भारतीय संस्कृति में विवाह से पहले वर और वधू के गोत्र का मिलान करना वंशज परंपरा और एक ममहत्वपूर्ण प्रक्रिया मानी जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि हिंदू मान्यताओं के अनुसार, एक ही गोत्र में विवाह को अनुचित माना जाता है। यह परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है, जिसका वैज्ञानिक और धार्मिक आधार दोनों हैं। जब दो व्यक्तियों का गोत्र एक होता है, तो उनके विवाह को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि गोत्र क्या है, एक ही गोत्र के लड़का-लड़की का विवाह संभव है या नहीं, और शादी से पहले गोत्र मिलान क्यों किया जाता है। आइए इस लेख में हम ज्योतिषाचार्य अरविंद त्रिपाठी से इन सभी पहलुओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
गोत्र, किसी व्यक्ति के पूर्वज ऋषि या कुल पर आधारित होता है। यह एक तरह से पीढ़ी दर पीढ़ी आनुवंशिक पहचान को दर्शाता है। हिंदू धर्म में कुल 8 प्रमुख गोत्र माने जाते हैं, जो आगे कई उपगोत्रों में बंटे होते हैं। एक गोत्र में शादी करना यानी एक ही वंश में विवाह करना माना जाता है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, अगर लड़का-लड़की एक ही गोत्र में हो तो उन्हें विवाह करने के लिए कई कारणों से प्रतिबंधित किया गया है। ऐसी मान्यता है कि अगर वर-वधू एक ही गोत्र में शादी करते हैं तो उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इससे दंपति के यहां होने वाली संतान में मानसिक और शारीरिक विकृति हो सकती है। यह प्रथा परिवारों के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करती है और आनुवंशिक विकारों से बचाव करने में भी सहायक होती है।
विज्ञान के अनुसार, एक ही गोत्र में शादी करने से जेनेटिक समानता अधिक होती है। इससे बच्चों में अनुवांशिक बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। इसीलिए हिंदू धर्म में विवाह के लिए अलग गोत्र को प्राथमिकता दी जाती है।
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धार्मिक मान्यता के अनुसार, एक ही गोत्र के लोग सगे भाई-बहन के समान माने जाते हैं। हिंदू शास्त्रों के मुताबिक, समान गोत्र में विवाह करना गौत्र दोष कहलाता है, जिससे दांपत्य जीवन में परेशानियां आ सकती हैं। इसे रोकने के लिए विवाह से पहले गोत्र मिलान करना जरूरी होता है।
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कुछ क्षेत्रों में अगर वर और वधू के परिवार कई पीढ़ियों से अलग स्थानों पर रह रहे हैं, तो समाज के बुजुर्गों की सहमति से विवाह हो सकता है। कुछ जगहों पर ऐसा करते हैं, लेकिन इसकी संख्या बहुत कम है। अगर किसी कारणवश समान गोत्र में विवाह हो भी जाए, तो इसके निवारण के लिए पूजा-पाठ और गोत्र परिवर्तन अनुष्ठान किए जाते हैं।
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