
हिंदू धर्म और ज्योतिष शास्त्र में गर्भवती महिलाओं द्वारा शिवलिंग को छूने या उनकी पूजा करने को लेकर कई तरह की मान्यताएं और विचार प्रचलित हैं। सनातन धर्म में शिवलिंग को भगवान शिव का निराकार और अनंत स्वरूप माना गया है जो ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विनाश की ऊर्जा का प्रतीक है। धार्मिक दृष्टिकोण से शिवलिंग की पूजा के कड़े नियम बताए गए हैं क्योंकि इसे अत्यधिक ऊर्जावान माना जाता है। वहीं, ज्योतिषीय नजरिए से ग्रहों की स्थिति और शरीर में होने वाले ऊर्जा परिवर्तनों का विशेष महत्व होता है। कई लोग इसे वर्जित मानते हैं तो कई इसे श्रद्धा का विषय मानते हैं। आइये जानते हैं इस बारे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग को 'ब्रह्मांडीय ऊर्जा' का केंद्र माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग से निकलने वाली ऊर्जा बहुत तीव्र और शक्तिशाली होती है। गर्भवती महिला के भीतर एक नया जीवन पल रहा होता है जो बहुत ही कोमल और संवेदनशील होता है।

शास्त्रों के कुछ जानकारों का तर्क है कि शिवलिंग की अत्यधिक ऊर्जा गर्भस्थ शिशु के लिए संवेदनशील हो सकती है। इसी कारण, कुछ मंदिरों में और परंपराओं में गर्भवती महिलाओं को शिवलिंग को सीधे स्पर्श करने से बचने की सलाह दी जाती है ताकि वे केवल दूर से दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त करें।
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवान शिव का संबंध चंद्रमा से है और मंगल उनकी शक्ति का प्रतीक है। गर्भावस्था के दौरान महिला की कुंडली में चंद्रमा और राहु-केतु जैसे ग्रहों का प्रभाव विशेष महत्व रखता है। ज्योतिषियों का मानना है कि गर्भावस्था के समय महिला का ओरा बहुत संवेदनशील होता है।
चूंकि शिवलिंग 'अग्नि' और 'तत्व' का मिश्रण है, इसलिए ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव से बचने और गर्भ की सुरक्षा के लिए अक्सर सीधे स्पर्श से परहेज करने को कहा जाता है। हालांकि, शिव की मानसिक पूजा या मंत्र जाप जैसे महामृत्युंजय मंत्र को मां और बच्चे दोनों के लिए बहुत शुभ माना जाता है।
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प्राचीन नियमों के पीछे कुछ व्यावहारिक कारण भी हो सकते हैं। पुराने समय में मंदिरों में शिवलिंग अक्सर संकरे गर्भगृहों में होते थे, जहां भीड़ अधिक और ऑक्सीजन की कमी हो सकती थी। गर्भवती महिला को धक्का लगने या गिरने का डर रहता था। इसलिए सुरक्षा के कारण यह नियम बनाया गया।

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