कल्पना कीजिए कि दिन ढलने को है, सूरज अपनी आखिरी सुनहरी किरणें बिखेर रहा है और दूर से गायों के गले की घंटियों की मधुर ध्वनि सुनाई दे रही है। इस समय धूल भरी हवा में एक आध्यात्मिक ऊर्जा महसूस होती है, मानो प्रकृति खुद ध्यान मग्न हो रही हो।
यही समय गोधूलि बेला कहलाता है-शाम के लगभग 5:30 से 6:30 बजे का यह संधिकाल, जब दिन और रात का मिलन होता है। इस समय में कुछ मिनट आगे-पीछे हो सकते हैं, लेकिन सूर्यास्त से ठीक पहले का समय गोधूलि या मंगल बेला होता है।
हिंदू धर्म में यह समय अत्यधिक शुभ और पवित्र माना जाता है। ज्योतिषाचार्य जनार्दन पंत पंडित कहते हैं, "गोधूलि बेला वह समय है जब सकारात्मक और नकारात्मक शक्तियां एक साथ सक्रिय होती हैं। इस दौरान यदि सही कार्य किए जाएं, तो व्यक्ति के जीवन में समृद्धि आती है, जबकि गलत कार्य दुर्भाग्य को न्योता देते हैं।"
गोधूलि बेला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी यह एक ऊर्जावान समय होता है, जब मन और शरीर दोनों विशेष रूप से संवेदनशील रहते हैं। यही कारण है कि इस समय कुछ खास काम करने की सख्त मनाही होती है, विशेष रूप से सोने, झाड़ू लगाने, कपड़े धोने और किसी को पैसे उधार देने जैसे कार्य अशुभ माने जाते हैं। आइए, विस्तार से जानते हैं कि गोधूलि बेला का आध्यात्मिक महत्व क्या है और किन गलतियों से बचना चाहिए।
गोधूलि बेला का आध्यात्मिक महत्व और हिंदू मान्यताएं
हिंदू धर्म में गोधूलि बेला को देवताओं के पूजन और ध्यान के लिए सर्वोत्तम समय माना गया है। यह संधिकाल (ट्रांजिशन पीरियड) है, जब दिन खत्म हो रहा होता है और रात शुरू होने वाली होती है। इसे ऊर्जा संतुलन का समय कहा जाता है, जब मनुष्य की प्रार्थनाएं और सकारात्मक विचार अधिक प्रभावी होते हैं।
ज्योतिषाचार्य जनार्दन पंत पंडित बताते हैं, "गोधूलि बेला में वातावरण शुद्ध और पवित्र होता है, इसलिए इस समय घर में दीप जलाना, प्रार्थना करना और सकारात्मक कार्य करना अत्यंत शुभ माना जाता है।"
इस समय को विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए उत्तम माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस बेला में शुद्धता बनाए रखता है, पूजा करता है और अच्छे कर्म करता है, उसके घर में मां लक्ष्मी का वास होता है और दरिद्रता दूर होती है।
गोधूलि बेला में सोना क्यों नहीं चाहिए?
कहा जाता है कि गोधूलि बेला में सोने से मानसिक आलस्य, आर्थिक हानि और नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है। हिंदू धर्मग्रंथों में इसे दरिद्रता को आमंत्रित करने वाला कार्य माना गया है।
ज्योतिषाचार्य जनार्दन पंत के अनुसार, "गोधूलि बेला में सोने वाले व्यक्ति के शरीर में तमोगुण बढ़ जाता है, जिससे उसकी कार्यक्षमता और निर्णय लेने की शक्ति प्रभावित होती है। साथ ही, यह आलस्य और आर्थिक नुकसान का कारण भी बन सकता है।"
इसके अलावा, इस समय मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं। जो लोग इस समय स्वच्छता बनाए रखते हैं, पूजा-पाठ करते हैं और जागृत रहते हैं, उन पर लक्ष्मी जी की विशेष कृपा बनी रहती है। इसके विपरीत, यदि कोई व्यक्ति इस समय सोता है, तो वह भाग्य के द्वार बंद कर लेता है।
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गोधूलि बेला में बिल्कुल नहीं करने चाहिए ये 4 कार्य
1. इस समय किसी को पैसे उधार देने से बचें
गोधूलि बेला में किसी को धन देने से धन की हानि होती है और व्यक्ति की आर्थिक स्थिति कमजोर हो सकती है। इस समय उधार दिया गया पैसा वापस नहीं लौटता, जिससे धन की बर्बादी होती है।
2. इस समय कपड़े धोना अशुभ माना जाता है
गोधूलि बेला में कपड़े धोने से नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। यह मान्यता है कि इस समय किए गए जल संबंधी कार्य अशुभ फल देते हैं और घर में आर्थिक तंगी का कारण बन सकते हैं।
3. झाड़ू लगाना और घर की सफाई न करें
हिंदू मान्यता के अनुसार, गोधूलि बेला में झाड़ू लगाने से धन और समृद्धि घर से बाहर चली जाती है। यह समय घर में सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने का होता है, इसलिए इस दौरान झाड़ू-पोछा करने से बचना चाहिए।
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4. तुलसी को हाथ लगाना या तोड़ना होता है अशुभ
तुलसी देवी मानी जाती हैं और संध्या के समय वे विश्राम करती हैं। इस समय उन्हें स्पर्श करना अनादर माना जाता है। गोधूली बेला वह समय है जब सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा का संधिकाल होता है। तुलसी का पौधा पवित्रता का प्रतीक है, और इस दौरान उसे छूने से उसकी ऊर्जा प्रभावित हो सकती है।
गोधूलि बेला न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी महत्वपूर्ण समय होता है। इसलिए, अगली बार जब सूर्यास्त होने लगे और वातावरण में एक दिव्य आभा दिखे, तो ध्यान रखें कि यह सिर्फ दिन का अंत नहीं, बल्कि एक शुभ समय का आगमन है, जिसे सही तरीके से अपनाना ही हमारे जीवन को सफल और समृद्ध बना सकता है।
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