
हिंदू धर्म में सूर्य को ऊर्जा, शक्ति और जीवन का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सूर्य देव को जल चढ़ाना एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है और इस प्रक्रिया को सूर्य को अर्घ्य देना कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि सूर्य को अर्घ्य आपको कुछ ज्योतिष नियमों का पालन करते हुए देना चाहिए जिससे जीवन में समस्याएं न आएं और इस अनुष्ठान का पूरा लाभ मिले।
आमतौर पर लोग सूर्योदय के समय ही सूर्य को अर्घ्य देते हैं क्योंकि इस समय सूर्य अपनों पूर्ण ऊर्जा से युक्त होता है। हालांकि हमारे मन में कई बार एक सवाल यह भी आता है कि क्या डूबते हुए सूर्य को भी अर्घ्य दिया जा सकता है? क्या इस समय सूर्य को अर्घ्य देना ठीक है? ज्योतिष शास्त्र की मानें तो सूर्य को अर्घ्य देने के लिए आपको एक निश्चित समय का ध्यान रखने की जरूरत होती है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें इसके बारे में विस्तार से।

सूर्य को अर्घ्य देना केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा और सकारात्मकता बढ़ाने का माध्यम भी है। सूर्य को जल चढ़ाने से व्यक्ति के जीवन में आत्मविश्वास, स्वास्थ्य और मानसिक शांति को बढ़ावा मिलता है। साथ ही, यह सूर्य ग्रह से जुड़े दोषों को कम करने में सहायक माना जाता है।
ज्योतिष के अनुसार, सूर्य को आत्मा, आत्मविश्वास, सफलता और समाज में मान-सम्मान दिलाने का एक कारक माना जाता है जो ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। यदि आप इसे प्रसन्न करते हैं तो जीवन के कई संकटों से मुक्ति मिल सकती है। आमतौर पर सूर्योदय के समय ही सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है क्योंकि सूर्य सुबह के समय नई ऊर्जा से परिपूर्ण होता है। जब हम सूर्योदय के समय अर्घ्य देते हैं, तब सुबह का समय नई ऊर्जा और सकारात्मकता से भरा होता है।

ऐसा माना जाता है कि कुछ लोग सूर्य की तीन पहरों में नियमित पूजा करते हैं, इसे त्रिकाल संध्या कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि अगर आप त्रिकाल संध्या करते हैं तो तीनों पहरों में सूर्य को जल चढ़ाया जा सकता है।
यदि आप नियमित रूप से त्रिकाल संध्या नहीं करते हैं तो सूर्य को सिर्फ सूर्योदय के समय अर्घ्य दें और डूबते सूरज को जल न चढ़ाएं। यदि आप त्रिकाल संध्या करते हैं तो आपको तीनों पहरों में जल निश्चित ही चढ़ाना चाहिए। मान्यता है कि यदि आप डूबते सूरज को जल चढ़ाते हैं तो आपको इसके सकारात्मक फल नहीं मिलते हैं।
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अगर हम ज्योतिष की मानें तो सूर्योदय के समय ही अर्घ्य देना सबसे बेहतर माना जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप सूर्यास्त के समय सूर्य को अर्घ्य नहीं दिया जा सकता है।
आप कुछ विशेष अवसरों पर सूर्य की शाम के समय अर्घ्य दे सकते हैं जैसे कि छठ पूजा के दौरान डूबते हुए सूरज को भी अर्घ्य दिया जा सकता है। हालांकि ज्योतिषीय दृष्टिकोण से, सूर्यास्त का समय बदलाव और विश्राम का प्रतीक होता है इसी वजह से सूर्य को जल देने से मना किया जाता है, क्योंकि इस समय सूर्य डूबने के बाद अगले दिन को प्रकाशमय करने की तैयारी में होता है।
सूर्यास्त के समय सूर्य की ऊर्जा धीरे-धीरे घटती है और इस समय को ज्योतिष में प्रतिकूल ऊर्जा का समय माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किए गए धार्मिक अनुष्ठान उतने प्रभावी नहीं होते हैं और कभी-कभी नकारात्मक परिणाम भी ला सकते हैं। वहीं सूर्यास्त विश्राम और अंत का प्रतीक भी होता है और यह समय दिनभर की गतिविधियों को समाप्त करने का होता है। धार्मिक दृष्टिकोण से यह समय ध्यान और प्रार्थना का माना जाता है न कि किसी नए अनुष्ठान को शुरू करने का।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यास्त के समय नकारात्मक शक्तियों और राहु-केतु जैसे अशुभ ग्रहों का प्रभाव बढ़ जाता है। इस समय किए गए अनुष्ठानों का आपके जीवन में उल्टा प्रभाव हो सकता है, इसलिए डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने से बचने की सलाह दी जाती है।

ऐसा माना जाता है कि सूर्यास्त के समय सूर्य को अर्घ्य देने से व्यक्ति के जीवन में धन का प्रवाह रुक सकता है। मान्यता है कि इस समय सूर्यास्त के समय की ऊर्जा विश्राम का संकेत देती है, इसलिए इस समय किए गए अनुष्ठान जीवन में ठहराव ला सकते हैं। यह समय राहु और केतु ग्रहों के प्रभाव का होता है, जो व्यक्ति के जीवन में समस्याएं और भ्रम पैदा कर सकते हैं।
यहां बताए कारणों की वजह से आपको सूर्यास्त के समय सूर्य को अर्घ्य देने से मना किया जाता है। हालांकि आप छठ पूजा जैसे कुछ विशेष अवसरों पर सूर्य को अर्घ्य जरूर दे सकते हैं।
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