित है। अब ऐसे में इस माह में मां दुर्गा की पूजा कब किया जाएगा और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
Editorial
Updated:- 2025-07-29, 07:31 IST

हर महीने शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत रखा जाता है। यह दिन मां दुर्गा को समर्पित होता है और भक्त उनकी कृपा पाने के लिए व्रत रखते हैं। सावन मास में पड़ने वाली मासिक दुर्गाष्टमी का विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि किसी जातक के जीवन में कोई भी समस्या आ रही है तो सावन मासिक दुर्गाष्टमी के दिन मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करने से लाभ हो सकता है और कार्यक्षेत्र में सफलता मिल सकती है। इसके लिए आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं। इस साल मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत कब रखा जाएगा और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है और महत्व क्या है। 

सावन मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत कब रखा जाएगा?

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प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी का पावन पर्व मनाया जाता है। यह दिन मां दुर्गा को समर्पित होता है और इस दिन विधि-विधान से देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सावन मास में पड़ने वाली मासिक दुर्गाष्टमी का महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि यह महीना भगवान शिव को समर्पित है और इस दौरान शिव और शक्ति दोनों का पूजन विशेष फलदायी होता है। वहीं मासिक दुर्गाष्टमी का व्रत 1 अगस्त शुक्रवार को रखा जाएगा।

सावन मासिक दुर्गाष्टमी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?

सावन मासिक दुर्गाष्टमी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त विस्तार से जान लें।
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 04:20 बजे से 05:05 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:00 बजे से 12:55 बजे तक
विजय मुहूर्त: दोपहर 02:45 बजे से 03:40 बजे तक

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सावन मासिक दुर्गाष्टमी के दिन पूजा का महत्व क्या है?

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मासिक दुर्गाष्टमी पर मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। यह दिन नकारात्मक शक्तियों को दूर करने और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है, धन-धान्य की वृद्धि होती है और सुख-शांति बनी रहती है। अविवाहित कन्याएं उत्तम वर की प्राप्ति के लिए भी यह व्रत रखती हैं।

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