गोरखपुर में महज 36 घंटे के भीतर ऑक्सीजन की कमी से 30 बच्चों ने अपनी जान गंवा दी थी। जान गंवाने वाले बच्चों में ज्यादातर इन्सेफेलाइटिस यानी जापानी बुखार से पीड़ित थे। इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों को ऑक्सीजन बहुत जरूरत होती है। इन्सेफेलाइटिस से पूर्वांचल में हर साल कई बच्चों की मौत होती है।
मस्तिष्क ज्वर, दिमागी बुखार और जापानी बुखार आदि नामों से प्रचलित इन्सेफेलाइटिस एक जानलेवा बीमारी है। इसका शिकार बच्चे ज्यादा होते हैं। अगस्त, सितम्बर और अक्टूबर के महीनों में यह अपने जोरों पर होता है। ये बीमारी हर साल इन्हीं तीन महीनो में अधिक फैलती है। लोगों में इस बीमारी के प्रति जानकारी की कमी के चलते वे इसे अनदेखा करते हैं, जिस कारण उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
पिछले कुछ सालों में जापानी इन्सेफेलाइटिस ने भारत में खूब कहर मचाया है, हर साल यह देश में हजारों लोगों की मौत का कारण बनता है। इसलिए इसके बारे में सही जानकारी और बचाव बेहद जरूरी है। तो चलिये जानें जापानी इन्सेफेलाइटिस के बारे में और संकल्प करें कि इसे भी पोलियो की तरह खुद के घर और देश से निकाल बाहर करेंगे, ताकि और लोग इसकी बली न चढ़ पाएं।
19 हजार बच्चों ने अपनी जान गवाई

आंकड़ों के मुताबिक, साल 1978 से 2016 तक करीब 38 सालों में 9 हजार से ज्यादा बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जबकि गोरखपुर में इस साल 2017 में जापानी बुखार के चलते 111 मासूम बच्चों की मौत हो चुकी है जबकि 106 बच्चों का मेडिकल कॉलेज में इलाज चल रहा है।
21977 से इस बीमारी का कहर है जारी

गोरखपुर में इन्सेफलाइटिस का पहला मामला 1977 में सामने आया था, तब से ही इस बीमारी का क़हर जारी है। देश के 19 राज्यों के 171 जिलों में जापानी इन्सेफेलाइटिस का असर है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार सहित दूसरे राज्यों के 60 जिले इन्सेफेलाइटिस से ज्यादा प्रभावित हैं।
3साल के तीन महीनों में सबसे ज्यादा प्रकोप

साल के तीन महीने अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में इस बीमारी का कहर सबसे ज्यादा होता है। एक जानकारी के अनुसार, अब तक इस बीमारी से यूपी के गोरखपुर समेत 12 जिलों में एक लाख से ज्यादा लोग मौत के शिकार हो चुके हैं।
4मौतों की संख्या में बढ़ोतरी

2016 में पिछले सालों के मुकाबले इन्सेफलाइटिस से होने वाली मौतों की संख्या 15 फीसदी बढ़कर 514 हो गई। यह आंकड़ा सिर्फ गोरखपुर मेडिकल कॉलेज का है। यह बीमारी भारत के 19 प्रदेशों में है और 40 साल से है। सिर्फ पूर्वांचल में इस बीमारी से हर साल पांच से सात हज़ार लोगों की मौत हो जाती है।