(son takes alms from his mother during upanayana sanskar) सनातन धर्म में कुल सोलह संस्कार होते हैं। जिसमें उपनयन संस्कार को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस संस्कार के अंतर्गत ही व्यक्ति को जनेऊ पहनाई जाती है। इसे यज्ञोपवीत संस्कार भी कहा जाता है। जिस भी व्यक्ति का उपनयन संस्कार होता है, उसका विधिवत मुंडन किया जाता है और पवित्र जल में स्नान कराया जाता है।
शिष्य, संत और ब्राह्मण बनाने के लिए दीक्षा ली जाती है। दीक्षा देने के तरीके में से एक जनेऊ धारण करना होता है। जो बेहद पवित्र माना जाता है। वहीं जब माता-पिता अपने बच्चों को जब शिक्षा के लिए भेजते हैं, तब दीक्षा दी जाती थी।
हिंदू धर्म में दिशाहीन जीवन को एक दिशा देना ही दीक्षा माना जाता है। दीक्षा का अर्थ संकल्प है। किसी भी व्यक्ति को दीक्षा देने का अर्थ दूसरा जन्म और व्यक्तित्व देना है। इतना ही जनेऊ व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। अब ऐसे में उपनयन संस्कार में पुत्र अपनी माता से भिक्षा क्यों लेता है।
इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
उपनयन संस्कार विधि
प्राचीन काल में उपनयन संस्कार के लिए शिष्य को गुरु के पास भेजा जाता था, ताकि वह गुरु (गुरुदोष उपाय) से ज्ञान अर्जित कर सके, लेकिन आज के समय में किसी भी बालक के उपनयन संस्कार के लिए सही मुहूर्त निर्धारित किया जाता है।
उपनयन संस्कार करने से पहले भगवान गणेश, देवी सरस्वती, माता लक्ष्मी (माता लक्ष्मी मंत्र), धृति और पुष्टि का आह्वान किया जाता है। वर्तमान में यज्ञोपवित के लिए ब्राह्मण द्वारा यज्ञ संपन्न कराया जाता है। तभी बालक का मुंडन किया जाता है। उसके बाद घर के सभी बड़े सदस्यों के आशीर्वाद के साथ बालक को 3 सूत्र का जनेऊ धारण करवाया जाता है। उसके बाद बालक के हाथ मे एक डण्डा पकड़ाया जाता है। डण्डा पकड़ाने से यह आशय है कि बालक ज्ञान और सत्य के मार्ग पर चलकर अपने लक्ष्य को हासिल कर सके।
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उपनयन संस्कार के बाद वस्त्र, दण्डा और जनेऊ धारण करता है। तभी उस दौरान पण्डित जी बालक को गायत्री मंत्र देते हैं। पश्चात बालक को दीक्षा का महत्व बताया जाता है। उसके बाद बालक ब्रह्मचारी कहलाता है। यह सभी विधि-विधान के बाद बालक अपने परिजनों से भिक्षा लेने के लिए जाता है।
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जानें उपनयन संस्कार में भिक्षा लेने का महत्व
उपनयन संस्कार में भिक्षा लेना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भिक्षा मांगने से अहंकार नष्ट हो जाते हैं। व्यक्ति के अंदर विनम्रता आती है और उसे कठिन से कठिन परिस्थिति का सामना करने के लिए बल भी मिलता है। वहीं जब बालक अपनी माता से भिक्षा लेने के लिए जाता है, तो उनकी माता उन्हें अन्न देती हैं और प्रेम का परिभाषा भी समझाती हैं।
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Image Credit- Freepik
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