Chandra Dev: आखिर चंद्रमा को किसने दिया था श्राप और कैसे मिली थी उन्हें मुक्ति

Chandra Dev:चंद्रमा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन और शीतलता का कारक माना गया है। चंद्रमा को दक्ष ने एक ऐसा श्राप दिया था जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। 

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Curse On Chandra Dev: चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। सिर्फ यही नहीं, हिंदू धर्म में कई त्योहार ऐसे हैं, जो चंद्रमा के बिना पूरे नहीं माने जाते हैं। चंद्रमा से संबंधित कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन क्या आप जानती हैं, चंद्र देव को भी श्राप मिला हुआ है। चलिए आइए जानते हैं, किसने और कब चंद्र देवता को श्राप दिया था।

क्यों दिया था चंद्रमा को दक्ष ने श्राप?

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पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की सत्ताईस कन्याएं थीं। मान्यताओं के अनुसार, इन कन्याओं का नाम रोहिणी, रेवती, श्रावण, सर्विष्ठ, सताभिषक, प्रोष्ठपदस, आश्वयुज, कृतिका, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, मेघा, स्वाति, चित्रा, फाल्गुनी, हस्ता, राधा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, सुन्निता, पुष्य अश्व्लेशा, आषाढ़, अभिजीत और भरणी हैं और इन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था, लेकिन चंद्रमा सिर्फ रोहिणी से ही प्रेम करते थे।

इसके कारण दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत नाराज रहती थीं और उन्होंने अपनी यह व्यथा अपने पिता को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया लेकिन वह नहीं मानें।

इसके बाद दक्ष ने क्रोध में आकर उन्हें 'क्षयरोग से ग्रस्त हो जाने का श्राप दे दिया। इस श्राप की कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए और उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता का उनका सारा काम रुक गया। तब ब्रह्माजी ने चंद्रमा को भगवान शिव की आराधना करने को कहा। शंकर भगवान के आशीर्वाद से चंद्रदेव शापमुक्त हुए।इसे भी पढ़ें:Weak Moon: कमजोर चंद्रमा में न करें इन चीजों का दान नहीं तो होगा भारी नुकसान

चंद्रमा की उत्पत्ति कैसे हुई थी?

अग्नि पुराण के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी, तो सबसे पहले मानस पुत्रों को बनाया था। उनमें से एक पुत्र ऋषि अत्रि का विवाह ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से हुआ और चंद्रमा उन्हीं की संतान हैं। वहीं, पद्म पुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र अत्रि को सृष्टि का विस्तार करने की आज्ञा दी थी। उनकी आज्ञा पाकर महर्षि अत्रि ने एक तप किया और तप काल में एक दिन महर्षि की आंखो से जल की कुछ बूंदें गिरी जो काफी प्रकाशमय थी। तब दिशाओं ने स्त्री रूप में आ कर पुत्र प्राप्ति की इच्छा से उन बूंदों को ग्रहण कर लिया। उन बूंदो को वह दिशाएं धारण न कर सकी और उन्हें त्याग दिया। उस त्यागे हुए गर्भ को ब्रह्मा ने चंद्रमा के नाम से प्रख्यात किया।इसे जरूर पढ़ें:श्री कृष्ण ने क्यों किया था मां काली का रूप धारण, जानें रोचक कथा

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image credit- shutterstock

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