फिल्में रिलीज होते ही कैसे हो जाती हैं लीक? पायरेसी का पूरा खेल समझने के लिए देखिए मुनव्वर फारुकी की यह वेब सीरीज

आज भी फिल्में थिएटर में रिलीज होती नहीं कि ऑनलाइन उनकी पाइरेसी हो जाती है। फिल्मों की पाइरेसी एक गैर-कानूनी काम है। अगर आप जानना चाहते हैं कि मूवी पाइरेसी का काम कैसे होता है, तो आपको यह वेब सीरीज जरूर देखनी चाहिए।
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आज के डिजिटल जमाने में इंटरनेट और ऑनलाइन स्ट्रीमिंग ने फिल्में देखना बहुत आसान बना दिया है। लेकिन, पुराने समय में फिल्में देखने के लिए लोगों को हफ्तों इंतजार करना पड़ता था, क्योंकि तब फिल्में सिर्फ थिएटर में ही रिलीज होती थीं। फिर एक वक्त ऐसा आया जब फिल्में CD या DVD में आने लगीं और यहीं से फिल्मों की पाइरेसी शुरू हो गई। आज भी ऐसा होता है कि फिल्म थिएटर में रिलीज भी नहीं होती और उसकी पाइरेटेड कॉपी हमें ऑनलाइन मिल जाती है।

अगर आप समझना चाहते हैं कि फिल्म पाइरेसी असल में कैसे शुरू हुई और यह कैसे काम करती है, साथ ही फिल्म इंडस्ट्री पर इसका कैसा बुरा असर पड़ता है, तो आपको Amazon MX प्लेयर पर स्ट्रीम हुई वेब सीरीज First Copy जरूर देखनी चाहिए। यह सीरीज 1990 के दशक की मुंबई पर बनी है और इसमें स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी ने मुख्य भूमिका निभाई है।

First Copy सीरीज में दिखाया गया है कि कैसे नौकरी में अपमान सहने के बाद आरिफ नाम का किरदार बदला लेने के लिए पाइरेसी की दुनिया में घुस जाता है। जहाँ वह पाइरेटेड VCD और VHS टेप के जरिए एक अवैध बिजनेस शुरू करता है। धीरे-धीरे वह इस काले कारोबार में इतना गहराता चला जाता है कि उसका धंधा न सिर्फ बॉलीवुड के निर्माताओं को चुनौती देता है, बल्कि कानून और व्यवस्था को भी।

90 के दशक में फिल्म पाइरेसी कैसे होती थी?

90 के दशक में फिल्में VHS टेप या VCD पर आती थीं। पाइरेसी करने वाले लोग छोटे-छोटे सेटअप जैसे दुकानों या वीडियो पार्लर में फिल्मों की नकल बनाते थे। ये लोग रिकॉर्डिंग मशीन की मदद से फ़िल्मों की नकली कॉपी तैयार करते थे। First Copy सीरीज में भी आरिफ का किरदार स्थानीय नेटवर्क का इस्तेमाल करके पाइरेसी की दुनिया में घुस जाता है।

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चोरी की फिल्मों का डिस्ट्रीब्यूशन

पहले के जमाने में पाइरेटेड फिल्में सड़क किनारे, भीड़-भाड़ वाले बाजारों में बेची जाती थीं। इसके अलावा, वीडियो पार्लर में उन्हें कम दाम पर किराए पर भी दिया जाता था। जिन लोगों के लिए असली CD खरीदना या थिएटर जाकर फिल्में देखना महंगा होता था, वे लोग पाइरेटेड फिल्में देखते थे। पाइरेसी का काम कभी आसान नहीं रहा है। यह कारोबार पूरी तरह से अवैध होता था और इसमें कई बार मुंबई के अंडरवर्ल्ड के लोग भी जुड़े होते थे।

पाइरेसी इतनी बड़ी परेशानी क्यों है?

  • आपको बता दें कि जब लोग फिल्म को पाइरेटेड कॉपी में देखते हैं, तो फिल्म की कमाई पर बहुत बुरा असर पड़ता है। जनता थिएटर तक नहीं पहुंचती और इसका सीधा नुकसान फिल्म बनाने वालों (प्रोड्यूसर्स) को झेलना पड़ता है। आजकल जब तक फिल्म थिएटर या OTT प्लेटफॉर्म पर नहीं देखी जाती, तब तक कमाई नहीं होती।
  • एक फिल्म बनाने में सालों की मेहनत, दिमाग और पैसा लगता है। जब लोग बिना कीमत चुकाए गैर-कानूनी तरीके से फिल्म देख लेते हैं, तो इससे क्रिएटिव लोगों का मनोबल टूटता है।
  • बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें पाइरेटेड मूवी डाउनलोड करना गलत नहीं लगता है, जबकि यह कानून के खिलाफ है। First Copy वेब सीरीज में साफ दिखाया गया है कि फिल्म की पाइरेटेड कॉपी बेचने वाले से लेकर देखने वाले तक को कानून तोड़ने वाला माना जाता है। इससे आप पर जुर्माना या सजा भी लग सकती है।

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आपको First Copy वेब सीरीज क्यों देखनी चाहिए?

अगर आप 90 के दशक की मुंबई को देखना चाहते हैं, तो आपको यह सीरीज जरूर देखनी चाहिए। इसमें आपको दिखेगा कि कैसे बंबई में वीडियो पार्लर चलते थे, गलियों का माहौल कैसा था। First Copy वेब सीरीज में आपको गुलशन ग्रोवर, रजा मुराद जैसे दिग्गज एक्टर भी देखने को मिलेंगे। यह सीरीज दिखाती है कि पाइरेसी सिर्फ एक छोटा अपराध नहीं, बल्कि एक ऐसी आदत है जो कई लोगों की रोजी-रोटी और पूरी फिल्म इंडस्ट्री को बर्बाद कर सकती है।

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