By Saudamini Pandey12 Nov 2018, 19:56 IST
आज के समय में पेरेंट्स के सामने एक बड़ी चुनौती है कि बच्चों को सोशल कैसे बनाया जाए। न्यूक्लियर फैमिली और वर्किंग मदर्स के होने की वजह से ज्यादातर परिवारों में बच्चों की परवरिश अकेले की जा रही है। आसपास के माहौल को सुरक्षित रखने का दबाव होने के कारण भी पेरेंट्स को बच्चों की निगरानी रखनी पड़ती है और बच्चों से घुलने-मिलने वालों पर नजर रखनी पड़ती है। ऐसे में बच्चों को बाहरी लोगों से बहुत ज्यादा इंटरैक्ट करने का मौका नहीं मिलता। इस कारण बच्चों को आगे चलकर सोशल बनाने में दिक्कत हो सकती हैं, साथ ही बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ घुलने-मिलने और अपना एक फ्रेंड सर्कल बनाने में भी परेशानी आ सकती है। आपका बच्चा इस तरह की परेशानी का सामना ना करे, इसके लिए पेरेंटिंग एक्सपर्ट नियति शाह आपको बता रही हैं कुछ आसान टिप्स-
जब हम सोशल बोलते हैं तो सोशल का मतलब यह नहीं कि बच्चे एक्स्ट्रोवर्ट बन जाएं, इसका मतलब यह है कि बच्चे अपने आप को अलग-अलग तरह की परिस्थिति में हैंडल कर पाएं और अपने आप को एक्सप्रेस कर पाएं।
बच्चों के लिए सोशल होना इसलिए जरूरी है ताकि उनमें आत्मविश्वास आए कि मैं किसी भी परिस्थिति को हैंडल कर सकता हूं और अपने आप को एक्सप्रेस कर सकता हूं। लोगों के सामने हंस के बात करना, लोगों से हैंडशेक करना, अलग-अलग परिस्थिति में अपने आप को आत्मविश्वास के साथ प्रजेंट करना, ये सब चीजें जरूरी हो जाती हैं। अब के लिए भी और जब वो बड़े होंगे, तब के लिए भी।
पेरेंट्स को देखकर ही बच्चे सीखते हैं। तो जब आप खुश हो तो बच्चे सोशल होना सीखेंगे। जब आप एक-दूसरे का सम्मान करें, तब बच्चे सोशल होना सीखेंगे और सबसे जरूरी यह है कि आपको सोशल होना चाहिए। आप किस तरह का व्यवहार करते हैं, कैसे बात करते हैं, इसे देखकर बच्चे भी बात करना सीखेंगे। उन्हें शादी में, बर्थ डे पार्टीज में, अलग-अलग सोशल ईवेंट्स में लेकर जाएं, तब वे सोशल होना सीखेंगे। स्कूल में ईवेंट्स होते हैं, वहां भाग लें। बच्चे वहां से भी सीखते हैं, एजस्ट करना और अलग-अलग तरह के लोगों से डील करना।
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किसी भी तरह के सोशल ईवेंट से पहले जब हम बच्चों को तैयार कर लेते हैं तो वे कॉन्फिडेंट बनते हैं। जैसे कि आप बच्चे को कह सकती हैं, 'अगर आपको भूख लगी तो आप किसके पास जाओगे, अगर आपको लग गई तो आप क्या करोगे, अगर आपको कोई प्रॉब्लम है तो मेरा नंबर याद है?, ये सवाल पूछने से बच्चे में कॉन्फिडेंस बढ़ता है। इससे बच्चा सोशल सिचुएशन्स को बेहतर तरीके से हैंडल कर सकता है। बच्चों को सोशल बनाना एक दिन का काम नहीं है। इसके लिए बच्चों की रोजाना प्रैक्टिस कराना जरूरी है। सीखना एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, इसीलिए आपको धीरज रखना चाहिए और बच्चे को प्यार से समझाना चाहिए ताकि बच्चे का आज और कल दोनों बेहतर बनें।
Credits
Producer : Rohit Chavan
Editor : Anand Sarpate