'स्वर कोकिला', 'मेलोडी क्वीन', 'प्लेबैक क्वीन' कही जाने वाली लता मंगेशकर अब हमारे बीच नहीं रहीं। उन्हें प्यार से उनके चाहने वाले लता दीदी कहकर पुकारा करते थे। लता मंगेशकर की आवाज़ वो पहचान थी जिसे देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोग पहचानते थे। अपने मधुर गानों को तराने के बीच लता मंगेशकर सभी का मन मोह लेती थीं। 6 फरवरी 2022 की सुबह हमारे लिए ये बहुत ही दुखद खबर लाई कि अब वो हमारे बीच नहीं रहीं। लता दीदी की खूबसूरत आवाज़ के साथ-साथ उनकी खूबसूरत पर्सनेलिटी भी सभी को पसंद आती थी। लता मंगेशकर गानों के अलावा भी कई चीज़ों की शौकीन थीं, क्या आप जानते हैं वो क्या थी? तो चलिए आज लता दीदी को याद करते हुए उनके बारे में कुछ बातें बताते हैं।
लता मंगेशकर के लिए ये बात प्रसिद्ध थी कि उन्होंने अपना काम 13 साल की उम्र से शुरू किया है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये उन्होंने मजबूरी में किया था। 1942 में हार्ट अटैक के कारण उनके पिता जी की मृत्यु हो गई थी और लता मंगेशकर जो अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं उन्हें मजबूरी में घर में पैसे कमाने के लिए काम करना पड़ा।
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ये बात है 1963 की जब भारत इंडो-चीन युद्ध से उबर रहा था। युद्ध को खत्म हुए सिर्फ 2 महीने ही हुए थे और उस वक्त देश की माली हालत के साथ-साथ भावनात्मक हालत भी सही नहीं थी। उस वक्त लोगों का मनोबल बढ़ाने और शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए लता मंगेशकर ने 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाना गाया था। ये वो गाना था जिसे सुनने के बाद पंडित नेहरू रोने लगे थे।
लता मंगेशकर की आवाज कुछ ऐसी थी जो सभी का मन मोह लेती थी। हमारी तरफ से उन्हें श्रद्धांजलि।
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लता मंगेशकर का पहला ब्रेक उन्हें मराठी फिल्म 'किती हसाल' से मिला था। इस फिल्म में उन्होंने एक गाना गाया था जिसे बाद में ड्रॉप कर दिया गया था। हालांकि, इसी फिल्म में गाना-गाने के बाद उन्हें पहला एक्टिंग ब्रेक मिल गया था। बहुत कम लोगों को पता है कि लता मंगेशकर ने मराठी फिल्म 'पहली मंगलगौर' में एक्टिंग की थी।
लता मंगेशकर को सफेद रंग से बहुत लगाव था और शायद इसलिए उनके पहनावे में अधिकतर सफेद साड़ी देखने को मितली थी। सफेद रंग को अलग-अलग ढंग से पहनने वाली लता मंगेशकर हीरे की चूड़ियां भी पसंद करती थीं।
स्वर कोकीला लता मंगेशकर को क्रिकेट से बेहद लगाव था। हालांकि, वो टेनिस और फुटबॉल देखने का शौक भी रखती थीं, लेकिन क्रिकेट उनका पसंदीदा खेल था। लता दीदी के अंतिम संस्कार में क्रिकेट के मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर और उनकी पत्नी अंजली भी मौजूद थीं।
लता जी ने पहले ब्रेक से पहले तो फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली थी, लेकिन एक बार काम करने के बाद उन्होंने संगीत सीखना भी शुरू कर दिया था। उन्होंने भारतीय क्लासिकल म्यूजिक के बारे में उस्ताद अमानत अली खान से सीखा और पार्टीशन के बाद जब उनके टीचर पाकिस्तान चले गए तो उनकी ट्रेनिंग अमानत खान देवासवाले से हुई। इसके बाद लता मंगेशकर ने पंडित तुलसीदास शर्मा से ट्रेनिंग ली जो उस्ताद बड़े गुलाम अली खान के चेले थे।
लता मंगेशकर ने म्यूजिक कंपोजर अनिल बिस्वास से भी ये सीखा था कि गानों में कैसे शब्द या वाक्य टूटने नहीं चाहिए। इसके बारे में खुद उनकी पोती तुहीना वोहरा ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक पोस्ट के जरिए बताया था।
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लता मंगेशकर का पहला फिल्म फेयर अवार्ड था फिल्म 'मधुमति' के लिए जो 1958 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म में उन्हें 'आजा रे परदेसी' गाने के लिए अवार्ड मिला था।
लता मंगेशकर उन लोगों में से एक थीं जिनके पास डिग्री की कोई कमी नहीं थी। 5 साल की उम्र में उनका एडमिशन स्कूल में करवाया तो गया था, लेकिन वो सिर्फ 1 दिन ही स्कूल गईं। दरअसल, जब लता जी स्कूल गई तो उनके साथ आशा भोसले भी थीं और स्कूल वालों ने कहा कि दो बच्चों को पढ़ाने के लिए अलग से फीस देनी होगी। उस वक्त घर की माली हालत ठीक नहीं थी और लता मंगेशकर ने अपना नाम कटवा कर बहन को पढ़ाया।
पर लता मंगेशकर की कला ने वो भरपाई कर दी और अलग-अलग 6 यूनिवर्सिटीज ने लता मंगेशकर को म्यूजिक में डॉक्टरेट की डिग्री दी।
लता दीदी नॉन वेज खाने की बेहद शौकीन हुआ करती थीं और उन्हें वो इतना पसंद था कि म्यूजिक कंपोजर और लता मंगेशकर के गुरु अनिल बिस्वास खुद उनके लिए ये बनाया करते थे। मुंबई के तारदेव से दादर तक लता मंगेशकर पैदल चलकर गाना सीखने आती थीं और क्योंकि उनकी माली हालत ठीक नहीं थी इसलिए वो नॉन वेज फूड अफोर्ड नहीं कर पाती थीं। इसलिए इसे अनिल बिस्वास बनाया करते थे।
लता मंगेशकर की सबसे फेमस लड़ाई थी 1950 के दशक में एस डी बर्मन के साथ। ये दोनों एक दूसरे को देखना तक पसंद नहीं करते थे और 1962 तक ये लड़ाई चलती रही। तब तक इन दोनों ने एक साथ काम नहीं किया।